देश का पहला सौर-ऊर्जा आत्मनिर्भर गांव बना मध्य प्रदेश का बाचा ग्राम
दिनेश शुक्ल । Feb 20 2021 10:13PM
यह सब 2017 में शुरू हुआ जब आईआईटी बॉम्बे ने इस परियोजना के लिए बाचा को चुना। इस बारे में जनपद पंचायत घोड़ाडोंगरी के सदस्य रूमी दल्लू सिंह धुर्वे बताते हैं कि-'आईआईटी बॉम्बे ने सौर पैनल स्थापित करने में मदद की, जबकि तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने इंडक्शन चूल्हे दिए।'
भोपाल। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में घोड़ाडोंगरी तहसील की खदारा ग्राम पंचायत का छोटा सा गांव बाचा सौर ऊर्जा समृद्ध गाँव के रूप में देश भर में प्रतिष्ठा अर्जित कर चुका है। यहाँ की आबादी 450 है। यह मुख्य रूप से आदिवासी बहुल गाँव है। अधिकतर गोंड परिवार रहते हैं। गांव के आदिवासी युवा अनिल उइके बेहद उत्साहित होते हुए बताते हैं कि ''वर्षों से ऊर्जा की कमी की पीड़ा झेलते-झेलते आख्रिरकार हम ऊर्जा-सम्पन्न बन गये। हमारा गाँव बाचा देश का पहला सौर-ऊर्जा आत्म-निर्भर गाँव बन गया है।
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यह सब 2017 में शुरू हुआ जब आईआईटी बॉम्बे ने इस परियोजना के लिए बाचा को चुना। इस बारे में जनपद पंचायत घोड़ाडोंगरी के सदस्य रूमी दल्लू सिंह धुर्वे बताते हैं कि-'आईआईटी बॉम्बे ने सौर पैनल स्थापित करने में मदद की, जबकि तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने इंडक्शन चूल्हे दिए।' बाचा का एक स्थानीय व्यक्ति देवासु सौर पैनलों, इंडक्शन स्टोव, बल्ब कनेक्शन, भंडारण बैटरी और अन्य तकनीकी पहलुओं का ध्यान रखता है। वह पूछता रहता है कोई समस्या तो नहीं आ रही। छोटी-मोटी शिकायतों पर तुरंत मरम्मत करता है।
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खदारा पंचायत के पंच शरद सिरसाम बताते हैं कि हमारे गाँव के सभी 75 घरों में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरणों का उपयोग हो रहा है। हमने बाचा को ऊर्जा की जरूरत में पूरी तरह से आत्म-निर्भर गाँव बनाने के लिए संकल्प लिया है। आईआईटी बाम्बे और ओएनजीसी ने मिलकर बाचा को तीन साल पहले ही इस काम के लिये चुना था। इतने कम वक्त में ही हम बदलाव की तस्वीर देख रहे हैं।'
गाँव के सभी 75 घरों में अब सौर-ऊर्जा पैनल लग गये हैं। सबके पास सौर-ऊर्जा भंडारण करने वाली बैटरी, सौर-ऊर्जा संचालित रसोई है। इंडक्शन चूल्हे का उपयोग करते हुए महिलाओं ने खुद को प्रौद्योगिकी के अनुकूल ढाल लिया है। खदारा ग्राम पंचायत की पंच शांतिबाई उइके बताती हैं कि- 'सालों से हमारे परिवार मिट्टी के चूल्हों का इस्तेमाल कर रहे थे। आग जलाना, आँखों में जलन, घना धुआँ और उससे खाँसी होना आम बात थी। अब हम इंडक्शन स्टोव का उपयोग करने के आदी हो चुके हैं। बड़ी आसानी से इस पर खाना बना सकते हैं। दूध गर्म करना, चाय बनाना, दाल-चावल, सब्जी बनाना बहुत आसान हो गया है। हालांकि हमारे पास एलपीजी गैस है, लेकिन इसका उपयोग अब कभी-कभार हो रहा है।' गांव की राधा कुमरे बताती है कि पारंपरिक चूल्हा वास्तव में एक तरह से समस्या ही था। मैं अब इंडक्शन स्टोव के साथ सहज हूँ। किसी भी समय उपयोग ला सकते है।'
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वही वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष हीरालाल उइके कहते हैं- सूर्य-ऊर्जा के दोहन के प्रभाव को गाँव से लगे जंगल पर कम होते जैविक दबाव से स्पष्ट मापा जा सकता है। वन सुरक्षा समिति के प्राथमिक कार्यों का हवाला देते हुए वे बताते हैं कि सभी 12 सदस्य वन संपदा की रक्षा करते है। दिन-रात सतर्क रहते है ताकि कोई भी जंगल को नुकसान न पहुँचाए। हमें अवैध पेड़-कटाई और वन्य जीव शिकार जैसी गतिविधियों के बारे में हर समय सचेत रहना पड़ता है। इससे पहले, महिलाएँ ईंधन की लकड़ी के लिए प्राकृतिक रूप से गिरी हुई टहनियों को इकट्ठा करने के लिए नियमित रूप से जंगल जाती थीं। लकड़ी बीनने जंगल जाना रोजाना का काम था। अब यह रुक गया है और हमें काफी राहत मिली है।'
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गाँव की सामूहिक भावना को साझा करते हुए अनिल उइके कहते हैं-'बिजली के बिल कम होने से हर कोई खुश है। कारण यह है कि बिजली की खपत में भारी कमी आई है। सौर ऊर्जा संचालित एलईडी बल्ब के साथ घरों की ऊर्जा आवश्यकताओं को सौर ऊर्जा से आसानी से पूरा किया जा रहा है।' खदारा के सरपंच राजेंद्र कवड़े बताते हैं-'बाचा ने आसपास के गाँवों को प्रेरित किया है।' उनका कहना है कि 'खदारा और केवलझिर गाँव के आसपास के क्षेत्रों में भी रुचि पैदा हुई है। केवलझिर बाचा से सिर्फ 1.5 किमी दूर है, जबकि खदारा 2 किमी है। मुझे लगता है कि बाचा ने मुझे जिले में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान और सम्मान दिलाया है। जहाँ भी जाता हूँ लोग सम्मान देते हैं।
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