Pakistan चुनाव के 3 M, मिलिट्री, मियां और मसीहा...प्रधानमंत्री बनना है तो सेना का फेवरेट होना जरूरी क्यों?

Military, Mian and Messiah
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Feb 10 2024 2:10PM

एक समय पर इमरान खान भी पाकिस्तानी सेना के फेवरेट थे। लेकिन फिर कहानी पूरी तरह से बदल सी गई। 2018 के चुनावों से ठीक पहले, नवाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन इसी तरह सत्ता प्रतिष्ठान के क्रोध का शिकार थी और बाद में सत्ता प्रतिष्ठान के आशीर्वाद से पीटीआई सत्ता में आई थी।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ़ ने लंदन में अपना लगभग पांच साल लंबा निर्वासन जैसे ही समाप्त किया, 10 दिवसीय धार्मिक तीर्थयात्रा के लिए सऊदी अरब पहुंचे, इस 'उमरा' के राजनीतिक रंग ने घड़ी की टिक-टिक तेज कर दी। स्व-घोषित मसीहा इमरान खान एक समय सर्वशक्तिमान रही पाकिस्तान सेना के खिलाफ अपनी जनता की ताकत को खड़ा करते हुए, बेबाकी से राजनीतिक कहानी को फिर से लिखा है। सेना के नए चीफ जनरल असीम मुनीर के नेतृत्व में शीर्ष अधिकारियों द्वारा सीधे तौर पर हस्तक्षेप न करने के निर्णय के बाद सेना बैकडोर मिशन को लगातार जारी रखा है। चुनाव का माहौल हो और इसके परिणामों को लेकर जब भी रिजल्ट से पहले चर्चा होती है तो एक चिरपरिचित 'लाइन नतीजे चौंकाने वाले होंगे' हमेशा सुनने को मिल जाता है। लेकिन ऐसा होता भी प्रतीत हो रहा है। भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने चुनावी नतीजों ने सभी को चौंका दिया है। किसी को उम्मीद नहीं थी कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी (पीटीआई) से जुड़े 10 से भी ज्यादा उम्मीदवार जीत दर्ज कर पाएंगे। इमरान 23 अगस्त 2023 से जेल में हैं। कई संगीन मामलों में उन्हें सजा हुई। इमरान के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके अलावा उनके कई बड़े नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया। चुनाव से पहले पीटीआई का क्रिकेट बैट वाला सिंबल भी छीन लिया गया। लेकिन फिर भी पीटीआई नेताओं ने निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतरते हुए शतक पूरा किया। मिलिट्री इस्टैबलिस्मेंट की फेवरेट मुस्लिम लीग नवाज की इस चुनाव में एकतरफा जीत के सपनों को चकनाचूड़ कर दिया। 

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पाकिस्तान के चुनाव में अमूमन वोटिंग वाले दिन ही नतीजे भी आ जाते हैं। लेकिन 8 फरवरी की रात को आने वाले नतीजे आने में देरी हुई। नेटवर्क समस्या का बहाना बनाकर रिजल्ट रोका गया। जब नौ फरवरी की सुबह हुई और नेटवर्क पटरी पर आया तो पीटीआई पिछड़ने लगी। रात आते-आते पीएमएलएन के सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री पद के दावेदार नवाज शरीफ विजेता हो चुके थे। पीटीआई ने धांधली का आरोप लगाया। पाकिस्तान में चार राज्य हैं- पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनवा, बलूचिस्तान। इनकी विधानसभा को प्रांतीय सभा कहते हैं। इनमें बहुमत हासिल करने वाले नेता मुख्यमंत्री बनते हैं। नेशनल असेंबली संसद का निचला सदन है। इसमें कुल 336 सीटें हैं। बहुमत का आंकड़ा 169 है। 266 सीटों पर जनता सीधे वोट डालती है। बाकी 70 सीटों पर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित है। 266 में से जिस पार्टी को जितनी सीटें मिलती हैं उसी अनुमात में सीटों का बंटवारा होता है। 

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स्टैब्लिसमेंट का दखल, धांधली और फिक्सिंग के आरोप

पाकिस्तान का इतिहास ही देखा जाए तो उसमें साफ-साफ नजर आता है कि देश में राजनीतिक पकड़ पार्टियों से ज्यादा पाकिस्तानी सेना की है। अक्सर फैसले में सेना सरकार पर हावी होती नजर आई है या फिर यू कहें कि जब से पाकिस्तान की स्थापना हुई तब से ही सेना पावर में रही है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और कई नेता इस बात पर हामी भी भरते हैं। इमरान खान के भी यही बोल थे कि पाकिस्तान में सत्ता किसी के पास हो लेकिन ताकत सेना के पास ही रहती है। दखल और रुतबा भी फौज का ही रहता है। अगर कोई इस बात से इनकार कर रहा है तो वो बिल्कुल ही गलत है। ऐसा खुद इमरान खान ने कहा था। विदेशी मामलों के जानकार भी कहते आए हैं कि पाकिस्तान की जनता ये अच्छी तरह से जान गई है कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव असल में हो ही नहीं सकते।

कैसे पाक सेना सरकार की बैकिंग पावर बन गई

पाकिस्तान की सियासत में सेना का दबदबा इसी कारण है क्योंकि युद्ध में हार के बाद भारत से खतरा बताया जाता है। तख्तापलट का सिलसिला आजादी मिलने के बाद ही शुरू हुआ था। स्कंदर को सपोर्ट करने वाले अयूब खान ने पहले तो पाकिस्तान के संविधान को बर्खास्त करवाया और फिर मार्शल लॉ लागू करवाया। इसे ही सेना का पहला तख्तापलट कहा जाता है। फिर जिया उल हक के तख्तापलट ने तो देश-दुनिया में सुर्खियां बटोरी। लेकिन वक्त के साथ उम्मीद की जा रही थी कि पाकिस्तान में हालात सुधरेंगे। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट और वो बेपटरी होता गया। पाकिस्तान के आम चुनावों में नवाज शरीफ की जीत के बाद उन्होंने जिस परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख बनाया उन्होंने ही आगे चलकर मियां नवाज को कुर्सी से उतारा और देश निकाला भी दे दिया।

पाक का पीएम बनना है तो सेना का फेवरेट होना जरूरी क्यों

एक समय पर इमरान खान भी पाकिस्तानी सेना के फेवरेट थे। लेकिन फिर कहानी पूरी तरह से बदल सी गई। 2018 के चुनावों से ठीक पहले, नवाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन इसी तरह सत्ता प्रतिष्ठान के क्रोध का शिकार थी और बाद में सत्ता प्रतिष्ठान के आशीर्वाद से पीटीआई सत्ता में आई थी। इसके बाद इमरान खान ने तेजी से पाकिस्तानी सेना के साथ करीबी रिश्ते बनाए। अपने प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल के दौरान, उन्होंने कश्मीर मुद्दे (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने) पर अपने रुख के संदर्भ में सेना के एजेंडे को काफी आगे बढ़ाया। अमेरिका के साथ संबंधों में सुधार किया और कुछ हद तक बढ़े हुए सैन्य खर्च को बनाए रखने के लिए धन जुटाने का प्रबंधन किया। हालाँकि, सैन्य समर्थन के तहत इमरान खान की शक्ति का एकीकरण अल्पकालिक रहा। प्रतिष्ठान के साथ मतभेद पहली बार 2021 में खुलकर सामने आए जब पूर्व सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा ने लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम को इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया। खान ने अपनी पसंद के जनरल फैज़ हमीद के पक्ष में इसका विरोध किया। हालाँकि, बाद में वह कोई बदलाव लाने में असफल रहे। बाद में खान और बाजवा दोनों में विदेश नीति के मुद्दों पर मतभेद होने लगे। इसके अलावा, खान ने विभिन्न राजनीतिक मंचों पर सेना के साथ अपनी निजी चर्चा के बारे में खुलकर बोलना शुरू कर दिया, जिसे शायद सत्ता प्रतिष्ठान ने अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया, जिसके कारण इमरान खान को जेल में डाल दिया गया। 

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