कैसे बीते 1 साल, पंजाब में भी 'केजरीवाल', दिल्ली मॉडल के जरिए क्या आए बदलाव, लॉ एंड ऑर्डर और अर्थव्यवस्था का क्या है हाल?

Kejriwal
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अभिनय आकाश । Mar 10 2023 5:57PM

एक बरस में ऐसे कई मौके आए जब ये सीमावर्ती राज्य तमाम वजहों से सुर्खियां बटोरता रहा और इसके नए नवेले मुख्यमंत्री उन परेशान करने वाली परिस्थितियों से जूझते रहे। राजनीति, धर्म और सामाजिक ताने-बाने का एख विस्फोटक कॉकेटल मान के सामने चुनौतियों के पहाड़ सरीखा खड़ा नजर आ रहा है।

19 मार्च यानी शनिवार के दिन ठीक एक साल पहले आम आदमी पार्टी की मान कैबिनेट का शपथ ग्रहण हुआ था। कॉमेडियन से राजनेता बने 49 साल के भगवंत मान की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के साल पूरे होने जा रहे हैं। इन बीते एक बरस में ऐसे कई मौके आए जब ये सीमावर्ती राज्य तमाम वजहों से सुर्खियां बटोरता रहा और इसके नए नवेले मुख्यमंत्री उन परेशान करने वाली परिस्थितियों से जूझते रहे। राजनीति, धर्म और सामाजिक ताने-बाने का एख विस्फोटक कॉकेटल मान के सामने चुनौतियों के पहाड़ सरीखा खड़ा नजर आ रहा है। 

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2022 के बाद पंजाब में क्या आया बदलाव? 

देश के इस सीमावर्ती राज्य में स्थितियां इतनी भी अनुकूल नजर नहीं आ रही हैं और इसमें तत्काल सुधार के उपायों की आवश्यकता है। चाहे इसे सामाजिक दायरे में देखें या फिर सीमावर्ती राज्य होने के रणनीतिक दायरे में, लेकिन 80 के दशक की पुनरावृति के जिक्र मात्र से ही हर किसी की रूह कांप जाती है। दशकों से, पंजाब की राजनीति द्विध्रुवीय रही है और सत्ता दो प्रमुख दलों-अकाली दल और कांग्रेस के बीच घूमती रही है। इन दोनों पार्टियों ने पंजाब में कमोबेश लंबे समय तक शासन किया है। लेकिन मार्च 2022 में चीजें पूरी तरह से बदल गई। आप ने विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 92 सीटें जीतकर कांग्रेस और अकालियों दोनों का लगभग सफाया कर दिया। यह अपने आप में एक ऐतिहासिक बदलाव इसलिए भी था क्योंकि यह बहुत स्पष्ट हो गया था कि दोनों दलों ने मतदाताओं का विश्वास खो दिया था और उन्होंने आप जैसी अनुभवहीन पार्टी को दशकों पुरानी पार्टी से ज्यादा तवज्यो दी। आप अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मॉडल के अनुसार राज्य को बदलने का वादा किया।

कानून व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक

अब तक मान और उनकी पार्टी स्थितियों के बेहतर होने का दावा करते रहे। लेकिन इस समय पूरे राज्य में अशांति की खबरें आप विभिन्य अखबारों और समाचार चैनलों में देख सकते हैं। धार्मिक कट्टरता, बड़े पैमाने पर गैंगस्टर हिंसा फैल रही है और कृषि क्षेत्र से विरोध के अंतहीन स्वर उठ रहे हैं। शायद सबसे ज्यादा चिंताजनक कानून व्यवस्था की स्थिति है, जो आप के सत्ता में आने के बाद से लगातार बिगड़ती चली गई है। इसकी शुरुआत सिंगर सिद्धू मूसेवाला की दिनदहाड़े हत्या से हुई थी। तब मान सरकार के शुरुआती दिन थे, तो सीधे उन्हें कटघरे में खड़ा करना थोड़ी बेमानी होगी। ये हालात सरकार बनने से पहले ही बन रहे थे। लेकिन धर्म आधारित हिंसा से पंजाब को खतरा है। कट्टर हिंदुत्व और बेअदबी के एक मामले में आरोपी डेरा अनुयायी सुधीर सूरी की नवंबर में हत्या कर दी गई थी। अब, पिछले हफ्ते, नवोदित सिख कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह संधू के तलवार चलाने वाले गुट ने अजनाला पुलिस थाने का घेराव करने और उसके तुरंत बाद प्रशासन के घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। खालिस्तान का नया झंडाबरदार अमृतपाल प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तक को धमकी दे चुका है। लेकिन खुले तौर पर नफरत भरे भाषण देने के बावजूद वह केंद्रीय एजेंसियों के राडार से दूर नजर आ रहा है। 

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अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही 

कानून व्यवस्था, गुंडों और धार्मिक कट्टरवाद के अजीब मिश्रण के अलावा, शासन के अन्य मामलों में भी मान सरकार की पकड़ बेहद मजबूत नजर नहीं आ रही है। पंजाब की अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही है। इस साल इसका कर्ज जीएसडीपी अनुपात 47.6 फीसदी रहने की उम्मीद है, जो राज्यों के लिए वित्त आयोग की 20 फीसदी की सीमा से दोगुना है। इस साल जनवरी के अंत तक आप सरकार के सिर्फ 10 महीनों में राज्य को 35,000 करोड़ रुपये उधार लेने पड़े। राज्य के बहीखाते में 2.83 लाख करोड़ रुपए के समेकित कर्ज का खुलासा हुआ है। इस वित्त वर्ष में राजस्व एक तिहाई से भी कम 95,378 करोड़ रुपए रहने की उम्मीद है। आशंका यह है कि वित्त वर्ष 23 के अंत तक कर्ज 3 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा। यह भयावह तस्वीर इस तथ्य से और भी धूमिल हो जाती है कि दिसंबर के अंत तक राज्य अपने राजस्व लक्ष्य का केवल 65.86 प्रतिशत ही प्राप्त कर सका। जुलाई में किए वादे के मुताबिक 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की सब्सिडी सरकारी खजाने पर पानी फेर रही है. जाहिर है, आप का दिल्ली में उच्च राजस्व मार्जिन के आधार पर मुफ्त या सस्ती बुनियादी सुविधाएं देने का प्रसिद्ध मॉडल पंजाब में उस तरह से काम नहीं कर रहा है। अब तो स्थिति यह है कि सरकार को भी वेतन देने में मशक्कत करनी पड़ रही है; इसके लिए राज्य के बिजली विभाग को 500 करोड़ रुपये उधार लेने पड़े।

रिमोट कंट्रोल सीएम के आरोप

एक राजनीतिक व्यक्ति के रूप में मान को लेकर ये आरोप भी उठते रहते हैं कि वो खुद कोई फैसला नहीं लेते हैं बल्कि पार्टी के दिल्ली आलाकमान से रिमोट-नियंत्रित होते हैं। कई मौकों पर उनकी सार्वजनिक रूप से किरकिरी भी हो चुकी है। उदाहरण के लिए, बीएमडब्ल्यू ने जर्मनी की यात्रा के दौरान उनके इस दावे का खंडन किया कि वह पंजाब में एक कारखाना स्थापित कर रहा है, गैंगस्टर ने खुद टीवी चैनलों पर आकर गोल्डी बराड़ की अमेरिका में गिरफ्तारी के उनके दावे का खंडन किया था। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि उन्होंने अभी तक उस कौशल और अनुभव का प्रदर्शन नहीं किया है जो गंभीर संकट से गुजर रहे पंजाब के लिए जरूरी है। धार्मिक भावनाएं एक बार फिर उबाल पर हैं। सिमरनजीत सिंह मान जैसे पुराने खालिस्तान समर्थक संसद के लिए भारी संख्या में चुने गए हैं, प्रदर्शनकारी आतंकवाद के दोषी कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं, और अमृतपाल जैसे स्वयंभू 'संन्यासी' राज्य के साथ-साथ केंद्र को भी चुनौती दे रहे हैं।

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