पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चुनाव, इमरान का रेफरेंडम वाला दांव
पीओके जिसे पाकिस्तानी 'आजाद जम्मू और कश्मीर' (संक्षेप में 'एजेके') कहते हैं भारत और पाकिस्तान के बीच 1949 के युद्धविराम के बाद अस्तित्व में आया। इसमें जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन राज्य के कुछ हिस्से शामिल थे, जिन पर पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जा कर लिया गया था।
जम्मू-कश्मीर के अपने पहले दौरे के लगभग 15 दिनों बाद परिसीमन आयोग ने विधानसभा क्षेत्रों की सीमा नये सिरे से निर्धारित करने के लिए एक रिपोर्ट के मसौदे पर काम करना शुरू कर दिया है। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन इसलिए भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि केन्द्र वहां जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव कराने को इच्छुक है। परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि विधानसभा की 24 सीटें खाली रहती हैं क्योंकि वे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाला ये कश्मीर कबायिली हमले के जमाने से पाकिस्तान के पास है। पाकिस्तान के कब्जे वाले इस कश्मीर में एक अजब सी रवायत है। जब भी यहां कोई प्रधानमंत्री पद या विधायिका से जुड़े दूसरे पद की शपथ लेता है तो उसमें एक शपथ ये भी होती है कि मैं कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने के लिए पूरी तरह से कोशिश करता रहूंगा। यानी कागजी तौर पर कश्मीर को पाकिस्तान अपना हिस्सा भी नहीं कह पाता ताकी उसकी लड़ाई लड़ता रहे। बाकी हालात तो ये हैं कि जिसकी इस्लामाबाद में सत्ता होती है उसकी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में धमक होती है। एक डीसीपी रैंक का अधिकारी भी वहां के प्रधानमंत्री को चलता कर सकता है। लेकिन बीते दिनों पाकिस्तान के कप्तान इमरान खान ने आवाम का वोट पाने के लिए कश्मीर में जनमत संग्रह (रेफरेंडम) का पासा फेंका। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की घोषित नीति से कुछ अलग रूख अपनाते हुए प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि इस्लामाबाद कश्मीर की आवाम को यह फैसला लेने देगा कि वे पाकिस्तान के साथ आना चाहते हैं, या फिर एक ‘‘स्वतंत्र देश’’ बनाना चाहते हैं।
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पीओके पर पाकिस्तान की संवैधानिक स्थिति
पीओके जिसे पाकिस्तानी "आजाद जम्मू और कश्मीर" (संक्षेप में "एजेके") कहते हैं भारत और पाकिस्तान के बीच 1949 के युद्धविराम के बाद अस्तित्व में आया। इसमें जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन राज्य के कुछ हिस्से शामिल थे, जिन पर पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जा कर लिया गया था। बाद में उसने इस क्षेत्र के दो फाड़ कर दिये। जम्मू और कश्मीर अधिकृत पाकिस्तान और गिलगित-बाल्तिस्तान। पाकिस्तान के संविधान में देश के चार प्रांतों - पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा को सूचीबद्ध किया गया है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में 25 जुलाई यानी रविवार के दिन चुनाव होने हैं। पीओके विधानसभा में 53 सीटें हैं, जिसमें 2019 में जोड़ी गई चार सीटें शामिल हैं। 700 से अधिक उम्मीदवार मैदान में हैं, और लगभग 20 लाख मतदाता हैं। इस क्षेत्र की विधानसभा में 53 सीट हैं, जिनमें से 33 सदस्यों का चुनाव सीधे 10 जिलों से होता है। जबकि पाकिस्तान के चार प्रांतों में रहने वाले कश्मीरी शरणार्थियों को 12 सीट दी जाती हैं। एक सीट विदेशी कश्मीरी के लिए होती है और पांच महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। वहीं एक-एक सीट टेक्नोक्रैट और उलेमा-ए दीन के लिए होती है। पीओके पर पाकिस्तान की संवैधानिक स्थिति यह है कि वह देश का हिस्सा नहीं है, बल्कि कश्मीर का "मुक्त" हिस्सा है
पीओके चुनाव पर दुनिया की नजर
पाक के कब्जे वाले कश्मीर पर पूरी दुनिया की नजर रहती है, खासतौर पर भारत की। पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट के अनुसार, 2006 में जब यहां चुनाव हुए थे, तो यूरोपीय संघ के पर्यवेक्षक चुनाव की निगरानी के लिए मौजूद थे। वहीं इस साल होने वाले चुनाव में 32 राजनीतिक पार्टियां हिस्सा ले रही हैं। जानकारी के अनुसार, पीओके में 20 लाख से ज्यादा मतदाता हैं।
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पीओके में क्या हैं चुनावी मुद्दे?
पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ यहां के लोगों में काफी गुस्सा है। बीते कुछ समय से चीन यहां के प्राकृतिक संसाधनों को तबाह कर रहा है। जिसे लेकर लोग कई बार विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। इसके अलावा यहां के लोग सेना से भी काफी परेशान है, जो इनकी भूमि हथियाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाती है। यहां बुनियादी सुविधाओं की काफी कमी है, जिसके कारण आम नागरिकों को तमाम मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। पीओके में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत से मदद मांगते रहे हैं।
मरियम नवाज, बिलावल भुट्टो जरदारी, इमरान खान
अपने चुनावी भाषणों में मरियम नवाज़ इमरान ख़ान सरकार पर पीओके को पाकिस्तान का प्रांत बनाने की योजना बनाकर कश्मीर में भारतीय कार्रवाइयों को वैधता देने का आरोप लगाती रही हैं। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की नेता मरियम नवाज ने 18 जुलाई को पीओके में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कश्मीर का दर्जा बदलने और इसे प्रांत बनाने का फैसला ले लिया गया है। उन्होंने कहा कि इमरान चाहते थे कि "एजेके" में एक "कठपुतली पीएम" इस योजना का पालन करे, इसके साथ ही मरियम ने चेतावनी देते हुए कहा कि "पीएमएल (एन) इसकी अनुमति नहीं देगी। बिलावल भुट्टो ने साल 2019 में कहा कि मोदी ने कश्मीर छीन लिया और पाकिस्तान के पीएम इमरान खान सोते रह गए। उन्होंने कहा कि पहले हमारी नीति थी कि श्रीनगर कैसे हासिल करें, लेकिन अब मुजफ्फराबाद बचाना भी मुश्किल हो गया है। भुट्टो ने बेहद तल्ख लहजे में पाक पीएम पर हमला बोलते हुए कहा कि इमरान खान पीएम नरेंद्र मोदी के सामने चूं भी नहीं कर सकते, बिल्ली बन जाते हैं। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में 25 जुलाई को होने वाले चुनाव से पहले तरार खाल इलाके में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए इमरान खान ने विपक्षी नेता के उन दावों को खारिज किया कि सरकार कश्मीर को पाकिस्तान का एक प्रांत बनाने की योजना पर काम कर रही है।
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UN ने 1948 में दिया था ये प्रस्ताव
इमरान खान ने इसे खारिज करते हुए कहा, ‘‘पता नहीं ये बातें (प्रांत बनाने के बारे में) कहां से आ जाती हैं।’’ उन्होंने कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब कश्मीर के लोगों को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुरूप अपने भविष्य का फैसला करने की इजाजत मिलेगी। उन्होंने भरोसा जताया कि उस दिन कश्मीर के लोग पाकिस्तान के साथ आने का फैसला लेंगे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के जनमत संग्रह के बाद उनकी ‘‘सरकार एक और जनमत संग्रह करवाएगी जिसमें कश्मीर के लोगों के पास यह विकल्प होगा कि वे पाकिस्तान के साथ रहना चाहते हैं या फिर एक स्वतंत्र राष्ट्र चाहते हैं।’’ कश्मीर पर पाकिस्तान की घोषित नीति के मुताबिक इस मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुरूप जनमत संग्रह से निकाला जाना चाहिए, जिसमें कश्मीरियों को पाकिस्तान या भारत में से किसी एक को चुनने की इजाजत दी जाए। गौरतलब है कि 1948 में, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के दो प्रस्ताव थे, जो कश्मीर के लोगों को अपना भविष्य तय करने का अधिकार देते थे। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार, लोगों को यह तय करना था कि क्या वे हिंदुस्तान में शामिल होना चाहते हैं या पाकिस्तान में?
इमरान करवाएंगे जनमत संग्रह
पीएम इमरान ने कहा कि कश्मीरियों की आजादी का आंदोलन विभाजन से पहले का है। यह 100 साल से भी पहले शुरू हुआ था। इमरान ने दावा किया तब लोग डोगरा सरकार के खिलाफ बार-बार खड़े हुए थे। डोगरा परिवार हिंदू राजपूतों का एक वंश था, जिन्होंने 1846 से 1947 तक जम्मू और कश्मीर पर शासन किया था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के जनमत संग्रह के बाद, उनकी सरकार एक और जनमत संग्रह कराएगी, जहां कश्मीर के लोगों को या तो पाकिस्तान के साथ रहने या एक स्वतंत्र राज्य बनने का विकल्प दिया जाएगा। -अभिनय आकाश
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