अजीत जोगी: पायलट राजीव संग चाय-नाश्ता से राज्यसभा, सोनिया संग चर्च में मुलाकात के बाद CM
साल 2000 तारीख 31 अक्टूबर जगह राजभवन रायपुर, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेता शख्स अजीत जोगी। हां... मैं सपनों का सौदागर हूं, सपने बेतचा हूं... ये वे शब्द थे जो अजीत जोगी ने पहली बार मुख्यमंत्री की पद की शपथ लेने के दौरान कहे थे।
राजनीतिक के एक अध्याय का, तजुर्बा के एक इतिहास का, एक धारा का, एक शैली का अंत सा हो गया। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 29 मई को अंतिम सांसे ली। अपने साहस और संघर्ष से मौत को मात देते आए राजनेता, जिसकी जिजीविषा की मिसाइलें दी जाती थी। जो व्हीलचेयर पर हर चुनौतियों को हराता आया था। लेकिन मौत एक शाश्वत सत्य है और अस्पताल में 20 दिन तक संघर्ष के बाद मौत के हाथों वो अपनी जिंदगी हार गया।
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जोगी, अजीत जोगी भारतीय राजनीति में या फिर कहें मध्य भारत की राजनीति में जो भी जरा सी भी दिलचस्पी रखता है वह अजीत जोगी के नाम से भली-भांति परिचित है। साल 2000 तारीख 31 अक्टूबर जगह राजभवन रायपुर, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेता शख्स अजीत जोगी। हां... मैं सपनों का सौदागर हूं, सपने बेतचा हूं... ये वे शब्द थे जो अजीत जोगी ने पहली बार मुख्यमंत्री की पद की शपथ लेने के दौरान कहे थे। जिसके जीवन का हर पल चुनौतियों से भरा रहा जिसने मुश्किलों को मात दी। बोलने की कला ऐसी की सुनने वाले का मन मोह ले। भाषा ऐसी कि पल भर में अपना बना ले, तर्क ऐसे की अच्छे-अच्छे को पानी पिला दे। दो बार राज्यसभा सदस्य, दो बार लोकसभा सदस्य, एक बार मुख्यमंत्री रहने के अलावा उनके खाते में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहने का रिकॉर्ड भी दर्ज है।
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एक फोन जिसने कलक्टर से नेता बना दिया
कहा जाता है कि रायपुर का कलेक्टर रहते हुए अजीत जोगी ने पूर्व प्रधानमंत्री और पायलट रहे राजीव गांधी से उनके जो रिश्ते बने, वही उन्हें राजनीति में लाने में मददगार बने। कलेक्टर अजीत जोगी की रायपुर में पोस्टिंग थी उन दिनों राजीव गांधी पायलट हुआ करते थे और एयर इंडिया की प्लेन उड़ाते थे। कलेक्टर अजीत जोगी ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया था कि, जब भी राजीव गांधी की फ्लाइट रायपुर आए उन्हें बताया जाए। जब राजीव की फ्लाइट रायपुर पहुंचती और जोगी घर से चाय-नाश्ता लेकर उनसे मिलने पहुंच जाते। इस तरह जोगी राजीव गांधी की नज़र में आए और थोड़े ही समय में वो राजीव गांधी के करीबी बन गए।
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बात साल 1985 की है, जब इंदौर कलेक्टर अजीत जोगी अपने बंगले में सो रहे थे। इस दौरान उनके बंगले का फोन बजा। फोन तो उनके एक कर्मचारी ने उठाया और कहा कि कलेक्टर साहब तो सो रहे हैं। सामने से एक आवाज आई और उन्होंने आदेश भरे स्वर में कहा कि कलेक्टर साहब को उठाइए और बात करवाई। साहब जगाए जाते हैं, फोन पर आते हैं। अजीत जोगी जैसे ही फोन पर हैलो कहते हैं, सामने से एक आवाज आई- तुम्हारे पास ढाई घंटे हैं, राजनीति में आना है या कलेक्टर ही रहना है? दिग्विजय सिंह आपको लेने आएंगे, उनको अपना फैसला बता देना। दरअसल फोन करने वाला वह शख्स कोई और नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पीए वी जॉर्ज का। इसके ढाई घंटे बाद दिग्विजय सिंह अजीत जोगी के बंगले पर पहुंचे, तब तक अजीत जोगी एक कलेक्टर से कांग्रेस नेता अजीत जोगी बन चुके थे। कुछ ही दिन बाद उनको कांग्रेस की ऑल इंडिया कमिटी फॉर वेलफेयर ऑफ़ शेड्यूल्ड कास्ट एंड ट्राइब्स के मेंबर बना दिया गया। इसके बाद वो कुछ ही महीनों में राज्यसभा भेज दिए गए।
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अजीत जोगी का राजनीतिक सिक्का ऐसा चमका कि वह कांग्रेस से 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इस दौरान वह कांग्रेस में अलग-अलग पद पर कार्यकरत रहे, वहीं 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद भी चुने गए। हालांकि एक साल बाद 1999 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। तब मान लिया गया था कि पार्टी में अब जोगी को हाशिये पर ही रहना होगा। लेकिन वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश से अलग जब छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया तो मुख्यमंत्री के तमाम नामों की अटकलों के बीच अप्रत्याशित रूप से अजित जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनाये गये। धाराप्रवाह हिंदी हो या ठेठ छत्तीसगढ़ी अंदाज लोगों में छत्तीसगढ़िया अस्मिता को जगाने का काम किया। रामानुजगंज से लेकर कोंटा तक, राज्य के अलग-अलग हिस्सों में उनके हर दिन के दौरों का रिकॉर्ड अब तक बरक़रार है। साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ, तो उस क्षेत्र में कांग्रेस को बहुमत था। कांग्रेस ने बिना देरी के अजीत जोगी को ही राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन कहा जाता है कि अफ़सर से नेता बने जोगी ने अपने अफ़सरों पर कहीं अधिक भरोसा किया और राज्य में अफ़सरशाही ने पार्टी के नेताओं को ही हाशिये पर खड़ा कर दिया। सरकार एक के बाद एक गंभीर आरोपों में उलझती गई। नतीजा, जोगी राज तीन सालों के शासन के बाद खत्म हो गया और साथ ही नई नवेली राज्य की सत्ता भी कांग्रेस के हाथों से ऐसी फिसली की मानो 15 बरस का वनवास ही हो गया। लेकिन वो कहते है न कि कुछ कर गुजरने का जज्जा, हिम्मत और हौसला हो तो हार के बादल छट जाते हैं और जीत की राह निश्चित ही सुनिश्चित होती है।
जिसके बाद अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी हत्या के आरोप में फंस जाते हैं। 2003 में कथित रूप से भाजपा विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त का आरोप उन पर लगा और कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पार्टी से निलंबित भी कर दिया। लेकिन अगले साल यानी 2004 में अजित जोगी का न केवल निलंबन वापस हुआ, बल्कि पार्टी ने उन्हें महासमुंद से लोकसभा की टिकट भी दी। जोगी ने पार्टी के भरोसे को जीत के साथ सार्थक किया और कभी कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार बीजेपी के उम्मीदवार विद्याचरण शुक्ल को पराजित कर दिया।
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ईसाई जोगी, चर्च और सोनिया से मुलाकात
जादू-टोना और एक्सीडेंट
चुनाव के दौरान ही एक ऐसी घटना घट जाती है जिससे लगा कि जोगी के बढ़ते कदम थम जाएंगे। 20 अप्रैल 2004 में जोगी एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गये और उनके कमर से नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। उनके राजनीतिक विरोधी यह मान बैठे कि अब वे ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं। लेकिन अजित जोगी की राजनीति पहले की तरह जारी रही। 2008 के विधानसभा चुनाव में राज्य में शीर्ष नेताओं ने कुल मिलाकर जितने दौरे किये थे, उससे अधिक दौरे और भाषण, अकेले व्हीलचेयर पर बैठे अजीत जोगी के हिस्से में थे। इसी दौरान अजित जोगी की पत्नी डॉ. रेणु जोगी और उनके बेटे अमित जोगी भी राजनीति में उतरे और विधायक चुने गये। दुर्घटना को लेकर बाद में जोगी ने कहा था, मेरे ऊपर किसी ने जादू-टोना किया था, इसीलिए गाड़ी भिड़ी।
साल 2016 में होता है कुछ ऐसा कि 16 सालों तक सूबे में एकक्षत्र राज करने वाले जोगी पार्टी छोड़ने पर मजबूर हो गए। बस्तर के अंतागढ़ के उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवार को चुनाव मैदान से हटाने के लिये कथित रूप से सौदेबाजी करने का एक क्लिप वायरल होने के बाद 2016 में कांग्रेस पार्टी ने उनके बेट विधायक अमित जोगी को पार्टी से 6 सालों के लिये निष्काषित कर दिया और अजित जोगी को भी नोटिस थमा दिया गया। इसके बाद अजित जोगी ने ख़ुद ही कांग्रेस पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया।
जनता कांग्रेस का गठन
21 जून 2016 को छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नाम से ख़ुद की पार्टी बनाने की घोषणा कर दी। अजित जोगी की लोकप्रियता के कारण माना जा रहा था कि उनकी पार्टी राज्य में सरकार बना पाये या न बना पाये, राज्य में सरकार बनाने में सबसे निर्णायक भूमिका ज़रूर निभायेगी। 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए मायावती और वाम दलों के साथ गठबंधन किया। पूरी उम्मीद थी कि गठबंधन जीता तो जोगी ही सीएम होंगे। लेकिन अपनी परंपरागत सीट मरवाही से अजित जोगी और कोटा विधानसभा से उनकी पत्नी रेणु जोगी के अलावा पार्टी के केवल 3 अन्य उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंच पाये। सपनों के सौदागर की अंतिम विदाई के साथ ही सीएम बनने की वो आखिरी आस, वो सपना पूरा हो न सका...
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