35 साल पुरानी त्रासदी जिसके गुनहगार को बचाने में देश का सिस्टम भी था शामिल
1984 में हुए भोपाल गैस कांड ने करीब 5 लाख लोगों की जिंदगी में आंसू भर दिए थे। बहुत सारे लोगों का जीवन इंतजार में बीत गया कि यूनियन कार्बाइड के प्लांट से गैस लीक होने के जिम्मेदार लोगों को सजा मिलेगी और उनकी जिंदगी में इंसाफ का सूरज उगेगा।
1984 की काली रात जब पूरे शहर पर मौत का हमला हुआ था। जो घरों में सो रहे थे, उनमें से हजारों सोते ही रह गए, कभी न जागने वाली नींद में। 2 दिसंबर 1984 की वो काली रात, जब भोपाल की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीली गैस लीक होने लगी। जिससे देखते ही देखते हजारों लोग इसका शिकार हो गए। ये ऐसी तबाही थी जो हवा के साथ घुलकर लोगों की सांसों में घुल रही थी। जिस तरफ हवा ने रुख किया लोगों की मौतें होने लगीं। भागने वालों में औरतें, मर्द, बच्चे सब शामिल थे। चारों तक चीख, पुकार, बदहवासी थी। शहर पर मौत का हमला हुआ था। महज कुछ घंटों में वहां 3000 लोगों की मौत हो गई। लोगों का मानना है कि वहां 10 हजार के करीब लोग मारे गए थे। इस त्रासदी का प्रभाव अब भी देखा जा सकता है।
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मिथाइल आइसो साइनाइड गैस होती क्या है?
मिथाइल आइसो साइनाइड गैस की वजह से ये हादसा कितना बड़ा था उसका अंदाजा इस गैस की तीव्रता से लगा सकते हैं। अगर ये गैस 21 पीपीएम यानी पार्टस पर मिलियन की दर से हवा में मिले तो एक मिनट में हज़ारों लोगों की जान जा सकती है। भोपाल में तो करीब 40 टन मिथाइल आइसो साइनाइड गैस लीक हुई थी। इससे हवा में गैस की मौजूदगी और उससे होने वाले नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है। मिथाइल आइसो साइनाइड से भोपाल के इस प्लांट में कीटनाशक बनता था।
अस्पताल मरीजों से भर गए
फैक्ट्री के आस-पास गांव थे। इनमें और कारखाने के पास मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा रहते थे। कहते हैं रात के वक्त फैक्ट्री का अलार्म काम नहीं किया। इससे और ज्यादा लोगों की जान गई। फैक्ट्री का अलार्म भोर के वक्त बजा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शहर के अस्पताल मरीजों से भर गए। लोगों का वक्त पर इलाज तक नहीं हो सका। शहर में ज्यादा अस्पताल भी नहीं थे। लोगों को आंख- कान के साथ सांस फूलने और स्किन में जलन आदि की प्राब्लम थी। भोपाल के डॉक्टरों ने इस तरह की समस्या का कभी सामना नहीं किया था। इस वजह से हालात और बिगड़ते चले गए। शहर में दो ही सरकारी अस्पताल थे। पहले दो दिन इन्हीं दोनों अस्पतालों में करीब 50,000 मरीज भर्ती हुए।
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मुआवजे की है दरकार
मुआवजे के मामले में कंपनी और केन्द्र सरकार के बीच हुए समझौते के बाद 705 करोड़ रुपए मिले थे। इसके बाद भोपाल गैस पीड़ित संगठनों की ओर से 2010 में एक पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसमें 7728 करोड़ मुआवजे की मांग की गई थी। इस मामले में अब तक फैसला नहीं हो पया। सालों से कई संगठन इन बच्चों के लिए, गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले आरटीआई से इन्हें चौंकाने वाले दस्तावेज मिले, जो कहते हैं कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर ने एक ऐसे अध्ययन के नतीजों को दबा दिया, जिससे कंपनियों से पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा देने के लिए दायर सुधार याचिका को मजबूती मिल सकती थी।
1984 में हुए भोपाल गैस कांड ने करीब 5 लाख लोगों की जिंदगी में आंसू भर दिए थे। बहुत सारे लोगों का जीवन इंतजार में बीत गया कि यूनियन कार्बाइड के प्लांट से गैस लीक होने के जिम्मेदार लोगों को सजा मिलेगी और उनकी जिंदगी में इंसाफ का सूरज उगेगा। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। तारीख पर तारीख गुजरती रही लेकिन यूनियन कार्बेइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन अमेरिका में कई वर्षों तक आराम का जीवन व्यतीत करने के बाद साल 2014 में दुनिया छोड़ गया। 3 हजार 787 मौतों के जिम्मेदार एंडरसन को किस तरह पूरा सिस्टम बचाने में लगा रहा ये भी जरा जान लीजिए।
वारेन एंडरसन भोपाल गैस कांड के चार दिन बाद 7 दिसंबर को भोपाल पहुंचा था। उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया था। लेकिन उसे सिर्फ 25 हजार रुपए में जमानत मिल गई। उसे यूनियन कार्बइड के भोपाल गेस्ट हाउस में नजरबंद करके रखा गया। लेकिन पूरे सिस्टम ने एंडरसन को भागने में पूरी मदद भी की। उसे रातों रात एक सरकारी विमान से भोपाल से दिल्ली लाया गया। इसके बाद वो दिल्ली मे अमेरिकी राजदूत के घर पहुंचा और बाद में वहां से एक प्राइवेट एयरलाइंस से मुंबई और फिर अमेरिका चला गया। मध्य प्रदेश के पूर्व एविएशन डायरेक्टर आरएस सोढ़ी ने इसे लेकर एक बयान भी दिया था कि उनके पास एक फोन आया था जिसमें भोपाल से दिल्ली के लिए एक सरकारी विमान तैयार रखने के लिए कहा गया था। इसी विमान में बैठकर एंडरसन दिल्ली भाग गया था। तब एंडरसन को विमान में चढ़ाने के लिए भोपाल के एसपी और डीएम आए थे। उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के खुफिया दस्तावेजों के मुताबिक एंडरसन की रिहाई के आदेश तत्तकालीन राजीव गांधी सरकार ने दिए थे। हालांकि अर्जुन सिंह ने अपनी किताब में बाद में इस बात का खंडन किया था। यानी कि सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के मुख्य आरोपी को बचाने में उस वक्त की सरकार और सिस्टम ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
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मध्य प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भोपाल गैस त्रासदी में 3787 लोगों की मौत हुई।
गैर आधिकारिक आंकड़ों की माने तो इस कांड में 15 से 20 हजार लोगों की मौत हुई थी।
2006 के राज्य सरकार के हलफनामे के मुताबिक 5 लाख लोग जहरीली गैस से प्रभावित हुए थे।
लंबे मुकदमें के बाद 2010 में भोपाल की निचली अदालत ने यूनियन कार्बेइड के सात अधिकारियों को दोषी ठहराया था और उन्हें महज दो साल की सजा होती है।
वैसे तो किसी भी अपराधी का प्रत्यर्पण करवाने में हमारे देश का सिस्टम हमेशा सुस्त रहता है। ऐसा बोफोर्स घोटाले में भी देखने को मिला और एंडरसन में भी। प्रत्यर्पण का मामला चलता रहा और कानून से पहले उन तक मौत पहुंच गई।
- अभिनय आकाश
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