क्या केरल में एक साल के भीतर मारे गए करीब 600 हाथी ? जानिए हाथियों से जुड़ा पूरा सच
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि पलक्कड जिले के मन्नारकड़ वन मंडल में हथनी की मौत मामले में प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है और पुलिस को घटना के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं।
बुरी तरफ जले हुए मुंह के साथ हथिनी ने तालाब के अंदर चली गई। ताकि उसे थोड़ी बहुत राहत मिल सके। मगर हथिनी ने खड़े-खड़े ही दम तोड़ दिया। इस खबर के सामने आने के बाद से लोगों में काफी गुस्सा देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार ने भी इस मामले पर संज्ञान लेते हुए जांच की बात कही है।
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वहीं, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि पलक्कड जिले के मन्नारकड़ वन मंडल में हथनी की मौत मामले में प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है और पुलिस को घटना के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। पशु अधिकारों पर काम करने के लिए मशहूर भाजपा नेता मेनका गांधी ने भी अपना रोष जाहिर किया। उन्होंने कहा कि केरल में हर तीसरे दिन एक हाथी को मार दिया जाता है। केरल सरकार ने मल्लापुरम मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्होंने आगे कहा कि केरल में 1 साल में करीब 600 हाथी मारे गए लेकिन केंद्र और राज्य सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की साथ ही साथ प्रकाश जावड़ेकर से कानून में बदलाव करने की अपील भी की।
क्या सच में 1 साल में मारे गए करीब 600 हाथी ?
बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, हाथी विशेषज्ञ और केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ. पीएस ईसा ने बताया कि पालतू हाथियों की गिनती में कुल 507 हाथी ही पाए गए थे। जिनमें से 407 नर हैं तो 97 मादाएं हैं। इसके साथ ही उन्होंने अबतक मारे गए हाथियों का आंकड़ा भी बताया। डॉ. ईसा ने कहा कि साल 2017 में 17, 2018 में 34 और 2019 में 14 हाथियों की मौत हुई है।
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दरअसल, यह आंकड़े उन्होंने साल 2019 में केरल हाई कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट के आधार पर दिए हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि साल 2007 से लेकर 2018 के बीच क्रूरता की वजह से कुल 14 हाथियों की मौत हुई है।
बता दें कि हथनी की वेल्लियार नदी में 27 मई को मौत हो गई थी। इससे पहले वन्यकर्मियों से उसे नदी से बाहर लाने की बहुत कोशिश की थी मगर उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला है कि हथिनी गर्भवती थी। उसके जबड़े टूटे हुए थे। इस बीच एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने पीटीआई से बताया कि अप्रैल में कोल्लम जिले के पुनालूर मंडल के पथनापुरम वन क्षेत्र में भी इसी प्रकार की घटना हो चुकी है।
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कानून क्या है ?
जानवरों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1972 में एक अधिनियम पारित किया था। जिसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम है। इसका मकसद वन्यजीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। हालांकि समय-समय पर इस कानून में बदलाव भी हुए। इस कानून के तहत जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
इसके साथ ही आईपीसी के तहत अगर किसी जानवर को जहर दिया गया या फिर जान से मारा गया तो ऐसा करने वाले व्यक्ति को 2 साल तक की सजा हो सकती है।
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