पेरियार: जिनके खिलाफ बोलने की हिमाकत दक्षिण में कोई नहीं करता और देवी-देवताओं पर क्या थी उनकी सोच
पेरियार महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसी दौरान उन्होंने 1924 में केरल में हुए वाइकोम सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई। बाद में वो गांधी के प्रमुख आलोचकों में से एक थे। जिन्ना और बीआर अंबेडकर के अलावा, पेरियार ही वो तीसरी बड़ी शख्सियत रहे जिन्होंने खुलकर महात्मा गांधी का विरोध किया।
रजनीकांत ऐसे एक्टर हैं जिनके फिल्मों के ट्रेलर भी लोग टिकट खरीद कर देखते हैं। रजनीकांत के दीवाने दुनियाभर में है और 1998 में आई उनकी एक फिल्म मुथू जापानी भाषा में डब की गई और जापान में ऐसी हिट हुई कि निंजा के देश में उनके लाखों दीवाने हो गए। तमिल फिल्म इंडस्ट्री में उनकी हैसियत सुपरस्टार की है ये सभी जानते हैं। कोई नाम के साथ सर लगाता है तो कोई थलाइवा कहता है। 20 जनवरी को मदुरई में रजनीकांत का पुतला जलाया गया। पुतला जलाने वालों का इल्जाम था कि रजनीकांत ने ईवी रामास्वामी पेरियार का अपमान किया। पुतला जलाने वाले कई संगठन के साथ-साथ द्रविड़ विधुथलाई कझगम (DVK) ने रजनीकांत के खिलाफ एक एफआईआर भी करवाई है। पहले जान लीजिए कि रजनीकांत ने कहा क्या था। 14 जनवरी 2020 की बात है, तमिल पत्रिका तुगलक की पचासवीं सालगिरह थी और उसी अवसर पर रीडर्स कनेक्ट का कार्यक्रम रखा गया। इस कार्यक्रम में रजनीकांत भी पहुंचे और कहा
'सालेम में 1971 के साल में पेरियार ने एक रैली निकाली थी। रैली में भगवान श्री रामचंद्र और सीता की ऐसी मूर्तियां थी जिसमें कपड़े नहीं पहनाए गए थे। मूर्तियों पर चप्पल की माला पहनाई गई थी। तब किस किसी समाचार संस्थान ने इसे प्रकाशित नहीं किया था।'
रजनीकांत के इस बयान के बाद तमिल कि राजनीति में घमासान मच गया। कई संगठनों ने रजनीकांत के घर के बाहर प्रदर्शन भी किया। मामले को बढ़ता देख रजनीकांत अपने घर से बाहर आए और कुछ पुरानी अखबार की कटिंग लहराकर रजनीकांत ने कहा कि मैंने पेरियार के बारे में जो कहा वो मनगढंत नहीं था। जिस बयान को मुद्दा बनाया जा रहा है, उसमें कुछ गलत नहीं है। साल 1971 में ये मसला उठा था, तब अखबारों में ये सब छप चुका है मैंने कुछ गलत नहीं कहा है। मैं माफी नहीं मांगूंगा और मेरे पास मौजूद पत्रिकाएं ये साबित करती हैं कि मैंने जो कहा वो सच है।
कभी रजनीकांत की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाने वाले उनके आलोचक रहे सुब्रह्मण्यम स्वामी रजनीकांत के साथ आकर खड़े हो गए। राजनीति कि यही तो सबसे बड़ी खूबसूरती है कि यहां कब दोस्त दुश्मन बना जाता है और कब आलोचक समर्थक, इसका पता ही नहीं चलता। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि रजनीकांत द्वारा पेरियार के ख़िलाफ़ बयान देना यह दिखाता है कि उन्होंने काफ़ी सोच-समझ कर मजबूती से स्टैंड लिया है। बीजेपी सांसद स्वामी ने कहा कि सुपरस्टार को कभी भी किसी भी प्रकार की कानूनी मदद की ज़रूरत पड़ती है तो वो इस मामले में कोर्ट में उनका पक्ष रखने को तैयार हैं। ख़ुद स्वामी ने स्वीकार किया कि रजनीकांत को लेकर उनके रुख में बदलाव आया है। उन्होंने माना कि पेरियार ने 1971 की एक रैली में भगवान राम व मां सीता का अपमान किया था और बाद में ‘तुग़लक़’ पत्रिका ने इसे प्रकाशित भी किया था।
For a change I am on the side of Rajnikant on the E. V. R. Naicker 1971 rally issue of parading Ram and Sita in a derogatory. This is a fact and Cho had published it in Thuglak. If the cine actor stays firm I will back him in courts if he wants
— Subramanian Swamy (@Swamy39) January 21, 2020
पेरियार को लेकर इतना बवाल मचा है तो उनके बारे में भी आपको विस्तार से बता देते हैं।
ईवी रामास्वामी पेरियार भारतीय राजनीति की सबसे विवादित हस्तियों में से एक हैं। तमिलनाडु के सामाजिक-राजनीतिक हालात पर पेरियार का गहरा असर है। तमिलनाडु के भीतर कोई भी पार्टी खुले रूप में पेरियार की आलोचना नहीं कर सकती। वो पेरियार ही थे जिन्होंने द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत की और डीएमके, एआईएडीएमके और एमडीएमके इसी आंदोलन की पैदाइश हैं। ‘एशिया का सुकरात’ कहे जाने वाले पेरियार का जन्म 1879 में एक धार्मिक हिंदू परिवार में हुआ था। इसके बावजूद, ताउम्र उन्होंने धर्म का विरोध किया। हिंदू धर्म की कुरीतियों पर इतनी मुखरता से अपनी बात रखी कि बहुत से लोगों को यह उनकी ‘आस्था पर प्रहार’ लगा।
गांधी जी के थे शिष्य बाद में बने उनके आलोचक
पेरियार महात्मा गांधी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसी दौरान उन्होंने 1924 में केरल में हुए वाइकोम सत्याग्रह में अहम भूमिका निभाई। लेकिन बाद में वो गांधी के प्रमुख आलोचकों में से एक थे। मोहम्मद अली जिन्ना और डॉ बीआर अंबेडकर के अलावा, पेरियार ही वो तीसरी बड़ी शख्सियत रहे जिन्होंने खुलकर महात्मा गांधी का विरोध किया। जब गांधी की हत्या हुई तो पेरियार बेहद दुखी थी और भारत का नाम ‘गांधी देश’ रखने की मांग की थी। लेकिन कुछ समय बाद ही, उन्होंने गांधी को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया था। दिसंबर 1973 में दिए अपने आखिरी भाषण में भी पेरियार ने कहा था, “हम गांधी का संहार करते, उससे पहले ब्राह्मणों ने हमारा काम कर दिया।” आजादी से पहले जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग उठाई और उसी का सहारा लेकर पेरियार ने द्रविड़नाडु की मुहिम तेज कर दी थी। 1940 में पेरियार और जिन्ना के बीच इसे लेकर तीन मुलाकातें भी हुईं मगर गैर-मुस्लिम की मांग को सपोर्ट से जिन्ना ने इनकार कर दिया। केरल का वाइकोम सत्याग्रह दलितों को यहां स्थित एक प्रतिष्ठित मंदिर में प्रवेश दिलाने और मंदिर तक जाती सड़कों पर उनकी आवाजाही का अधिकार दिलाने का आंदोलन था। इसके अलावा उन्होंने राज्य में हिंदी के खिलाफ भी आंदोलन किया।
पेरियार ने ताउम्र हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद का जमकर विरोध किया। उन्होंने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया। जाति प्रथा का घोर विरोध किया। यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन का पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा था। लेकिन उन्होंने कुछ ऐसी भी बाते कहीं जिसको लेकर अक्सर विवाद भी होता रहा है। आइए जानते हैं पेरियार की ओर से कही कुछ विवादित बातों के बारे में।
- मैंने सब कुछ किया, मैंने गणेश आदि सभी ब्राह्मण देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ डालीं। राम आदि की तस्वीरें भी जला दीं। मेरे इन कामों के बाद भी मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की गिनती में लोग इकट्ठा होते हैं तो साफ है कि 'स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव होना जनता में, जागृति का सन्देश है।'
- दुनिया के सभी संगठित धर्मों से मुझे सख्त नफरत है।
- शास्त्र, पुराण और उनमें दर्ज देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वो सारे के सारे दोषी हैं। मैं जनता से उन्हें जलाने तथा नष्ट करने की अपील करता हूं।
- 'द्रविड़ कड़गम आंदोलन' का क्या मतलब है? इसका केवल एक ही निशाना है कि, इस आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था का अंत कर देना, जिसके कारण समाज ऊंच और नीच जातियों में बांटा गया है। द्रविड़ कड़गम आंदोलन उन सभी शास्त्रों, पुराणों और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाए रखे हैं।
- ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है। वो खुद आरामदायक जीवन जी रहा है। तुम्हें अछूत कहकर निंदा करता है। मैं आपको सावधान करता हूं कि उनका विश्वास मत करो।
- ब्राह्मणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है. अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर और देवी-देवताओं की रचना की।
- सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए हैं तो फिर अकेले ब्राह्मण को उच्च व अन्य को नीच कैसे ठहराया जा सकता है?
- आप अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई क्यों इन मंदिरों में लुटाते हो। क्या कभी ब्राह्मणों ने इन मंदिरों, तालाबों या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया?
- हमारे देश को आजादी तभी मिली समझनी चाहिए, जब ग्रामीण लोग, देवता, अधर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएंगे।
- आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर संदेश और अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं। हम ब्राह्मणों द्वारा श्राद्धों में परलोक में बसे अपने पूर्वजों को चावल और खीर भेज रहे हैं। क्या ये बुद्धिमानी है?
- ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है। ये स्थिति उन्हीं के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो।
- ब्राह्मणों के पैरों पर क्यों गिरना? क्या ये मंदिर हैं? क्या ये त्यौहार हैं? नहीं, ये सब कुछ भी नहीं हैं। हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है|
- ब्राह्मण देवी-देवताओं को देखो, एक देवता तो हाथ में भाला/ त्रिशूल उठाकर खड़ा है। दूसरा धनुष बाण। अन्य दूसरे देवी-देवता कोई गुर्ज, खंजर और ढाल के साथ सुशोभित हैं, यह सब क्यों है? एक देवता तो हमेशा अपनी ऊँगली के ऊपर चारों तरफ चक्कर चलाता रहता है, यह किसको मारने के लिए है?
- उन देवताओं को नष्ट कर दो जो तुम्हें शूद्र कहे, उन पुराणों और इतिहास को ध्वस्त कर दो, जो देवता को शक्ति प्रदान करते हैं। उस देवता की पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला और बौद्धगम्य है।
पेरियार द्रविड़ आंदोलन के बड़े नायकों में से एक थे इसमें कोई शक नहीं। सार्वजनिक जीवन में उन्होंने कई ऐसे काम किए जिनका खास उद्देश्य था। पेरियार की राजनीति को उत्तर भारत के संदर्भ से देखेंगे तो पेरियार के कई ऐसे काम हैं जो हमें आपत्तिजनक लग सकते हैं क्योंकि जिनके लिए भी हिन्दू देवी देवता अराध्य हैं उन्हें पेरियार की राजनीति ठीक नहीं लगेगी और खुद पेरियार के लोगों ने आखिरी दौर में उनका साथ छोड़ दिया था। एक सियासी जिंदगी होती है जिसके कई रंग होते हैं। ऐसे में पेरियार को लेकर भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले या धारणा बनाने से पहले उन्हें और पढ़े जाने की जरूरत है।
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