अनसेफ अबॉर्शन से हर रोज 8 महिलाओं की मौत, SC के फैसले से क्या पड़ेगा असर? महिला अधिकारों में भारत से कैसे पिछड़ा US
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी से 12,025 किलोमीटर की दूरी पर भारत की राजधानी दिल्ली में देश की सबसे बड़ी अदालत के ऐतिहासिक फैसले में 29 सितंबर को घोषणा की गई कि एक महिला की वैवाहिक स्थिति उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है।
जून 2022 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट गर्भपात के संवैधानिक अधिकार से संबंधित पांच दशक पुराने फैसले को पलट दिया। वहां की सर्वोच्च अदालत 1973 के रो बनाम वेड के फैसले के पटलने के बाद छह हफ्ते के बाद गर्भपात कराने पर पाबंदी हो गई। दूसरी ओर अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी से 12,025 किलोमीटर की दूरी पर भारत की राजधानी दिल्ली में देश की सबसे बड़ी अदालत के ऐतिहासिक फैसले में 29 सितंबर को घोषणा की गई कि एक महिला की वैवाहिक स्थिति उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स के नियम 3 बी का विस्तार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि अगर विवाहित महिला का गर्भ उसकी मर्जी के खिलाफ है तो इसे रेप की तरह देखते हुए उसे भी गर्भपात की इजाजत दी जानी चाहिेए। 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के गर्भ के लिए अब तक अबॉर्शन का अधिकार अब तक विवाहित महिलाओं को ही था।
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भारत में गर्भपात पर डेटा और रुझान क्या दिखाते हैं:-
इस साल की शुरुआत में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार देश में लगभग तीन प्रतिशत गर्भधारण के परिणामस्वरूप गर्भपात हुआ। शहरी केंद्रों में गर्भपात की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक थी।
गर्भपात के कारण
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के अनुसार गर्भपात की मांग करने वाली लगभग हर दूसरी महिला (48 प्रतिशत) ने अनियोजित गर्भावस्था को समाप्त कर दिया। गर्भधारण को समाप्त करने के अन्य कारणों में स्वास्थ्य कारक (11.3 प्रतिशत), पिछले बच्चे का बहुत छोटा होना (9.7 प्रतिशत), और गर्भधारण में जटिलताएं (9.1 प्रतिशत) जैसे कारक गर्भपात के लिए शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि 4.1 प्रतिशत महिलाओं ने पति या सास की अनिच्छा को इन कारणों में से एक के रूप में साझा किया। इसके अलावा 2.1 प्रतिशत महिलाओं ने एक कारण के रूप में कन्या भ्रूण का भी हवाला दिया है। भारत द्वारा गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 में प्रसव पूर्व लिंग-निर्धारण परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद इसकी संख्या 2.1 प्रतिशत सामने आई।
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सुरक्षा या अभाव
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट 2022 की स्थिति के अनुसार असुरक्षित गर्भपात भारत में मातृ मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है। हर दिन लगभग आठ महिलाओं की मृत्यु असुरक्षित गर्भपात से संबंधित कारणों से होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2007-2011 के बीच, भारत में 67 प्रतिशत गर्भपात को असुरक्षित के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इसके पीछे का एक बड़ा कारण ये भी है कि सभी भारतीय महिलाएं गर्भधारण को समाप्त करने के लिए डॉक्टरों के पास नहीं जाती हैं। भारत में कई महिलाएं बिना चिकित्सकीय देखरेख के घर पर ही गर्भपात कराती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में लगभग 27 प्रतिशत महिलाओं ने अपना गर्भपात स्वयं किया। गर्भवती शहरी महिलाओं के लिए यह संख्या जहां 21.6 प्रतिशत थी, वहीं ग्रामीण महिलाओं में यह अनुपात 30 प्रतिशत था।
राज्य के आंकड़े क्या कहते हैं
19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गर्भपात कराने वाली महिलाओं का अनुपात राष्ट्रीय औसत 2.9 प्रतिशत से अधिक था। इसमें मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा और ओडिशा जैसे राज्य शामिल थे। यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी में भी 5.7 फीसदी महिलाओं ने गर्भपात कराने का फैसला किया। राजस्थान (1.5 फीसदी) और मध्य प्रदेश (1.3 फीसदी) जैसे राज्यों में यह अनुपात कम है।
देशावार गर्भपात दर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया भर में हर साल लगभग 7.3 करोड़ इंड्यूस्ड अबॉर्शन (कृत्रिम गर्भपात) होते हैं। एक स्टडी के मुताबिक भारत में 15-49 साल की उम्र की प्रति 1,000 महिलाओं पर गर्भपात की दर 47 है, जिसका मतलब है 1.6 करोड़ गर्भपात। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक रूस में गर्भपात दर प्रति 1,000 महिलाओं पर 53.7 है। इसमें दूसरे स्थान पर वियतनाम है जहां गर्भपात दर 35.2 है, उसके बाद आता है कजाकिस्तान जहां गर्भपात दर 35 है। वहीं अगर उन देशों की बात करें जिनकी गर्भपात दर कम है तो इसमें सबसे पहले स्थान पर आता है मेक्सिको जिसकी गर्भपात दर 0.1 है।
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