Waqf Board में पहले से ही 2 महिला मेंबर्स की मौजूदगी, नाम गिनाकर पूर्व सदस्य ने मोदी सरकार के नए बिल पर किए हैरान करने वाले खुलासे

Waqf Board
ANI
अभिनय आकाश । Aug 9 2024 2:37PM

वक्फ बोर्ड को लेकर सरकार द्वारा लाए गए बिल में कुल 40 बदलाव प्रस्तावित हैं। मसलन महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात कही गई है। सेक्शन 9 और 14 में बदलाव करके वक्फ परिषद में दो महिलाओं को भी शामिल करने का प्रस्ताव है।

"थी ख़बर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुर्ज़े, देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ"। सदन में 8 अगस्त को वक्फ बिल लोकसभा में पेश हुआ और इस पर जोरदार बहस भी हुई। इसके बाद जो कुछ भी हुआ उसका सार गालिब के शेर में है। जैसा की तय था कि इंडिया गठबंधन ने बिल का विरोध किया। कांग्रेस, सपा, एनसीपी शरद पवार, एआईएमआईएम, टीएमसी, सीपीआईएम और डीएमके ने हंगामा किया। सपा सांसद ने तो खुलेआम धमकी देते हुए कहा कि सरकार ने इसमें कोई बदलाव किया तो लोग सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर हो जाएंगे। इन सब के बीच मोदी सरकार ने इस बिल को जेपीसी यानी ज्वाइंट पार्लिटामेंट्री कमेटी के पास भेज दिया। यानी विपक्ष जो इल्जाम लगा रहा था कि हमसे राय नहीं ली गई। अब इस कमेटी में सब पक्ष अपनी राय रख सकते हैं। 

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महिला भागीदारी बढ़ाने की बात कितनी जायज?

वक्फ बोर्ड को लेकर सरकार द्वारा लाए गए बिल में कुल 40 बदलाव प्रस्तावित हैं। मसलन महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात कही गई है। सेक्शन 9 और 14 में बदलाव करके वक्फ परिषद में दो महिलाओं को भी शामिल करने का प्रस्ताव है। कहा गया कि अभी तक इसमें एक भी महिला नहीं होती थी। इस बाबत हमने दिल्ली वक्फ बोर्ड के पूर्व सदस्य और दिल्ली बॉर काउंसिल के को-चेयरमैन एडवोकेट हमील अख्तर से बात की। उन्होंने बताया कि वक्फ बोर्ड में पहले से ही दो महिला सदस्य रहती हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने भंग होने पहले के वक्फ सदस्यों का उदाहरण देते हुए बताया कि दिल्ली में सात सदस्यी ईकाई में दो महिला सदस्य के रूप में नईम फातिमा काज़मी और रजिया सुल्ताना थी। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को लेकर भी उन्होंने सबिहा अहमद, तबस्सुम खान के रूप में दो महिला सदस्यों के नाम का जिक्र किया। 

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जेपीसी के पास क्यों भेजा गया बिल

मोदी सरकार ने तीसरे टर्म के अपने पहले बिल को सीधे सदन में पास कराने के बजाय गुरुवार को चर्चा और मशविरे के लिए संसद की कमिटी के पास भेजने की विपक्ष की मांग मान ली। इसे लोकसभा की स्थायी समिति के पास भेजने की बजाय संसद की जेपीसी के सामने भेजने पर सहमति बनी। इसके पीछे कुछ वजह है। लोकसभा में अभी स्थायी समिति नहीं बनी है। कई बार स्थायी समिति के अध्यक्ष विपक्षी दल के सीनियर नेता होते है। जेपीसी अध्यक्ष ज्यादातर सत्ता में काबिज दल का होता है, हालांकि उसमें सभी दलों की भागीदारी होती है। मगर, सत्तारूढ़ दल के सदस्य ज्यादा होंगे। 

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