इस्लामिक स्टेट बनाम इस्लामिक अमीरात और ISIS का खुरासान मॉड्यूल, जिसे तालिबान से भी खूंखार माना जाता है
इस्लामिक स्टेट पहला ऐसा चरमपंथी संगठन है जिसने तालिबान के उस वक्त के नेता मुल्ला उमर की सत्ता को सीधी चुनौती दी थी। मुल्ला उमर को इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान के आमिर उल मोमिन माना जाता था।
19 अगस्त को अपने साप्ताहिक अखबार अल नाबा में एक संपादकीय में इस्लामिक स्टेट ने तालिबान की जीत पर लिखा कि ये अमन के लिए जीत है, इस्लाम के लिए नहीं। ये सौदेबाज़ी की जीत है न कि जिहाद की। संपादकीय ने अफ-पाक क्षेत्र में आईएस को कमजोर करने के लिए "इस्लाम की आड़" में "नए तालिबान" की आलोचना की और सवाल किया कि क्या यह अफगानिस्तान में शरिया लागू करेगा। संपादकीय में यह भी कहा गया है कि वह जिहाद के एक नए चरण की तैयारी कर रहा है। आईएस की तरफ से तालिबान को एक ऐसा 'बहुरूपिया' करार दिया जिसका इस्तेमाल अमेरिका मुसलमानों को बरगलाने और क्षेत्र से इस्लामिक स्टेट की उपस्थिति ख़त्म करने के लिए कर रहा है।
क्या है आईएस का खुरासान मॉड्यूल?
काबुल एयरपोर्ट को लेकर जो डर था वही हुआ। जो हामिद करजई एयरपोर्ट हजारों लोगों की भीड़ से दुनिया का ध्यान खींच रहा था। वो एक के बाद एक धमाकों से दहल गया। जो काबुल एयरपोर्ट तालिबान के अत्याचार से बचने का एकमात्र जरिया बना हुआ था। उसे आतंक ने खौफ से भर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने काबुल पर आतंकी हमले की आशंका जताते हुए आईएसआईएस के का नाम लिया था। 14 अगस्त के बाद से काबुल एयरपोर्ट पर लगातार भीड़ बढ़ रही थी। नाटो देश के सैनिक अफगान नागरिकों की मदद भी कर रहे थे। लेकिन इस तरह के हालात अमेरिकी सुरक्षा बलों को डरा रहे थे क्योंकि आतंकवादी इसका फायदा उठा सकते थे, खासकर आईएसआईएस। जिसे अफगानिस्तान-पाकिस्तान के आतंकवादी चलाते हैं। इसका मुख्यालय अफगानिस्तान का नांगरहार राज्य है जो पाकिस्तान के बेहद नजदीक है। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच होने वाले नशीले पदार्थों का कारोबार और मानव तस्करी के रास्ते इसके पास से ही गुज़रते हैं। तालिबानी कमांडर मुल्ला उमर की मौत के बाद तालिबान के बहुत सारे खूंखार आतंकवादी आईएसआईएस खुरासान में शामिल हो गए। इस आतंकी संगठन का मकसद इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान बनाना है। खुरासान एक फारसी शब्द है जिसका मतलब होता है जहां से सूरज उगता है। तीसरी-चौथी सदी में अरब से निकले लोग आज के ईरान पहुंचे जहां वो आबाद हुए उसका नाम खुरासान पड़ा। जिसका दायरा बढ़ता गया और वो एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा। बाद में बगदादी की नजर खुरासान पर पड़ी और उसने आतंक का खुरासान नक्शा तैयार किया। आईएस खुरासान में तालिबान छोड़ने वाले और विदेशी लड़ाके, दोनों शामिल हैं। इस संगठन को बेहद क्रूर माना जाता है। ये संगठन 'इस्लामिक स्टेट' के वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है जिसका मक़सद पश्चिमी, अंतरराष्ट्रीय और मानवतावादी ठिकानों को निशाना बनाना है, चाहे वे कहीं भी हों।
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अमेरिका से आईएसआईएस खुरासान की दुश्मनी
we will not let them stop us, the mission will go on. अमेरिकी राष्ट्रपति का कड़ा संदेश की मिशन किसी भी कीमत पर रूकने वाला नहीं है। जो भी अमेरिकन अफगानिस्तान में तालिबान संकट के बीच फंसे हैं उन्हें वहां से रेसक्यू कर लिया जाएगा। अमेरिका पर आतंकी चोट करने वाला आईएसआईएस खपरासन मॉड्यूल है जो बगदादी के आईएसआईएस का ही ब्रांच है। 2015 में बने इस आतंकी गुट को पाकिस्तान की सरपरस्ती भी मिलती रही है। आईएसआईएस खुरासान एक शाखा है और पाकिस्तान का साथ इसे लगातार मिलता रहा है। अफगानिस्तान में काबुल एयरपोर्ट के पास हुए आत्मघाती हमलों में 90 लोगों की मौत हो गई, जबकि सैकड़ों लोगों के घायल होने की खबर है। खूंखार आतंकी संगठन आईएसआईएस खुरासान यानी इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रॉविन्स (ISKP) ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली है। अमेरिका से आईएसआईएस खुरासान की दुश्मनी इस वक्त से शुरू हुई जब अमेरिका द्वारा इसे तालिबान से बड़ा खतरा मानते हुए इस पर एयरस्ट्राइक शुरू की। इन हमलों की वजह से आईएसआईएस के की ताकत काफी कमजोर हो गई। एक वक़्त था जब इस्लामिक स्टेट के पास लड़ाकों की अच्छी खासी संख्या होती थी। अमेरिकी हमलों की वजह से साल 2016 में आईएसआईएस के में 1500 से 2000 आतंकी ही बचे थे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल इसके दो से ढाई हजार आतंकी सक्रिय है। हालांकि रूस का कहना है कि इस आतंकी संगठन में अब भी करीब 10,000 सदस्य हैं। 2017 से अब तक आईएस-के अफगानिस्तान में 100 से ज्यादा हमले कर चुका है। लेकिन 13 अप्रैल 2017 में अमेरिका ने इस आतंकी संगठन को सबसे बड़ी चोट पहुंचाई। अमेरिका ने उसके ठिकाने पर सबसे बड़ा गैर-परमाणु बम गिरा दिया। अमेरिका ने अफगानिस्तान के नांगहार राज्य में मदर ऑफ ऑल बम को आईएसआईएस मुख्यालय के ठीक ऊपर गिराया। जिसमें तीन दर्जन से ज्यादा आतंकवादी एक झटके में मारे गए। लेकिन इसके बावजूद ये धीरे-धीरे एक बड़े आतंकवादी संगठन में तब्दील हो गया। साल 2020 में शिहाब अल मुजाहिर को इसका नया लीडर घोषित किया गया। पिछले साल आईएसआईएस के ने सिखों के गुरुद्वारे पर हमले के अलावा काबुल में एक महिला अस्पताल को भी निशाना बनाया। इस हमले में 24 महिलाओं और नवजात बच्चों की मौत हो गई।
तालिबान और इस्लामिक स्टेट की अदावत
इस्लामिक स्टेट पहला ऐसा चरमपंथी संगठन है जिसने तालिबान के उस वक्त के नेता मुल्ला उमर की सत्ता को सीधी चुनौती दी थी। मुल्ला उमर को इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान के आमिर उल मोमिन माना जाता था। जिसका अर्थ होता है इस्लाम में आस्था रखने वालों का लीडर। इस्लामिक स्टेट मुल्ला उमर की खुलकर खिलाफत किया करता था। आईएसआईएस और तालिबान दोनों के ही कई मुद्दों को लेकर अलग-अलग राय है। चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट वैश्विक जिहाद की बात करता है, जो किसी देश की सीमा से बंधा हुआ नहीं है। वहीं दूसरी ओर तालिबान का मुख्य एजेंडा केवल अफगानिस्तान तक ही सीमित है। अफगानिस्तान को विदेशी कब्जे से मुक्त कराना उसका घोषित लक्ष्य रहा है। अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट की उपस्थिति को कमजोर करने में तालिबान का बड़ा हाथ माना जाता है। खासकर 2019 के साल में इस्लामिक स्टेट के खिलाफ तालिबान, अमेरिका और अफगान सुरक्षा बलों ने एक साथ मोर्चा खोल दिया। जिससे पूर्वी अफगानिस्तान में आईएस को अपना मजबूत किला गंवाना पड़ गया। इसके बाद से ही आईएसआईएस की ओर से तालिबान पर अमेरिका के साथ मिलीभगत के आरोप लगाया जाता रहा है। 2020 में तालिबान की ओर से अमेरिका से किए समझौते का एक मुख्य बिन्दु ये भी था कि वो अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल अन्य किसी जिहादी गुटों को नहीं करने देगा। इस पर इस्लामिक स्टेट की ओर से कहा गया था कि वो ऐसे किसी समझौतों से नहीं बंधे हुए है और अफगानिस्तान में अपना जिहाद जारी रखेंगे। आईएस-के पहले भी अफगानिस्तान में हमले कर चुका है। हाल ही में तालिबान ने आईएस-के 04 दहशतगर्दों को एयरपोर्ट के बाहर पकड़ने का दावा किया था।
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हक्कानी नेटवर्क के साथ आईएस का कनेक्शन
हक्कानी नेटवर्क के खलील हक्कानी जिसे काबुल की सुरक्षा की जिम्मेदारी तालिबान ने बीते दिनों सौंपी है। काबुल पर कब्जे के बाद से ही कई खूँखार कैदियों को जेल से रिहा किया गया उनमें कई आईएसआईएस के भी थे। अमेरिका ने ख़लील हक़्क़ानी के सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है। रिपोर्ट्स की मानें तो हक्कानी नेटवर्क और आईएसआईएस के बीच अच्छे संबध हैं। इस बुनियाद पर तालिबान के साथ उसका अपरोक्ष रूप से रिश्ता बन जाता है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 से 2021 के बीच कई प्रमुख हमलों में आईएसआईएस-के, हक़्क़ानी नेटवर्क और पाकिस्तान में सक्रिय अन्य चरमपंथी गुटों की साझेदारी वाली भूमिका रही है।
भारत के लिए कितना खतरा?
इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान के नक्शे में भारत का गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और जम्मू कश्मीर आता है। वहीं इसमें आधा चीन, पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान आता है। मध्य प्रदेश में ट्रेन ब्लास्ट की कोशिश और यूपी की राजधानी लखनऊ में हुए एक एनकाउंटर के बाद आतंकी संगठन आईएसआईएस के खुरासान मॉड्यूल का नाम अचानक चर्चा में आया था। इस आतंकी संगठन की जम्मू-कश्मीर में गहरी पैठ बताई जाती है। यह आतंकी संगठन लगातार भारत में गजवा-ए-हिंद एजेंडे के तहत युवाओं को आतंकी बनाने की कोशिश में लगा है। खूंखार आतंकी संगठन ISIS-K यानी इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रॉविन्स को भारत के अलावा अमेरिका और इराक ने आतंकी समूह घोषित किया है। यह संगठन गजवा ए हिंद के एजेंडे के तहत भारत पर भी कब्जा करने का ख्वाब देखता है।- अभिनय आकाश
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