नागरिकता संशोधन कानून से पूर्वोत्तर के इलाके बाहर क्यों? क्या है इनर लाइन परमिट जो कई क्षेत्रों को सीएए के दायरे से बाहर रखता है
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 लागू हुआ, पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाएगा, जिसमें संविधान की 6 वीं अनुसूची के तहत विशेष दर्जा प्राप्त क्षेत्र भी शामिल हैं। आज एमआरआई में बात करेंगे भारत के ऐसे ही राज्यों के बारे में और भारत के आंतरिक वीजा यानी इनर लाइन परमिट के बारे में।
नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को मोदी सरकार ने 11 मार्च को लागू कर दिया। लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने सीएए के नियमों को नोटिफाइ करने की जानकारी दी है। जिसके बाद लोगों के बीच कई तरह के सवाल और संशय हैं। इसी बीच कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्होंने इसे लागू करने से इनकार कर दिया है। लेकिन क्या राज्यों के पास ऐसा करने का अधिकार है? नियम क्या कहते हैं। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 लागू हुआ, पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाएगा, जिसमें संविधान की 6 वीं अनुसूची के तहत विशेष दर्जा प्राप्त क्षेत्र भी शामिल हैं। आज एमआरआई में बात करेंगे भारत के ऐसे ही राज्यों के बारे में और भारत के आंतरिक वीजा यानी इनर लाइन परमिट के बारे में।
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इन राज्यों में लागू नहीं होगा
CAA इनर लाइन परमिट वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर में लागू है। अधिसूचित किए गए कानून के नियमों का हवाला देते हुए अधिकारियों ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र, जहां संविधान की 6 वीं अनुसूची के तहत स्वायत्त परिषदें बनाई गई थीं, उन्हें भी सीएए के दायरे से छूट दी गई थी। असम, मेघालय और त्रिपुरा में ऐसी स्वायत्त परिषदें अस्तित्व में हैं। इनमें असम में कार्बी आंगलोंग, दिला हसाओ और बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल क्षेत्र, मेघालय में गारो हिल्स और त्रिपुरा में आदिवासी क्षेत्र शामिल हैं।
इनर लाइन परमिट (आईएलपी) है क्या?
इनर लाइन परमिट एक यात्रा दस्तावेज़ है, जिसके जरिए देश का कोई भी नागरिक देश के किसी खास हिस्से में घूमने के लिए जाने के लिए या फिर नौकरी करने के लिए जा सकता है। इसे बंगाल-ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन एक्ट 1873 के तहत जारी किया जाता था। इसकी शुरूआत अंग्रेजों के जमाने से हुई थी जब अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए इस दस्तावेज को बनाया था। आजादी के बाद भी इनर लाइन परमिट लागू रहा लेकिन वजह बदल गई। भारत सरकार के अनुसार आदिवासियों की सुरक्षा के लिए ये इनर लाइन परमिट जारी किया जाता है। आसान भाषा में कहे तो ये इनर लाइन परमिट भारत सरकार की ओर से भारत के ही लोगों को दिया जाने वाला एक तरह का वीजा है।
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कैसे एवं कहां बनता है आईएलपी
प्रतिबंधित क्षेत्रों की यात्रा के लिए ये दस्तावेज़ बनवाने के लिए आपको अपने 10-20 पासपोर्ट साइज़ फोटो के साथ ही कोई एक सरकारी पहचानपत्र की फोटोकॉपी की ज़रूरत होती है। फोटो सफ़ेद बैकग्राउंड वाली ही लें। बाकी अच्छा हो कि आप अपने साथ पेन और फार्म पर फोटो चिपकाने के लिए गम का छोटा डिब्बा रख लें। अक्सर ये चीजें अनचाही परेशानी बन जाती है ध्यान दें की सरकारी पहचान पत्र में आपका पेन कार्ड मान्य नहीं है। वहीँ 10 या उससे ज्यादा फोटो ले जाने से आपको एक राज्य से दूसरे या एक डिस्ट्रिक्ट से दूसरे के लिए नया आईएलपी बनाने में सहूलियत रहेगी क्योंकि कई जगह नए आईएलपी की ज़रूरत आन पड़ती है।
कहां-कहां परमिट लेने की जरूरत होती है
सिक्किम में त्सोमगो बाबा मंदिर यात्रा, सिंगालीला ट्रेक, नाथुला दर्जा जैसी जगहें संरक्षित क्षेत्रों के अंतर्गत आती हैं। यहां यात्रा के लिए प्रवेश परमिट लेने की जरूरत होती है। मिजोरम कई जनजातियों का घर है, जिनमें लुशेई, राल्ते, हमार, पैहते और पावी शामिल है। राज्य सरकार आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए गैर मूल निवासियों के लिए इनर लाइन परमिट जारी करती है। भारत के तीन राज्य अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम इन राज्यों के किसी भी हिस्से में जाने के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में भी ऐसा ही है। लेह जिले में जाने के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत पड़ती है।
दो तरह के परमिट होते हैं एक तो टूरिस्ट इनर लाइन परमिट- इसकी अवधि कम वक्त के लिए होती है। ये एक हफ्ते के लिए जारी किया जाता है।
जॉब इनर लाइन परमिट- इसकी अवधि ज्यादा होती है। एक साल का इनर लाइन परमिट बनाया जाता है।
CAA नियमों के प्रमुख प्रावधान
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन के लिए नियमों को आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया, यह कदम आसन्न लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले अपेक्षित था। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा तैयार और 2019 में संसद द्वारा पारित नियमों का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है, जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आए थे। योग्य समुदायों में हिंदू, सिख शामिल हैं , जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई। नियमों में यह भी कहा गया है कि आवेदकों को स्थानीय स्तर पर प्रतिष्ठित सामुदायिक संस्थान द्वारा जारी पात्रता प्रमाण पत्र प्रदान करना होगा, जिसमें पुष्टि की गई हो कि वह "हिंदू/सिख/बौद्ध/जैन/पारसी/ईसाई समुदाय से हैं और उपरोक्त समुदाय के सदस्य बने रहेंगे।
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