Violent Selfie Lovers का पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बना राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री का निवास, देश कई हालात वही, पड़ोसियों के फेर में भारत के लिए मुश्किल नई

Violent
ANI/@trahmanbnp
अभिनय आकाश । Aug 6 2024 4:43PM

वैसे बांग्लादेश से पहले कई पड़ोसी देश भारत के लिए ऐसी चुनौतियां पेश कर चुके हैं। भारत का पूरा पड़ोस इस वक्त अस्थिरता से घिरा हुआ है। पड़ोस की अस्थिरता भारत के लिए तमाम समस्याएं पैदा कर सकती हैं।

5 अगस्त 2024 का दिन बांग्लादेश के इतिहास का सबसे अराजक दिन साबित हुआ। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अब पूर्व प्रधानमंत्री हो गई हैं। उन्होंने अपना पद छोड़ दिया है। शेख हसीना हिंदुस्तान आ गई हैं। शुरुआत में ऐसी अटकलें लगाई जा रही थी कि वो हिंदुस्तान ज्यादा देर नहीं रुकेंगी। यहां से वो लंदन जा सकती हैं। लेकिन ब्रिटेन ने फिलहाल शेख हसीना को शरण देने से इनकार कर दिया है। वहीं बांग्लादेश से इन सब के बीच कई तरह की खबरें आ रही है। शेख हसीना की पार्टी के नेताओं पर हमले की खबर है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले की भी खबर है। प्रधानमंत्री के आवास पर भी अराजकता का माहौल देखने को मिला। जिसके हाथ जो लगा वो वही लेकर चलता बना। पूरी तरह से लूटपाट मच गया। जब उथल-पुथल के बीच शासन का पतन हो जाता है, जब कोई नेता देश छोड़कर भाग जाता है, तो क्रोधित प्रदर्शनकारियों या विजयी सेनाओं का पसंदीदा स्थान दिवंगत नेता का आधिकारिक घर होता है। इसमें प्रवेश करना, नियंत्रण अपने हाथ में लेना, उस क्षण को कैद करने के लिए तस्वीरें खींचना यही सब कुछ है जो कब्ज़ा करने वाले सशस्त्र समूह तलाशते हैं। प्रदर्शनकारियों के लिए, यह गुस्सा निकालने, सत्ता की कुर्सी पर मौज-मस्ती करने और अच्छाइयों को छीनने, उच्च जीवन के लाभों का आनंद लेने, भले ही कुछ घंटों के लिए ही क्यों न हो, के बारे में है। ढाका में इसका एक रूप तब देखा गया जब युवा बांग्लादेशी हसीना के आधिकारिक आवास के आसपास घूमते रहे। हाल ही में कोलंबो और काबुल ने भी ऐसा ही किया। बांग्लादेश में अस्थिरता भारत के लिए खासकर बड़ी चुनौती होने वाली है। बांग्लादेश भारत का मित्र देश है और शेख हसीना से भारत के बहुत अच्छे संबंध रहे हैं। अब बदली परिस्थितियों से निपटना भारत के लिए  बड़ी चुनौती होगी। दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नई दिल्ली में सीसीएस की मीटिंग भी हुई। वैसे बांग्लादेश से पहले कई पड़ोसी देश भारत के लिए ऐसी चुनौतियां पेश कर चुके हैं। भारत का पूरा पड़ोस इस वक्त अस्थिरता से घिरा हुआ है। पड़ोस की अस्थिरता भारत के लिए तमाम समस्याएं पैदा कर सकती हैं। 

इसे भी पढ़ें: Bangladesh में दंगों के बीच अमेरिका में भी हमले शुरू, वाणिज्य दूतावास पर कट्टरपंथियों ने बोल दिया धावा

बांग्लादेश 

शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ने के बाद प्रदर्शनकारी नारेबाजी करते हुए ढाका में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास 'गणभवन' में घुस गए। वायरल तस्वीरों और विडियो में प्रदर्शनकारियों को प्रधानमंत्री आवास का सामान उठाकर ले जाते हुए देखा जा रहा है। लोग वहां सोफे कुर्सिया उठाकर ले गए। जिसके हाथ जो लगा लेता चलता बना। तकिया और महंगे बर्तन चोरी कर लिए गए। अंदर एक लड़का बेड पर लेटा नजर आया और बाकी लोग उसका विडियो शूट कर रहे थे। वहां तैनात सुरक्षाकर्मी लोगों को समझाते नजर आए लेकिन वहां जमकर तोड़‌फोड़ की गई। नजारा वैसा ही था जब 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान में राष्ट्रपति पैलेस पर कब्जा किया था और  जिस तरह श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन पर भीड़ का कब्जा हुआ था। 

पाकिस्तान

पड़ोसी देश पाकिस्तान काफी समय से इस तरह की राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। इस साल फरवरी में हुए पाकिस्तान के आम चुनावों में धांधली के जमकर आरोप लगे। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई को आम चुनाव में लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इसके बावजूद पीटीआई के नुमाइंदे निर्दलीय चुनाव लड़कर पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में पहुंचे। लेकिन सरकार बनाने में कामयाब नहीं रहे और नवाज शरीफ की पीएमएन-एल और बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी ने मिलकर सरकार बनाई। सेना के सहयोग से इस गठबंधन का सत्ता में आना इमरान खान के लिए मुसीबत बना। उन्हें एक के बाद एक कई मामलों के तहत जेल में रखा गया। उनकी मुसीबतों का अंत नहीं हो रहा है। पाकिस्तान में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। पार्टी के संस्थापक और पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान ने जेल में एक साल पूरा कर लिया। 8 फ़रवरी का चुनाव मोबाइल इंटरनेट शटडाउन, गिरफ़्तारियों और हिंसा के कारण प्रभावित हुआ और परिणामों में असामान्य रूप से देरी के कारण यह आरोप लगने लगे कि वोट में धांधली हुई थी। उधर पाकिस्तान अपने इतिहास के सबसे खराब आर्थिक दौर से गुजर रहा है। 

इसे भी पढ़ें: हसीना भागी नहीं होतीं तो उनकी हत्या हो जाती, बांग्लादेश तख्तापलट पर बोले फारूक अब्दुल्ला, यह तानाशाहों के लिए सबक

नेपाल

नेपाल में भी राजनीतिक अस्थिरता का दौर है। पिछले महीने ही पुष्प कमल दहल प्रचंड सरकार गिरने के बाद नेपाल में केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में नई सरकार बनी। नेपाल कांग्रेस के समर्थन से ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ने फिर सरकार बनाई। लेकिन नेपाल में सरकार बनाने और गिरने का सिलसिला ऐसा है कि हर सरकार के कार्यकाल पर सवालिया निशान लगे रहते हैं। 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद से नेपाल में अब तक 14 बार सरकार बन चुकी है। राजनीतिक अस्थिरता नेपाल के आर्थिक व्यवस्था से भी सीधे तौर पर जुड़ी है। हालात ये है कि नेपाल दक्षिण एशिया का सबसे गरीब देश है और दुनिया में गरीबी के मामले में 17वें स्थान पर है। नेपाली प्रधानमंत्रियों ने ज्यादातर पहले भारत का दौरा किया, कुछ अपवादों के साथ उन्होंने चीन को अपने पहले गंतव्य के रूप में चुना। बीते कुछ सालों से चीन के पैसे और संसाधनों पर नेपाल का आश्रित होना मुश्किलें खड़ी कर सकता है। काठमांडू में राजनीतिक घटनाक्रम पर प्रतिद्वंद्वियों नई दिल्ली और बीजिंग द्वारा बारीकी से नजर रखी जाती है, जो नेपाल में विकास सहायता और बुनियादी ढांचे में निवेश करते हैं और भू-राजनीतिक प्रभाव के लिए प्रयास करते हैं। ओली ने 2015-2016 में अपने पहले कार्यकाल में बीजिंग के साथ एक पारगमन समझौते पर हस्ताक्षर करके नेपाल को चीन के करीब ले लिया, जिससे भूमि से घिरे नेपाल के विदेशी व्यापार पर भारत का एकाधिकार समाप्त हो गया।

श्रीलंका 

चीन के कर्जजाल में फंसे श्रीलंका का हाल ठीक दो साल पहले की तस्वीरों से देखा जा सकता है। जब श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी थी। महंगाई से जनता परेशान हो गई और विरोध प्रदर्शनों में लोग मारे जा रहे थे। वहां भी पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को जनता के दबाव में देश छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा था। वहां की गुस्साई जनता राष्ट्रपति के महल और प्रधानमंत्री के निवास में घुस गई थी। 

म्यांमार

म्यांमार में 2021 से सैन्य जुंटा का शासन है। आज, आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार को तख्तापलट में हटाने के तीन साल बाद, म्यांमार के सत्तारूढ़ जनरल अभूतपूर्व दबाव में हैं। रुकी हुई अर्थव्यवस्था के बीच सैन्य शासन के ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह ज़ोर पकड़ रहा है। फरवरी 2021 के तख्तापलट के बाद प्रदर्शनों पर हिंसक कार्रवाई से एक प्रतिरोध आंदोलन छिड़ गया, क्योंकि हजारों युवा प्रदर्शनकारियों ने हथियार उठा लिए और सेना से लड़ने के लिए कई स्थापित जातीय विद्रोही समूहों के साथ संयुक्त सेना बना ली। युद्धक्षेत्र में विफलता की एक दुर्लभ स्वीकारोक्ति में, विद्रोहियों द्वारा प्रमुख क्षेत्रीय सेना मुख्यालय पर नियंत्रण कर लेने की घोषणा के बाद, म्यांमार के जुंटा ने चीनी सीमा के पास एक प्रमुख सैन्य अड्डे पर वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संचार खो दिया है। म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी (एमएनडीएए) विद्रोही समूह, जिसने 25 जुलाई को कहा था कि उसने बेस पर कब्जा कर लिया है, लेकिन पूर्ण नियंत्रण हासिल करने के लिए लड़ता रहा, ने शनिवार को लाशियो शहर में सैन्य गढ़ में अपने सैनिकों की तस्वीरें पोस्ट कीं।

For detailed delhi political news in hindi, click here

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़