मोदी के चिप मिशन के लिए ताइवान की कंपनी का फैसला है बड़ा झटका? Foxconn ने क्यों तोड़ी Vedanta के साथ डील, अब सेमीकंडक्टर के मोर्चे पर क्या होगा
एक साल से भी कम समय के 1.5 लाख करोड़ रुपए का प्लांट स्थापित करने के लिए दोनों कंपनियों के बीच साझेदारी अचानक टूट गई। फॉक्सकॉन ने 10 जुलाई को घोषणा की कि वह वेदांता के साथ संयुक्त उद्यम से बाहर हो रही है।
करीब साल भर पहले की बात है चिप की किल्लत की वजह से गाड़ी से लेकर मोबाइल फोन, एसी, वॉटर प्यूरिफायर, सबमें थोड़ी देरी और महंगाई भी हुई। ताइवान में माइक्रोचिप की किल्लत हुई और उसके बाद बात हुई की कैसे इस किल्लत को कम किया जाए। इस उधेड़बुन में 13 सितंबर 2022 को एक खबर आई कि गुजरात में 20 बिलियन डॉलर यानी लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए का सेमीकंडक्टर प्लांट लगाया जाएगा। इस प्लांट को दो बड़े ग्रुप फॉक्सकॉन और वेदांता मिलकर बनाएंगे। लेकिन एक साल से भी कम समय के 1.5 लाख करोड़ रुपए का प्लांट स्थापित करने के लिए दोनों कंपनियों के बीच साझेदारी अचानक टूट गई। फॉक्सकॉन ने 10 जुलाई को घोषणा की कि वह वेदांता के साथ संयुक्त उद्यम से बाहर हो रही है।
देश में चिप प्रोडक्शन के लिए पहला करार टूटा
ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन ने भारत में सेमीकंडक्टर बनाने के लिए वेदांता के साथ किए गए अपने करार तोड़ने का ऐलान किया है। बीते वर्ष वेदांता और फॉक्सकॉन ने गुजरात में 1.50 लाख करोड़ के निवेश के साथ सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले प्रोडक्शन प्लांट लगाने का ऐलान किया था। फॉक्सकॉन ने अपने बयान में कहा कि उसने वेदांता के साथ ज्वाइंट वेंचर को लेकर अब आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है। इधर वेदांता ने कहा कि वह सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए संभावित पार्टनर के संपर्क में है। कंपनी ने सेमीकंडक्टर के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच को पूरा करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
फ़ॉक्सकॉन ने साझेदारी से हाथ क्यों खींच लिया है?
फॉक्सकॉन ने कोई कारण नहीं बताया है, लेकिन यह समझा जा रहा है कि भारी कर्ज के बोझ से जूझ रही वेदांता की चिपमेकिंग के लिए आवश्यक तकनीक हासिल करने के लिए भुगतान करने की क्षमता ने इस डील के टूटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि हमें पता था कि संयुक्त उद्यम अच्छा नहीं चल रहा है, कुछ मतभेद थे और कुछ महीने पहले हमें यह स्पष्ट हो गया था कि फॉक्सकॉन बाहर निकलने जा रहा है। अधिकारी ने कहा कि सरकार फॉक्सकॉन के संपर्क में है और उसे स्वतंत्र रूप से एक लैब स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा
आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि फॉक्सकॉन की वापसी का भारत के सेमीकंडक्टर लक्ष्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। फॉक्सकॉन और वेदांता दोनों का भारत में अहम निवेश है। उन्होंने कहा कि यह सरकार का काम नहीं है कि वह क्यों या कैसे दो निजी कंपनियां साझेदारी चुनें या नहीं चुनें। उन्होंने कहा कि जबकि उनके जेवी वीएफएसएल ने मूल रूप से 28 एनएम फैब के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, वे उस प्रस्ताव के लिए उपयुक्त टेक पार्टनर नहीं ढूंढ सके। वहीं केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि दोनों कंपनियां भारत के सेमीकंडक्टर मिशन और मेक इन इंडिया के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।
वेदांता का क्या कहना है
वेदांता ने कहा है कि वह आगे बढ़ेगी और वह अपने सेमीकंडक्टर प्रोजेक्ट के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और उसने "भारत की पहली फाउंड्री स्थापित करने के लिए अन्य साझेदारों को तैयार किया है। कंपनी ने कहा कि हम अपनी सेमीकंडक्टर टीम का विकास जारी रखेंगे, और हमारे पास एक प्रमुख इंटीग्रेटेड डिवाइस निर्माता (आईडीएम) से 40एनएम (चिप्स) के लिए उत्पादन-ग्रेड तकनीक का लाइसेंस है।
अब सेमीकंडक्टर के मोर्चे पर क्या होगा?
भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण बना हुआ है। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि यह सरकार के लिए झटका है। ऐसा इसलिए कि ग्लोबल लेवल पर देश में सेमीकंडक्टर बनाने का यह पहला और बड़ा करार था। इस पर पिछले डेढ़ साल से काम चल रहा था। उम्मीद थी कि जल्द ही यह प्रोजेक्ट देश में साकार रूप लेगा। सेमीकंडक्टर के मामले में भारत की स्थिति कच्चे तेल जैसी है। साल 2025 तक इस मार्केट के 24 अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। अगर देश में प्रॉडक्शन नहीं किया गया तो आयात बिल में इतनी राशि की बढ़ोतरी हो जाएगी। अगर ताइवान की कंपनी और वेदांता का यह प्रोजेक्ट भारत में शुरू हो जाता तो इसकी टेक्नीक भारत में आ जाती। इसका सीधा झटका चीन को लगता। अब देखने वाली बात यह है कि चिप्स बनाने को लेकर अमेरिकी कंपनियों के साथ जो करार हुआ है, वह किस तरह से मूर्त रूप लेता है।
अन्य प्रस्तावों के बारे में क्या?
यह सिर्फ वेदांता-फॉक्सकॉन का प्रस्ताव नहीं है। भारत की 10 अरब डॉलर की चिप प्रोत्साहन योजना के दो अन्य प्रस्ताव भी अनिश्चित बने हुए हैं। अबू धाबी स्थित नेक्स्ट ऑर्बिट और इज़राइल के टॉवर सेमीकंडक्टर द्वारा समर्थित आईएसएमसी ने केंद्र से इंटेल और टॉवर सेमीकंडक्टर के बीच लंबित विलय के कारण उसके प्रस्ताव पर विचार नहीं करने के लिए कहा है। विलय की घोषणा एक साल से अधिक समय पहले की गई थी, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाई है। कंसोर्टियम ने शुरू में कहा था कि वह कर्नाटक में 3 बिलियन डॉलर का सेमीकंडक्टर फैब स्थापित करेगा। लेकिन टावर के साथ इंटेल का विलय पूरा होने तक प्रस्ताव आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं है। ऐसा पता चला है कि सिंगापुर स्थित आईजीएसएस वेंचर का दूसरा प्रस्ताव सरकार की सलाहकार समिति के अनुरूप नहीं पाया गया और ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
चिपमेकिंग भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
भारत ने आने वाले वर्षों में घरेलू बाजार के लिए माल का उत्पादन और निर्यात दोनों के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने चिप निर्माण को भारत की आर्थिक रणनीति के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। वह वैश्विक कंपनियों को भारत में लाकर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में एक नए युग की शुरुआत करना चाहते हैं। घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने और अंततः आयात को कम करने के सरकार के दृष्टिकोण के लिए भारत में सेमीकंडक्टर का निर्माण महत्वपूर्ण है। अमेरिका ने पिछले अगस्त में चिप्स अधिनियम पारित किया, जिससे देश में चिप्स विनिर्माण के लिए 280 अरब डॉलर की सब्सिडी प्रदान की गई।
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