दो दशकों तक सत्ता पर काबिज भारत विरोधी एर्दोगन को 'गांधी' ने रोका, जानें तुर्किये में चुनाव की क्या प्रक्रिया है और 28 मई को क्या होगा?

Erdogan
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अभिनय आकाश । May 15 2023 1:57PM

तुर्की के छह मजबूत दलों ने गठबंधन करके कैमल को अपना नेता चुना है। ये तमाम पार्टियां विचारधाराओं और समुदायों से भी ताल्लुक रखती हैं।

तुर्की में वोटिंग हो चुकी है और वहां की जनता ने 14 मई को अपना नया राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट डाला। लेकिन इस बार का चुनाव तुर्की के लिए खास है क्योंकि लगातार दो दशक तक सत्ता में रहने वाले मौजूदा राष्ट्रपति एर्दोगन तीसरी बार प्रेसिडेंट बनने की रेस में हैं। मतदान में जरूरी 50 प्रतिशत वोट किसी को नहीं मिले हैं। इस बार का चुनाव तुर्की में सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले एर्दोगान के लिए इतनी भी आसान नहीं है। हुएआखिर हम क्यों ऐसा कह रहे हैं आइए जानते हैं। बीते दो दशकों से तुर्की की सत्ता पर हावी रहने वाले एर्दोगान की साथ एक बार फिर दांव पर है। लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए एर्दोगान चुनावी मैदान में उतरे हैं। ताकी पांच साल वो फिर से तुर्की के सिंहासन पर काबिज हो सके। लेकिन इस बार एर्दोगान की राह आसान नहीं है क्योंकि उनके खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट हो चुका है। एर्दोगान को सत्ता से हटाने के लिए महागठबंधन बन चुका है और इस महागठबंधन की कमान कैमल किलिकडारोग्लू ने संभाली है। किलिकडारोग्लू अपने विनम्र स्वभाव और कुशल नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। 

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कैमल किलिकडारोग्लू कौन है

74 साल के पूर्व नौकरशाह कमाल कलचदारलू मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं। वह गांधीजी जैसा गोल चश्मा पहनते हैं और बेहद विनम्र हैं।  उन्हें तुर्की का गांधी भी कहा जाता है। इकनॉमिक्स में स्कॉलर रहे। देश के वित्तीय संस्थानों में शीर्ष पदों पर रहे। वह 2002 में रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (CHP) से जुड़े। यह देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना आधुनिक तुर्किये के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने की थी। मार्च में सीएचपी समेत छह विपक्षी दल साथ आए, जिन्होंने कलचदारलू को विपक्षी गठबंधन का राष्ट्रपति उम्मीदवार चुना। कलचदारलू ने कहा कि अगर मैं जीता तो सीरिया से फौजें वापस बुलाएंगे, सीरिया के शरणार्थियों को वापस भेजा जाएगा।

छह मजबूत दलों ने बनाया गठबंधन 

वोटिंग से ठीक पहले कैमल ने 12 मई को एक बड़ी रैली की, जिसमें समर्थकों की भारी भीड़ के साथ पूरा विपक्ष भी मंच पर दिखाई दिया। एर्दोगान के खिलाफ एक तरफ पूरा विपक्ष एकजुट है, तो वहीं तुर्की में अब तक जो भी ओपिनियन पोल सामने आए वो कैमल को जीत का प्रबल दावेदार बता रहे थे। बता दें कि तुर्की के छह मजबूत दलों ने गठबंधन करके कैमल को अपना नेता चुना है। ये तमाम पार्टियां विचारधाराओं और समुदायों से भी ताल्लुक रखती हैं। 

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तुर्की चुनाव के मुख्य मुद्दे क्या रहे

 मुख्य रूप से खराब होती अर्थव्यवस्था, 44% की दर से भारी पड़ती महंगाई और 50 हजार लोगों का काल बना फरवरी में आया भूकंप इस चुनाव के प्रमुख मुद्दे रहे।  69 वर्षीय राष्ट्रपति मतगणना एर्दोऑन जस्टिस ऐंड डिवेलपमेंट पार्टी (AKP) के नेता हैं। तुर्किये इस साल अक्टूबर में अपनी स्थापना यानी गणतंत्र की शताब्दी मनाएगा। राष्ट्रपति ने कहा कि देश की 100वीं वर्षगांठ पर नया संविधान कानून के शासन को मजबूत करेगा।

आर्थिक मोर्चे पर कहां खड़ा है देश?

वर्षों के आर्थिक कुप्रबंधन के बाद नवंबर 2022 में तुर्की की मुद्रास्फीति दर 85 प्रतिशत पर पहुंच गई। फिर ये दिसंबर में कुछ कम होकर 64 प्रतिशत हो गई। यह यूरोप में अब तक की सबसे ऊंची दर है। तुर्की का विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है और राष्ट्र को बढ़ते चालू-खाता घाटे का सामना करना पड़ रहा है। 3.6 मिलियन सीरियाई शरणार्थियों की उपस्थिति से तुर्की की आबादी तेजी से असंतुष्ट है, जिसे तुर्की ने सीरियाई गृहयुद्ध की शुरुआत में स्वीकार किया था। एर्दोगन के बढ़ते निरंकुश 20 साल के शासन से भी थकान बढ़ रही है। पूरी पीढ़ी किसी अन्य नेता को नहीं जानती।

कैसे चुना जाता है राष्ट्रपति

 राष्ट्रपति पद के लिए जितने भी उम्मीदवार मैदान में होते हैं, उनमें से किसी भी एक उम्मीदवार को अगर आधे से ज्यादा वोट मिलें तो वह सीधा राष्ट्रपति बन जाता है। अगर किसी को 50% मत नहीं मिलते तो सबसे ज्यादा मत पाने वाले दो उम्मीदवारों के बीच फिर सीधा मुकाबला होता है।

तुर्की में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक साथ ही होते हैं

तुर्की में प्रधानमंत्री के पास ही सबसे अधिक शक्ति होती है। एर्दोगन ने प्रधानमंत्री का पद ही समाप्त कर दिया था। देश में राष्ट्रपति की प्रथा को शुरू किया। नई व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव एक ही दिन होते हैं।

 एर्दोगन के 2 कार्यकाल पूरे 

तुर्की की 600 सीटों वाली संसद में प्रवेश के लिए एक पार्टी के पास 7 प्रदतिशत वोट होना जरूरी है। फिर पार्टी किसी ऐसे गठबंधन का हिस्सा हो जिसके पास वोटों की जरूरी संख्या मौजूद हो। तुर्की में एक व्यक्ति केवल 2 टर्म तक ही राष्ट्रपति रह सकता है। एर्दोगन के 2 कार्यकाल पूरे हो चुके हैं। लेकिन 2017 में राष्ट्रपति के अधिकारों से जुड़ा रेफरेंडम लाया गया था, जिसकी वजह से उनका कार्यकाल जल्दी खत्म हो गया। इसी वजह से एर्दोगन को तीसरी बार चुनाव लड़ने की इजाजत मिल गई।  

किसी को नहीं मिले 50 प्रतिशत वोट, अब 28 मई को होगा निर्णायक मुकाबला

तुर्की राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन और उनके विपक्षी प्रतिद्वंद्वी केमल किलिकडारोग्लू के महत्वपूर्ण चुनाव जीतने के लिए आवश्यक 50 प्रतिशत की सीमा तक न तो पहुंचने के कारण अब सभी की निहागे 28 मई पर जाकर टिक गई हैं। एर्दोगन अपने सत्तावादी शासन पर एक फैसले के रूप में देखे जाने वाले चुनाव में राष्ट्रपति के रूप में तीसरे पांच साल के कार्यकाल की मांग कर रहे हैं। उन्होंने देश पर 20 वर्षों का लंबा शासन किया है। 28 मई को होने वाले दूसरे दौर के मतदान से बचने के लिए न तो उन्होंने और न ही किलिकडारोग्लू ने आवश्यक 50 प्रतिशत के वोट प्राप्त हो सके। सरकारी अनादोलु समाचार एजेंसी के अनुसार, एर्दोगन 49.39 प्रतिशत वोटों के साथ आगे चल रहे हैं, जबकि किलिकडारोग्लू 44.92 प्रतिशत वोटों के साथ कड़ी टक्कर दे रहै हैं। 

तीसरे दल एटीए का क्या रोल?

तुर्की की 2 बड़ी पार्टियों के अलावा इस चुनवा मैं नए नए उम्मीदवार सिनान ओगन की पार्टी एटीए अलायंस ने भी 5 फीसदी से अधिक वोट हासिल किए हैं। अब एर्दोगन औऱ कमाल को सत्ता में लाने के लिए भूमिका निभाएंगे। अलजजीरा के अनुसार उन्हें दोनों मुख्य पार्टियां अपनी ओर लाने की पूरी कोशिश करेंगे।  

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दोनों पक्षों ने जीत का दावा किया

दोनों खेमों ने जीत का दावा किया क्योंकि मतगणना चल रही थी। जबकि एर्दोगन के समर्थकों ने राजधानी अंकारा सहित विभिन्न शहरों में जश्न मनाया, किलिकडारोग्लू ने अपने समर्थकों से धैर्य रखने का आग्रह किया और एर्दोगन की पार्टी पर मतगणना प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया। राष्ट्रपति चुनाव से पहले, कई जनमत सर्वेक्षणों ने कड़े मुकाबले की भविष्यवाणी की थी।

28 मई को क्या होगा

तुर्की में पहले राउंड में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की वजह से 28 मई को दोबारा वोटिंग होगी। जिसमें अभी 12 हफ्ते हैं। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार एर्दोगन इन 14 दिनों का इस्तेमाल अपने वोटर्स को मनाने में करेंगे। वो 11 साल तक तुर्की के प्रधानमंत्री और 9 साल तक राष्ट्रपति रहे हैं।  

क्या है तुर्की का इतिहास

तुर्की एक मुस्लिम बहुल्य देश हैं जहां करीब 98 फीसदी जनता इस्लाम को मानती है और तुर्की की गिनती उन गिने-चुने मुस्लिम देशों में होती है जिन्हें सबसे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष यानी सेक्युलर माना जाता रहा है। वर्ष 1299 से 1922 तक तुर्की में ऑटोमन साम्राज्य का शासन था। 1923 में तुर्की को इस साम्राज्य से आजादी मिल गई और इसका श्रेय तुर्की के पूर्व तानाशाह मुस्तफा कमाल अतातुर्क को जाता है। संविधान के तहत ही अतातुर्क ने तुर्की की सेना को देश में हमेशा सेक्युलरिज्म कायम रखने की जिम्मेदारी दी। तुर्की में धार्मिक प्रतीक चिन्हों के इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा दी थी। एर्दवान तुर्की जैसे आधुनिक और सेक्युलर मूल्यों वाले देश के कट्टर इस्लामिक राष्ट्रपति हैं जो उसी आईने में विदेश संबंधों को भी देखते हैं।

भारत-तुर्की रिश्तों पर क्या असर होगा?

एर्दोऑन के शासन में कश्मीर का मुद्दा उठाने से भारत से तनाव रहा है। अगर एर्दोऑन लौटे तो भारत-तुर्किये रिश्तों में बहुत अधिक सुधार की उम्मीद नहीं है। अगर प्रतिद्वंद्वी कमाल कलचदारलू की जीत हुई तो रिश्तों में गर्माहट लौट सकती है।

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