नेताओं की भूख और गरीब की मजबूरी (व्यंग्य)

neta
Prabhasakshi

इस तरह, समाचार पत्रों के हिसाब से जरूरतमंदों में चावल बंट चुका था। विधायक जी की प्रशंसा हो रही थी। सभी समाचार पत्र उन्हीं की खबरों से पटे पड़े थे। विधायक जी की सफलता का जश्न मनाने के लिए बेटे ने स्थानीय नेताओं को आदेश दिया।

गर्मी के दिन थे, मेरे मित्र को बहुत पसीना आ रहा था। मैंने सोचा, चलो गर्मी का असर है। लेकिन हकीकत कुछ और थी। उसने बताया कि स्थानीय दबंग विधायक के बेटे ने पचास बोरी चावल की माँग की है। न देने पर ‘आगे खैर नहीं’ की धमकी दी है। मैंने पूछा, “इतने बड़े विधायक के घर में खाने के लाले पड़ गए हैं क्या?” उसने कहा, “नेता लोग जोंक की तरह होते हैं। दूसरों का खून चूसने वाले भूख से नहीं मर सकते। ये तो भूख के नाम पर धंधा करते हैं।”

जब मैंने पूछा कि वे इन पचास बोरी चावल का क्या करेंगे, मित्र ने कहा, “भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जरूरतमंदों में चावल बाँटकर नाम कमाना चाहते हैं। अपनी जेब से कभी एक पैसा खर्च नहीं करते, इसीलिए उन्होंने मुझे फोन किया।” मैंने कहा, “यह तो बड़ी गजब बात है। चावल दे कोई, बाँटे कोई, और नाम कमाए कोई। यह तो वही बात हुई- काम किसी का, नाम किसी का।”

इसे भी पढ़ें: नेता, अभिनेता, दोस्त या दुश्मन (व्यंग्य)

फिर भी, मित्र ने पचास बोरी चावल पहुँचा दिया। अगले दिन समाचार पत्रों में विधायक जी की बड़ी मुंडी के साथ उनके लाड़ले की छोटी मुंडी भी छपी। उसमें लिखा था कि स्थानीय विधायक जी पार्टी की ओर से अपनी जेब से पैसा खर्च कर पचास बोरी चावल जरूरतमंदों में बाँट रहे हैं। विधायक जी बड़े अक्लमंद हैं। वे भविष्य के लिए मंच तैयार करने के लिए चावल बाँटने की जिम्मेदारी अपने बेटे को सौंप दी। जिले के समाचार पत्रों में बेटे की बड़ी मुंडी वाली फोटो छपी। बड़े-बड़े अक्षरों में बेटे द्वारा चावल बाँटने की बात लिखी थी।

बेटा भी कहाँ कम था। उसने यह जिम्मेदारी ब्लॉक के नेताओं को सौंप दी। ब्लॉक के नेताओं ने ब्लॉक स्तर पर अपनी-अपनी मुंडियाँ ऐसे छपवाई जैसे काली माई ने नरमुंडमाला पहनी हो। उन्होंने चावल बाँटने की जिम्मेदारी लंबी जुबान लटकाए अपने पिछलग्गुओं को सौंप दी। अब पिछलग्गु थे लंबी जुबान और मोटी तोंद वाले। सो उन्होंने चावल बाँटने की जगह सारा का सारा चावल हड़प लिया।

इस तरह, समाचार पत्रों के हिसाब से जरूरतमंदों में चावल बंट चुका था। विधायक जी की प्रशंसा हो रही थी। सभी समाचार पत्र उन्हीं की खबरों से पटे पड़े थे। विधायक जी की सफलता का जश्न मनाने के लिए बेटे ने स्थानीय नेताओं को आदेश दिया। स्थानीय नेताओं ने अपने पिछलग्गुओं को आदेश का पालन करने के लिए कहा। जश्न वाले दिन हड़पे हुए चावल की बिरयानी बनी। सभी नेताओं ने जमकर खाया। इस अवसर पर ब्लॉक के नेताओं ने कुछ गरीबों को डरा धमकाकर जनसभा में घसीट लाया। इन्हें दो-तीन सौ रूपये, एक बिरयानी का पैकेट और छोटे-से पौवे का लालच देकर विधायक जी की प्रशंसा करने के लिए मंच पर चढ़ा दिया गया।

मंच पर चढ़े एक गरीब ने विधायक जी की प्रशंसा के पुल बाँधते हुए कहा, “हमारे विधायक जी भगवान हैं। यदि आज वे न होते तो इस लॉकडाउन में हम भूखों मर जाते। भला हो ऊपरवाले का जिसने हमें भगवान समान विधायक जी को इस अवसर पर अन्नदाता के रूप में भेज दिया। उनका बाँटा हुआ चावल एकदम बारीक था। इतना महँगा और बेहतरीन चावल आज तक हमने जिंदगी में नहीं खाया। धन्य हैं हमारे विधायक जी। मैं उनकी लंबी आयु की कामना करता हूँ। विधायक जी जिंदाबाद।”

‘खाए कोई, स्वाद बताए कोई’ फार्मुले ने ऐसा रंग जमाया कि विधायक जी अपने में मस्त थे और जनसभा अपने में।

- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़