80 के दशक से ही होटल बने राजनीति का केंद्र, जानें किन-किन राज्यों में रिजॉर्ट से हुई विधानसभा में एंट्री
विधायकों का लग्जरी रिसॉर्ट में ले जाना उन राज्यों में भारतीय राजनीति की एक अजीब विशेषता बन गई है, जहां स्पष्ट बहुमत नहीं है। यह चलन 80 के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन हाल के दिनों में यह और अधिक बढ़ गया है।
भारत में सरकार सिर्फ चुनाव से ही नहीं बनती, मैनेजमेंट से भी बनती है। उसके लिए जरूरत पड़ती है एक अदद होटल यी रिसॉर्ट की। सरकार, रिसॉर्ट और संकट ये तीन चीजें जब एक साथ एक पंक्ति में आ जाएं तो हर कोई बूझ लेगा कि कहानी क्या होने वाली है। बस सूबे का नाम, पार्टियों के नाम और नेताओं के नाम बदलते रहते हैं। विधायकों का लग्जरी रिसॉर्ट में ले जाना उन राज्यों में भारतीय राजनीति की एक अजीब विशेषता बन गई है, जहां स्पष्ट बहुमत नहीं है। यह चलन 80 के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन हाल के दिनों में यह और अधिक बढ़ गया है। एकनाथ शिंदे और शिवसेना के बागी विधायकों की 'रिसॉर्ट पॉलिटिक्स' इस लंबी सूची में एक अपना नाम दर्ज करा लिया।
कर्नाटक से हुई शुरुआत
कर्नाटक वर्षों से कई बार भारत में रिसॉर्ट राजनीति का केंद्र रहा है। लेकिन पहला मामला 80 के दशक में सामने आया। 1983 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने जनता पार्टी के लगभग 80 विधायकों को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विधानसभा भंग करने से रोकने के लिए बेंगलुरु के बाहरी इलाके में एक लक्जरी रिसॉर्ट में भेजा था। हेगड़े राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। 2011 में बीएस येदियुरप्पा 60 विधायकों को बेंगलुरु के पास एक रिसॉर्ट में ले गए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके उम्मीदवार सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया जाए। एक साल बाद ही येदियुरप्पा ने एक बार फिर रिसॉर्ट राजनीति का इस्तेमाल किया, लेकिन इस बार गौड़ा को मुख्यमंत्री के पद से हटाने और खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए। 2019 में फिर से रिसॉर्ट की राजनीति कांग्रेस, जद (एस) और भाजपा के त्रिकोणीय मुकाबले में विश्वास मत से पहले अपने विधायकों को रिसॉर्ट में रखा गया था, जिसमें बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को हराया था।
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देवी लाल विधयाकों को लेकर पहुंचे दिल्ली
1982 के त्रिशंकु विधानसभा ने हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और भाजपा गठबंधन को कांग्रेस के साथ नूरा-कुश्ती करते देखा। 92 सीटों की विधानसभा में, इनेलो-बीजेपी गठबंधन ने 37, जबकि कांग्रेस ने 36 पर जीत हासिल की थी। इनेलो-बीजेपी गठबंधन के नेता देवी लाल अपने विधायकों को प्रतिद्वंद्वी खेमे में शामिल होने से बचाने के लिए दिल्ली के पास एक रिसॉर्ट में पहुंचे। लेकिन, एक विधायक रिसॉर्ट से भागने में सफल रहे और कांग्रेस का समर्थन कर दिया। अंततः राज्य में कांग्रेस ने सरकार बनाई।
गुजरात
1995 में जब बीजेपी गुजरात में 121 सीटों पर जीती तब आडवाणी और मोदी ने वाघेला को हटाकर केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया। फिर क्या था वाघेला नाराज़ हो गए। इसके बाद बापू ने जो कर दिखाया वह बीजेपी और गुजरात में कभी नहीं हुआ था। 1995 में जब पटेल अमरीका दौरे पर गए तब वाघेला ने गुजरात बीजेपी के 55 विधायकों के साथ विद्रोह कर दिया। वाघेला ने इन सभी विधायकों को एक निजी विमान में रात को तीन बजे अहमदाबाद से खुजराहो में एक रिसॉर्ट में भेज दिया। माना जाता है कि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने वाघेला को विधायकों को खजुराहो लाने में मदद की थी। रिसॉर्ट में अपने विधायकों को सुरक्षित करने के बाद, पार्टी आलाकमान के साथ बातचीत शुरू हुई और पटेल को बाद में सीएम पद से हटा दिया गया। वाघेला के वफादार सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया। एक साल बाद वाघेला ने अपने वफादार विधायकों के साथ भाजपा छोड़ दी और अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता पार्टी शुरू की। वह अक्टूबर 1996 में कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने।
उत्तराखंड
उत्तराखंड की राजनीति में 2016 का साल काफी हलचल वाला रहा। जब कांग्रेस के बागी विधायकों ने मुख्यमंत्री हरीश रावत से समर्थन वापस ले लिया। रावत सरकार को हटाने की मांग को लेकर कांग्रेस के नौ बागी विधायक और भाजपा विधायक राज्यपाल के पास गए। राज्यपाल केके पॉल ने मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले रावत के खिलाफ खरीद-फरोख्त के आरोप लगने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। इस बीच, भाजपा ने अपने विधायकों को जयपुर के एक होटल में ठहराया था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सीएम को बहुमत साबित नहीं करने देने और राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए केंद्र की खिंचाई की गई। रावत को आखिरकार विश्वास मत के दौरान अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला और उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की।
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बिहार
2000 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार का पहला कार्यकाल केवल 7 दिनों तक चला था। कुमार को 151 विधायकों का समर्थन प्राप्त था, जबकि लालू प्रसाद यादव की राजद को कांग्रेस के साथ 159 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। ऐसी खबरें आ रही थीं कि कांग्रेस के कुछ विधायक एनडीए में नीतीश के खेमे में चले जाएंगे। इसलिए कांग्रेस और राजद ने अपने विधायकों को पटना के एक होटल में रखा था। अधिक विधायकों को अपने पाले में लाने और फर्श पर अपनी ताकत साबित करने में असमर्थ, नीताीश कुमार ने तब मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त होने के सिर्फ 7 दिन बाद अपना इस्तीफा सौंप दिया।
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री एनटी रामा राव जिस एन टी रामा राव ने टीडीपी को खड़ा किया था, चंद्रबाबू नायडू ने न सिर्फ उन्हें सरकार के प्रमुख के तौर पर बेदखल कर दिया, बल्कि पार्टी से भी निकाल दिया। आंध्र प्रदेश में सियासी विद्रोह 23 अगस्त 1995 को शुरू हुआ था। इस दौरान बागी विधायकों को होटल वायसराय में ठहराया गया था और बाद में इनकी संख्या बढ़ती गई। तब हालात ऐसे थे कि कुल 214 विधायकों में से मुश्किल से दो दर्जन विधायक ही एन टी रामा राव के साथ थे।
तमिलनाडु
कार्यवाहक मुख्यमंत्री ओ पनीरसेल्वम के विद्रोह के बाद अन्नाद्रमुक महासचिव वीके शशिकला ने पार्टी के 122 विधायकों को पन्नीरसेल्वम के खेमे में शामिल होने से रोकने के लिए उन्हें बंद करके रखा था। शशिकला खुद महाबलीपुरम के पास गोल्डन बे रिजॉर्ट में रुकी थीं, जहां विधायक ठहरे हुए थे। विधायकों के पास लग्जरी के तो सारे सामान थ लेकिन उन्हें अपने फोन का उपयोग करने या रिसॉर्ट से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। दशकों पुराने आय से अधिक संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शशिकला को दोषी पाए जाने के बाद, उन्होंने रिसॉर्ट से घोषणा की कि एडापडी के पलानीस्वामी तमिलनाडु के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे। पलानीस्वामी ने फरवरी 2017 में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। उन्होंने विधानसभा में विश्वास मत जीता, जहां 122 विधायकों ने उन्हें वोट दिया, जबकि 11 ने ओ पनीरसेल्वम को वोट दिया।
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मध्य प्रदेश
2020 में मध्य प्रदेश को एक राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ा, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 18 साल बाद कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले गए और इससे कमलनाथ को अपनी सत्ता गंवानी पड़ गई। सिंधिया के विद्रोह के वक्त मध्य प्रदेश के लगभग 18 विधायकों को बेंगलुरु के पास एक रिसॉर्ट में ले जाया गया। विधायकों को वापस बुलाने में विफल रहने के बाद कमलनाथ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित विश्वास मत की समय सीमा से कुछ घंटे पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने केवल 15 महीने के लिए पद संभाला था। सिंधिया और बागी विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए और शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के रूप में वापसी की।
-अभिनय आकाश
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