जयललिता को धीमा जहर, मोदी की गुजराती नर्स वाली सलाह और अब 600 पन्नों की रिपोर्ट, क्या अम्मा को चिन्म्मा ने मारा?
अरुमुघस्वामी आयोग ने सरकार से उन कई लोगों की जांच करने को कहा है जिन पर उसने आरोप लगाया है। इस बीच शशिकला ने अपने ऊपर लगे आरोपों से साफ इनकार किया है। उन्होंने कहा कि “जिन लोगों में अम्मा [जयललिता] को राजनीतिक रूप से लेने का साहस नहीं था, उन्होंने उनकी मृत्यु का राजनीतिकरण करने का तुच्छ कार्य किया है।
छह साल पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत हो गई थी। मौत की वजह बीमारी बताई गई। लेकिन अब जयललिता की मौत की जांच के लिए बने कमीशन की रिपोर्ट आई है। पता चल रहा है कि इस मौत के पीछे साजिश हो सकती है। ये साजिश जयललिता की सबसे पक्की, करीबी सहेली शशिकला की हो सकती है। ये साजिश शशिकला की महत्वकांक्षा से निकली हो सकती है। तमिलनाडु की पूर्व सीएम जे जयललिता की मौत की जांच कर रहे आयोग ने उनकी करीबी रही शशिकला पर दोष मढ़ा है। जस्टिस ए अरुमुगास्वामी आयोग ने जयललिता की मौत में शशिकला की जांच की सिफारिश की है। जांच रिपोर्ट में डॉक्टर केएस शिवकुमार, तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन, पूर्व मंत्री विजय भास्कर पर भी ऊंगली उठाई है।
क्या है पूरा मामला
एआईएडीएमके की पूर्व चीफ जयललिता की 5 दिसंबर 2016 को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया था। वे करीब 2 महीने तक अस्पताल में भर्ती रही थीं। उस समय वे मुख्यमंत्री पद पर थीं मेडिकल बुलेटिन में दिल के दौरे को मौत की वजह बताया गया था। जयललिता के बीमार पड़ने से उनका निधन होने तक शशिकला उनके साथ मौजूद थीं। 1991 में जब जयललिता पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तब शशिकला उनके करीब आईं। दोनों की जोड़ी तमिल राजनीति में इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग जयललिता को अम्मा और शशिकला को चिन्नमा कहने लगे थे।
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पन्नीरसेल्वम ने सवाल उठाया तो पल्लानीस्वामी ने जांच बैठाई
पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके के कई नेताओं ने उनके निधन को लेकर सवाल उठाया था। नेताओं का कहना था कि उनकी सहयोगी शशिकला और उनके परिवार के सदस्यों ने इस मामले में काफी कुछ छिपाया है। इसके बाद पल्लानीस्वामी की सरकार ने जांच बिठाई। इसके अलावा डीएमके ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि वे जयललिता की मौत के बारे में सच्चाई सामने लाएंगे।
शशिकला की कहानी
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार शशिकला ने जयललिता से मिलने के लिए अपने पति (जिन्होंने 1976 में अपनी सरकारी नौकरी खो दी थी) के कुछ संपर्कों का इस्तेमाल किया था। जयललिता उस समय एक उभरती हुई सितारा और करिश्माई एमजी रामचंद्रन की बहुत करीबी सहयोगी थीं। एमजीआर की मृत्यु के बाद के मुश्किल दिनों में जब जयललिता को पार्टी ने दरकिनार कर दिया, तो शशिकला ने जया को सुरक्षित रखने के लिए अपने संपर्कों का यूज किया। इसके बाद ही दोनों की दोस्ती और मजबूत हुई। फिर, घटनाओं के एक चौंकाने वाले मोड़ में शशिकला और उनके पूरे दल को जयललिता के पोएस गार्डन घर से बाहर निकाल दिया गया और पार्टी कार्यकर्ताओं को उन्हें दूर रखने की चेतावनी दी गई। तहलका की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ऐसा इसलिए था क्योंकि जयललिता ने शशिकला द्वारा धीमा जहर पिलाकर उसे मारने की साजिश का पता चला था। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयललिता को इस बारे में चेतावनी दी थी और यहां तक कि उनकी चिकित्सा जरूरतों की देखभाल के लिए एक भरोसेमंद गुजराती नर्स को भेजने की पेशकश की थी। अरुमुघस्वामी आयोग ने कहा कि शशिकला की भतीजी कृष्णाप्रिया ने बयान दिया था कि "जयललिता को शशिकला और उनके रिश्तेदारों पर शक था और इस वजह से उन्होंने उन्हें पोएस गार्डन से भेज दिया। उसके बाद दिवंगत सीएम और शशिकला के बीच कोई सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं थे। बाद में राजनीति में दखल नहीं करने के बारे में शशिकला से ख़त मिलने के बाद ही जयललिता ने उन्हें पोएस गार्डन स्थित आवास में लौटने की अनुमति दी थी। एक बार जब शशिकला ने जयललिता की दुनिया में फिर से प्रवेश किया, तो चीजें सामने आने लगीं। सितंबर 2016 में चेन्नई के अपोलो अस्पताल ने एक बयान जारी किया कि जयललिता को बुखार और निर्जलीकरण के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाद के दिनों में अस्पताल से कई बुलेटिनों में दावा किया गया कि मुख्यमंत्री ठीक हो रही हैं।
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मारने की साजिश?
एक बार जयललिता के अस्पताल में भर्ती होने के बाद, डॉक्टरों ने शशिकला को उनके निदान के बारे में सूचित किया और इलाज के लिए उनसे निर्देश लिया। यह देखते हुए कि जीवन रक्षक उपचार के संबंध में स्पष्ट सलाह दी गई थी, यह स्पष्ट लगता है कि शशिकला ने इसे अनदेखा करना चुना। इस बीच, रिपोर्ट्स का कहना है कि शशिकला के रिश्तेदारों ने अस्पताल में 10 कमरों पर कब्जा कर लिया। आयोग ने उल्लेख किया कि तत्कालीन राज्यपाल प्रभारी सी विद्यासागर राव ने तीन बार अस्पताल जाने की औपचारिकताएं पूरी कीं और राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में यह उल्लेख नहीं किया कि वह "गंभीर स्थिति" में थीं, भले ही उन्हें अवगत कराया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल और उसके डॉक्टर, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन और उनके निजी चिकित्सक शिवकुमार, सभी जयललिता को इलाज के लिए विदेश ले जाने के खिलाफ थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अपोलो अस्पताल के अध्यक्ष प्रताप सी रेड्डी ने मीडिया को झूठा बयान दिया कि मुख्यमंत्री को किसी भी समय छुट्टी दी जा सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने दिल की बीमारियों और दिवंगत मुख्यमंत्री को दिए जाने वाले इलाज के बारे में वास्तविक तथ्य का खुलासा नहीं किया।
अब क्या हुआ?
अरुमुघस्वामी आयोग ने सरकार से उन कई लोगों की जांच करने को कहा है जिन पर उसने आरोप लगाया है। इस बीच शशिकला ने अपने ऊपर लगे आरोपों से साफ इनकार किया है। उन्होंने कहा कि “जिन लोगों में अम्मा [जयललिता] को राजनीतिक रूप से लेने का साहस नहीं था, उन्होंने उनकी मृत्यु का राजनीतिकरण करने का तुच्छ कार्य किया है। लेकिन लोग इस तरह के कार्यों का समर्थन नहीं करेंगे।"तीन पन्नों के बयान में शशिकला ने कहा कि आयोग के निष्कर्ष अनुमानों पर आधारित हैं। मैंने अम्मा के इलाज में एक बार भी दखल नहीं दिया। यह मेडिकल टीम थी जिसने किए जाने वाले परीक्षणों, दवाओं को प्रशासित करने और उचित उपचार देने का निर्णय लिया। मैं केवल यह सुनिश्चित करना चाहता था कि अम्मा को प्रथम श्रेणी की चिकित्सा देखभाल दी जाए। अब यह राज्य सरकार पर निर्भर है कि वह आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करे या उनकी उपेक्षा करे। -अभिनय आकाश
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