Kejriwal ने चुनाव के वक्त जो शगूफा छोड़ा था उसका असर अब दिखने लगा है, योगी को कौन हटाना चाहता है?

Kejriwal
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अभिनय आकाश । Jul 17 2024 2:38PM

अरविंद केजरीवाल ने जो बयान दिया था उसके ईर्द-गिर्द सुर्खियां बुनी गई उसे लेकर लिए अंदरखाने बातचीत अब भी चल रही है। सरकार और संगठन के बीच क्या सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक-एक करके तमाम सवालों का एमआरआई स्कैन करते हैं।

"बीजेपी के अंदर काफी तनाव है। प्रधानमंत्री जी अमित शाह को उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं। बाकी लोग ये नहीं चाहते हैं। बीजेपी वालों ने खंडन नहीं किया है कि योगी जी को हटाया जा रहा है। ये बात दबी जुबान में पूरे देश में चल रही है। अगला नंबर योगी आदित्यनाथ का है। ये 2 महीने के भीतर उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल देंगे।" चुनाव प्रचार के लिए तिहाड़ जेल से जमानत पर बाहर आए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने 11 मई को  21 मिनट की स्पीच में ऐसे-ऐसे दावे किए, जिसके काउंटर के लिए खुद देश के गृह मंत्री को प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए मैदान में उतरना पड़ा। अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के पीएम का सवाल उठाकर उस फेस वैल्यू के नैरेटिव को पलटने की कोशिश की, जो विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक को लगातार रक्षात्मक मुद्रा में बनाए हुए था। इसके साथ ही आप संयोजक मोदी के कथित उत्तराधिकारियों-अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के बीच दरार पैदा करने की कोशिश के तहत इस बहस को हवा देने की चाल चली। दोनों ही नेताों को अलग-अलग कारणों से अलग-अलग वर्गों की तरफ से स्पष्ट उत्तराधिकारी माना जाता है। एक वक्त था जब पीएम मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर गृह मंत्री अमित शाह को देखा जाने लगा था। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने जब से यूपी की सत्ता संभाली है। सख्त शासन के दम पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। तब से देश की जनता योगी आदित्यनाथ को मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखने लगी है। र कैंपेनर के लिहाज से देखें तो उन्हें भाजपा नेताओं में मोदी के बाद दूसरे स्थान पर माना जाता है। बीजेपी हलकों में दोनों के बीच के आपसी रिश्तों को लेकर संशय जताई जाती रही है। लेकिन इन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति ने दिल्ली का पारा भी बढ़ा कर रख दिया है। कोई कह रहा है कि आत्मविश्वास से हारे, लेकिन सवाल किसके आत्मविश्वास से हारे? कोई कह रहा है कि सरकार संगठन से बड़ा नहीं होता, कौन सी सरकार है जो संगठन से बड़ी हो गई है? कोई कह रहा कि अधिकारी काम नहीं कर रहे, कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं हो रहा, किन कार्यकर्ताओं की नहीं सुनी जा रही है? कोई कार्यकर्ताओं के आत्मविश्वास पर ठीकरा फोड़ रहा है। कोई संगठन और सरकार के बीच की लकीर खींच दे रहा है। बयान कई हैं, लेकिन इसके मायने क्या है? कुल मिलाकर कहें तो अरविंद केजरीवाल ने जो बयान दिया था उसके ईर्द-गिर्द सुर्खियां बुनी गई उसे लेकर लिए अंदरखाने बातचीत अब भी चल रही है। सरकार और संगठन के बीच क्या सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक-एक करके तमाम सवालों का एमआरआई स्कैन करते हैं। 

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यूपी के खराब प्रदर्शन का असल जिम्मेदार कौन?

साल 2014 के चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 80 में से 71 सीटों पर जीत दर्ज की तो इसका श्रेय मोदी शाह की जोड़ी को गया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 में से 62 सीटों पर भगवा लहराया तो इसके मैन ऑफ द मैच यही दोनों जोड़ी रही। लेकिन साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 33 सीटें गई तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? यूपी की राजनीति में लेकिन इससे उलट एक अलग ही खेल चल रहा है। जब से यूपी में बीजेपी की सीटें घटी तब से ऐसा लग रहा है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर इस हार का ठीकरा फोड़ने की कोशिश की जा रही है। योगी आदित्यनाथ समर्थकों का कहना है कि चुनाव दिल्ली ने अपने हिसाब से लड़ा था। चुनाव के क्रम में योगी आदित्यनाथ की बात नहीं सुनी गई। टिकटों को भी नहीं बदला गया। वैसे ये कोई नया नहीं है कि योगी आदित्यनाथ लखनऊ से दिल्ली तक सुर्खियों में न बने रहे हो। सत्ता संभालने के बाद से ही इस बात की चर्चा हमेशा से होती रही कि केंद्र और यूपी की बागडोर संभालने वाले योगी में सब ठीक नहीं है और उन्हें सत्ता से हटाया जा सकता है। 

बढ़ने लगे अपनों के वार

लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर 'अपनों' के वार बढ़ गए हैं। भाजपा और एनडीए के सहयोगी दल सवाल उठा रहे हैं। एक दिन पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में लखनऊ में परिणाम की समीक्षा हुई और नेताओं को अनुशासन के साथ एकजुटता का पाठ पढ़ाया गया था। भाजपा एमएलसी देवेंद्र सिंह का सीएम योगी को लिखा पत्र सामने आया है। सिंह ने पत्र में लिखा है, क्या कारण है जनता सरकार से नाराज हो गई? सरकार की छवि शिक्षक-कर्मचारी विरोधी बन गई है। नौकरशाहों के फैसलों से जनाक्रोश है। कोरोनाकाल में 1,621 शिक्षक काल के गाल में समा गए। अब शिक्षकों को डिजिटल हाजिरी के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है। यह ठीक नहीं है। सिंह ने आरोप लगाया कि अफसरों ने मोबाइल खरीदी में जमकर भ्रष्टाचार किया है, उसकी जांच होनी चाहिए। देवेंद्र सिंह ने लिखा, नौकरशाहों की साजिश से आपको (सीएम को) बचना होगा। गौरतलब है कि भाजपा विधायक रमेशचंद्र मिश्र, एमएलसी बाबूलाल तिवारी व पूर्व मंत्री मोती सिंह भी ऐसे सवाल उठा चुके हैं।

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निषाद पार्टी ने भी साधा निशाना

एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री संजय निषाद ने कहा- कुछ 2-4% अधिकारियों जो अंदर से हाथी, साइकिल, पंजा हैं और ऊपर से कमल हैं, ऐसे लोग जो उन पार्टियों से प्रेरित हैं, उनके वजह से नुकसान हो रहा है। अगर किसी गरीब के घर पर बुलडोजर चला देंगे तब तो वह हमें राजनीति में उजाड़ेंगा ही... बुलडोजर गरीबों पर चलाने का नुकसान है।

क्या चाहते हैं केशव मौर्य

साल 2017 का वो दौर जब यूपी में नरेंद्र मोदी के नाम पर सवार बीजेपी की पतवार ने पूरे दम-खम से जीत सुनिश्चित की और 312 सीटें जीती। बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद गाजीपुर से सांसद रहे मनोज सिन्हा का नाम अचानक से सुर्खियों में आ गया और उनकी बायोग्राफी भी मीडिया में तैयार होने लगी साथ ही समीकरण भी पेश किए जाने लगे। मनोज सिन्हा दिल्ली से काशी विश्वनाथ के दर्शन करने पहुंचे और वहीं चार्टेड प्लेन का इंतजार करने लगे। दिल्ली में मौजूद केशव मौर्या के चेहरे की मुस्कान इस वक्त और खिलखिला उठी जब लखनऊ के एयरपोर्ट पर नारे लगे 'पूरा यूपी डोला था, केशव-केशव बोला था'। लेकिन तमाम तैरते नामों के बीच योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को यूपी की बागडोर संभाली। 2022 में तो योगी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ा और जीता गया। लेकिन 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान केशव प्रसाद मौर्य अध्यक्ष थे। उनके नेतृत्व में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। केशव प्रसाद मौर्य भी सीएम की रेस में थे। लेकिन अचानक से सीएम योगी आदित्यनाथ को बना दिया गया। उन्हें डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा था। बताया जाता है कि वही से दोनों के बीच मनमुटाव शुरू हुआ, जो अब तक जारी है। फिर 2022 में बीजेपी तो जीत गई लेकिन केशव अपनी सीट हार बैठे। उन्हें हारने के बावजूद डेप्युटी सीएम बनाया गया।

योगी से कौन छीनना चाहता है यूपी की सत्ता

धर्म से बड़ी कोई राजनीति नहीं और राजनीति से बड़ा कोई धर्म नहीं। यूं तो ये बात लोहिया ने कही और लोहिया का नाम जपकर समाजवाद के नाम पर सत्ता चलाने वालों को जब यूपी के जनादेश ने मटियामेट कर दिया तो पहली बार किसी धार्मिक स्थल का प्रमुख किसी राज्य का सीएम बना। केंद्र में बीजेपी नेताओं की जिस तरह से स्थिति दिख रही है। यूपी में जिस तरह बीजेपी के संगठन और विधायकों की लामबंदी देखी जा रही है। उससे ये हो सकता है कि योगी को मनाकर केंद्र में कोई मंत्रालय दिया जाए। लेकिन योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व की बात करें तो वो इसती आसानी से मानने वालों में नहीं हैं। वो आखिरी दम तक लड़ने में विश्वास रखते हैं और अपनी जिद पर अड़े रहते हैं। गौरतलब है कि ऐसा भी नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के सामने ऐसी चुनौतियां पहली दफा सामने आई है। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भी उनकी मुश्किलें बढ़ी थी। लेकिन नवंबर 2021 में राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री के साथ दो ऐसी तस्वीरें शेयर की जो बताने के लिए पर्याप्त थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तरह उनके साथ खड़े हैं और उनके नेतृत्व को लेकर आलाकमान में कोई संशय नहीं है।  इन तस्वीरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कंधे पर हाथ रखे हुए हैं और उनके साथ कुछ चर्चा करते नजर आ रहे थे। उस वक्त पीएम मोदी और अमित शाह से मिल कर योगी ने मार्गदर्शन लिया और समास्या से पार पा लिया। लेकिन क्या बार-बार ऐसा संभव है? 

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