आखिर क्यों स्वाभाविक मौत से पहले ही खत्म हो जाती है पाकिस्तानी नेताओं की पारी

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अभिनय आकाश । Dec 19 2019 5:49PM

जुल्फिकार अली भुट्टो एक विचारक के साथ-साथ कश्मीर के लिए हुए 1965 के युद्ध के एक अहम नेता भी थे। ऑपरेशन गिब्राल्टर और ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम बुरी तरह से असफल हुए, जिसने यह साफ कर दिया कि जम्मू और कश्मीर में सीज फायर लाइन पर एक इंच भी जमीन इधर से उधर नहीं हुई।

परवेज मुशर्रफ, हिन्दुस्तान में रहने वाला हर शख्स इस नाम से अच्छी तरह से वाकिफ है। ये वही परवेज मुशर्रफ हैं जिनकी वजह से कारगिल की जंग हुई थी। ये वही परवेज मुशर्रफ है जो हिन्दुस्तान के खिलाफ साजिश रचने के अगुआ रहे हैं। अब वही मुशर्रफ अपनी ही मुल्क के गद्दार साबित हुए हैं। मुशर्रफ देशद्रोही करार दिए गए हैं और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई है। पाकिस्तान में वैसे तो शासकों को फांसी पर चढ़ाने का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन ये पहली बार है कि किसी सैन्य प्रमुख को देशद्रोह का दोषी पाया गया हो। पाकिस्तान बनने से लेकर आज तक उसके शासक या पूर्व शासक स्वाभाविक मौत से पहले ही या तो मार दिए जाते हैं या किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। तो आइए आपको इतिहास से लेकर वर्तमान की इस रहस्य कथा से रूबरू करवाते हैं।

भारत विभाजन के ठीक पहले एक अस्थाई सरकार बनी थी। जिसके प्रधानमंत्री थे जवाहर लाल नेहरू। इस सरकार के फाइनेंस मिनिस्टर थे लियाक़त अली खान और ये सरकार कांग्रेस-मुस्लिम लीग के लिए आखिरी मौका थी, पार्टीशन रोकने के लिए। पर ऐसा हुआ नहीं। दोनों एक-दूसरे पर इल्जाम लगाते रहे। लियाकत पर इल्जाम लगता था कि फाइनेंस मिनिस्टर की हैसियत से वो किसी भी मंत्रालय को पैसा ही नहीं रिलीज करते थे। नतीजतन 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बना और लियाकत अली खान इसके पहले प्रधानमंत्री बने। ये वही लियाकत अली हैं जिनके नाम का जिक्र इन दिनों नागरिकता बिल पर बहस के दौरान नेहरू-लियाकत समझौते की वजह से चर्चा में है। जिन्ना की मौत को दो साल बीत चुके थे। जिन्ना के बाद पाकिस्तान के सबसे बड़े नेता थे लियाकत अली खान। रावलपिंडी शहर में लियाकत अली भाषण देने के लिए पहुंचते हैं। पहले तालियों की गड़गड़ाहट से माहौल गूंज उठता है। फिर लियाकत की आवाज आती है, ऐ मेरे हमबिरादरो। इससे पहले कि लियाकत आगे कुछ बोल पाते, धायं-धायं की आवाज गूंज उठती है। लियाकत अली खान को गोली मार दी गई थी। ये पाकिस्तान की पहली राजनैतिक हत्या थी।

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जुल्फिकार अली भुट्टो एक विचारक के साथ-साथ कश्मीर के लिए हुए 1965 के युद्ध के एक अहम नेता भी थे। ऑपरेशन गिब्राल्टर और ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम बुरी तरह से असफल हुए, जिसने यह साफ कर दिया कि जम्मू और कश्मीर में सीज फायर लाइन पर एक इंच भी जमीन इधर से उधर नहीं हुई। 1973 में भुट्टो ने पाकिस्तान को उसका नया संविधान दिया। वही संविधान, जो आज भी वहां चल रहा है। 1971 में बांग्लादेश की हार से तिलमिलाए भुट्टो ने हार को छुपाने के लिए वादा किया कि भारत के खिलाफ अगले 1000 सालों तक लड़ाई जारी रहेगी। ये सब अच्छा-अच्छा हो रहा था कि एक बार फिर पाकिस्तान में सेना को अहम रोल मिल गया। जिन जिया-उल-हक को भुट्टो ने अपना आर्मी चीफ बनाया था, उन्होंने ही भुट्टो की गद्दी छीन ली। ये हुआ 4 और 5 जुलाई, 1972 की दरम्यानी रात को। पाकिस्तान रात को जब सोया, तो लोकतंत्र था। अगली सुबह जगा, तो मालूम हुआ कि सेना का राज फिर लौट आया है। भुट्टो न केवल सत्ता से बेदखल हुए, बल्कि उन्हें जेल भी भेज दिया गया। अक्टूबर, 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ हत्या का मुकदमा शुरू किया गया। मुकदमा लोअर कोर्ट में नहीं सीधे हाईकोर्ट में शुरू हुआ। उन्हें फांसी की सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने भी बहुमत निर्णय में फांसी की सजा बहाल रखी। अप्रैल, 1979 में रावलपिंडी जेल में उन्हें फांसी से लटका दिया गया। भुट्टो के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं। 

जिया उल हक़ दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़े थे। ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अफसर थे। हिंदुस्तान के आज़ाद होने के बाद इन्होंने पाकिस्तान चुना। लौट के आये तो प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इनको चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ बना दिया। 5 जुलाई 1977 को जिया ने तख्तापलट कर दिया। जुल्फिकार को जेल में डाल दिया। फिर जुल्फिकार को फांसी दे दी गई। दुनिया का सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश अमेरिका जिया के सपोर्ट में था। क्योंकि जिया अमेरिका की मदद कर रहे थे अफगानिस्तान में रूस के खिलाफ। नतीजा ये हुआ कि जिया ने पाकिस्तान में एटम बम बनाने की प्रक्रिया तेज कर दी। फिर आया 17 अगस्त 1988, प्लेन क्रैश हुआ पर अनसुलझे सवाल छोड़ गया। जिया का मिलिट्री जनरल प्लेन पर नहीं चढ़ा था। जबकि उसको आदेश थे। आखिरी वक़्त में बागी हो गया। फिर शक कई देशों पर जताया गया। अमेरिका, रूस, इंडिया, इजराइल से लेकर जॉर्डन तक पर।

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साल 1981 की बात है। इस साल उसने मार्च से अगस्त का महीना जेल में गुजारा। अकेले। साल के इन दिनों इधर गजब की गर्मी पड़ती है। जेल की एक बड़ी सी कोठरी में वो अकेली। रोशनी के लिए बस एक बल्ब। वो भी शाम सात बजे बंद कर दिया जाता। जुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी दूसरी बीवी नुसरत की चार औलादों में से एक। बेनजीर भुट्टो। जुल्फिकार भुट्टो ने बहुत कुछ सिखाया बेनजीर को। शायद उसी का असर था कि जब उन्हें जेल में डाला गया, तब बेनजीर अपनी मां नुसरत के साथ मिलकर पिता के लिए आवाज उठाती रहीं। 1984 की बात है। बेनजीर पाकिस्तान से बाहर रहकर ज़िया के खिलाफ, अपने पिता की फांसी के खिलाफ आवाज उठाती रहीं। फिर जब पाकिस्तान में ज़िया के खिलाफ विरोध तेज हुआ, तो 1986 में बेनजीर पाकिस्तान लौट आईं। 16 नवंबर, 1988 को चुनाव हुए। नेशनल असेंबली के चुनाव में बेनजीर की पार्टी PPP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने बेनजीर को प्रधानमंत्री मनोनीत किया। यूं बेनजीर पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। ऐसे ही में हुई पक्का किला की घटना। हैदराबाद का एक इलाका है- पक्का किला। मई 1990 की बात है। यहां कर्फ्यू लगा हुआ था। पुलिस घर-घर जाकर तलाशी ले रही थी। MQM कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध किया। इसकी वजह से वहां फसाद शुरू हो गया। इस पर काबू पाने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की एक भीड़ पर गोलियां चलाईं। तकरीबन 40 लोग मारे गए। इस घटना की वजह से बेनजीर निशाने पर आ गईं। उन्हें प्रधानमंत्री बने एक साल भी नहीं हुआ था कि उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आया गया। हालांकि इसमें बेनजीर जीत गईं। मगर हालात ठीक नहीं हुए। 6 अगस्त, 1990 को राष्ट्रपति ने नैशनल असेंबली बर्खास्त कर दी। बेनजीर की सरकार चली गई। नवाज चुनाव जीत गए। 1 नवंबर, 1990 को नवाज PM की कुर्सी पर बैठे। 27 दिसंबर, 2007 की तारीख थी, जब 15 साल के खुदकुश हमलावर ने एक धमाका किया और बेनज़ीर की मौत हो गई। रावलपिंडी में एक चुनावी रैली में बेनज़ीर अपना भाषण खत्म कर लौट रही थीं,  हमलावर बिलाल उनकी कार के पास चला गया, पहले उन्हें गोली मारी और फिर खुद को उड़ा दिया।

जिसके बाद पाकिस्तान में एक बार फिर तख्तापलट का दौर देखने को मिला और परवेज मुशर्रफ तीसरे मिलिट्री कमांडर थे, जिन्होंने पाकिस्तान पर शासन किया, जब उन्होंने 1999 में नवाज शरीफ की लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट कर दिया था। उन्होंने देश के संविधान को सस्पेंड कर दिया था। दिलचस्प है कि नवाज शरीफ को 2017 में भ्रष्टाचार के मामले में 10 साल जेल की सजा सुनाई गई है, जब उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा। वह भी फिलहाल लंदन में हैं और कई सारी बीमारियों के लिए इलाज ले रहे हैं। अब लौटते हैं वर्तमान की ओर जिस मामले में परवेज मुशर्रफ को देशद्रोह का दोषी पाया गया है नवाज शरीफ सरकार ने ही 2013 में मुशर्रफ के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। 

भारत के दुश्मन की फांसी की सजा के मामले के बारे में भी आपको बता देते हैं।

- 1999 में पाक सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने करगिल में युद्ध थोपा था। 

- परवेज मुशर्रफ पर पाकिस्तान के संविधान को निलंबित करने का आरोप है। 

- मुशर्रफ ने नवाज शरीफ की सरकार का तख्ता पलट करके खुद हुकूमत संभाल ली थी। 

- साल 2007 में संविधान पलटने की वजह से 2013 में उन पर देशद्रोह का मुकदमा हुआ। 

- पाकिस्तान के पहले सेनाध्यक्ष जिनपर देशद्रोह का मुकदमा चला। 

- साल 2016 में मुशर्रफ इलाज के लिए दुबई गए।

- कोर्ट ने देश आकर मुकदमे का सामना करने को कहा। 

- लेकिन मुशर्रफ बीमारी का बहाना बनाते रहे और कहते रहे कि तबीयत खराब होने की वजह से वो नहीं पा रहे। 

- पाक पीएम इमरान खान ने कोर्ट से मुकदमा स्थगित करने की मांग की थी। 

- 17 दिसंबर को इस्लामाबाद की स्पेशल कोर्ट ने मुशर्रफ को सजा ए मौत सुना दी। 

पाकिस्तान के किसी पूर्व सेना अधिकारी को सजा हुई है। वो भी फांसी की सजा। पाकिस्तान वैसे तो वो मुल्क है जहां सेना लोकतंत्र का गला घोटती नजर आई है। लेकिन इस बार इतिहास बदल गया और एक पूर्व जनरल की गर्दन पर कस गया फांसी का फंदा। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्फ को मिली है सजा ए मौत। 

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पाकिस्तान की सेना का जनरल रहा एक शख्स इस देश के इतिहास में पहली बार बहुत बड़े संकट में है। जिस पाकिस्तानी सेना के सामने पूरा सिस्टम चाहे वो कार्यपालिका हो या न्यायपालिका हर कोई नतमस्तक रहता आया था। अब उसे सेना के सबसे बड़े पूर्व अफसर के लिए अदालत ने तैयार कर दिया है फांसी का फंदा। पाकिस्तान के बनने के बाद से ही इस देश की सेना सुप्रीम अथॉरिटी रही है। जब-जब लोकतंत्र के जरिए जनता की चुनी हुई सरकार बनी है तब-तब तख्ता पलटकर लोकतंत्र को कुचलती आई है सेना। सिर्फ यही नहीं पाकिस्तानी सेना के निशाने पर हमेशा वो नेता रहे जो आवाम की बात करते थे। जिसने भी सेना को दरकिनार कर अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिश की उसे मिली सजा ए मौत। चाहे वो जुल्फीकार अली भुट्टो हों जिन्हें फांसी पर लटकाया गया या फिर पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। पाकिस्तान में भले ही लोकतंत्र का दम घुटता रहा हो लेकिन जो भी सरकार सत्ता में आई किसी की भी हिम्मत सेना पर कार्रवाई करने की नहीं हुई। नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट करने वाले परवेज मुशर्रफ को अदालत ने देशद्रोही करार दिया है। 

10 साल की सजा पाए नवाज शरीफ लंदन में हैं और कई सारी बीमारियों के लिए इलाज ले रहे हैं। बताया जाता है कि उनके खून में प्लेटलेट्स का लेवल काफी कम रहता है। लेकिन बावजूद इसके पिछले दो दशकों से परवेज मुशर्रफ के खिलाफ सत्ता के संघर्ष के बीच परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा पर आज नवाज शरीफ खुश तो बहुत होंगे। बहरहाल, 72 साल पहले हजारों-लाखों लोगों की लाश धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान में सत्ता पर बैठने के बाद मौत ही क्यों नसीब होती है ये एक बड़ा सवाल है।

- अभिनय आकाश

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