शपथ परम्परा शुरू करने की ज़रूरत (व्यंग्य)
गंगा के लिए मंत्रालय स्थापित करने के बाद भी गंगा साफ़ न हुई। उसे कुदरत ने खुद ही साफ़ किया लेकिन अगर देश में शपथ परम्परा को संजीदगी से लागू कर दिया जाए तो बहुत सी समस्याएं स्वत समाप्त हो सकती हैं।
उनकी कोई बात, कोई सुनकर राजी नहीं है लेकिन उनकी बात में अपनी तरह का दम है। यह तो हमेशा होता रहा कि समाज में सही बात करने वालों को अनदेखा किया गया और अधिकांश लोगों को मीठी बातों की चाशनी चटवाई जाती रही और वे मज़े ले लेकर चाटते भी रहे। उनकी सलाह पढने में क्या हर्ज़ है, कोरोना का मौसम है सबके पास, सबसे मुश्किल से मिलने वाली वस्तु यानी वक़्त की भरमार है। फिर हमारे पास कौन सा बहुमत, राजनीतिक बहुमत, धन बहुमत या बल मत है जो उनकी बात दूसरों से मनवा लेंगे। समय बिताने के लिए पढ़ लिया जाए और कुछ देर बाद भुला भी दिया जाए। हमारे यहां तो वैसे भी सबकुछ भुला देने की समृद्ध परम्परा है।
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उनका पहला कहना है कि गंगा के लिए मंत्रालय स्थापित करने के बाद भी गंगा साफ़ न हुई। उसे कुदरत ने खुद ही साफ़ किया लेकिन अगर देश में शपथ परम्परा को संजीदगी से लागू कर दिया जाए तो बहुत सी समस्याएं स्वत समाप्त हो सकती हैं। उनके अनुसार जो लोग गरीबी रेखा के नीचे या इधर उधर हैं, जिन्हें वोट बैंक बनाए रखने के लिए हर बरस करोड़ों रूपए खर्च किए जाते हैं उनसे व्यक्तिगत स्तर पर शपथ पत्र ले लेना चाहिए जिसमें लिखा हो कि वे उन्हें दी जा रही सरकारी सामाजिक सुविधाओं से पूरी तरह संतुष्ट हैं। नेता, अधिकारी व कर्मचारी उनकी पूरी मदद कर रहे हैं, यदि वे भूख, बीमारी या किसी दुर्घटना में मरते हैं तो इसे उनके दुर्भाग्य की गलती माना जाए। इस सम्बन्ध में किसी के खिलाफ कोई कारवाई न की जाए प्रशासन का किसी भी किस्म का उत्तरदायित्व न माना जाए।
उनका अगला विचार पढ़िए, नागरिक जो साठ साल या उससे ऊपर हो चुके हैं और पारिवारिक, सामाजिक या स्वास्थ्य कारण से अब जीना नहीं चाहते। उनको बीमार होने का हक नहीं है। इच्छा मृत्यु योजना के नियमों को आसान बनाते हुए उनसे एक शपथ पत्र लेकर यह स्वार्थी संसार छोड़ने का अधिकार दे देना चाहिए। शपथ पत्र के अनुसार यदि उनकी ज़मीन जायदाद है, संतान है तो उन्हें एक विदाई पार्टी देनी होगी, कोरोना समय में तो उसकी भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इससे बहुत से लोग जो खुद मानते हैं कि वे नारकीय जीवन से भी बदतर जीवन जी रहे हैं इस सांसारिक जंजाल से छूट जाएंगे। यदि सही तरीके से संकल्प लिया जाए बुजुर्गों को पटाया जाए कि आप यह नरक छोड़कर खुद ही उस स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं तो वे तैयार हो जाएंगे। उनके अनुसार इस ठोस तरीके से बहुत से फ़ालतू बुड्ढों निजात पाई जा सकती है और उनकी संतानों को खुश किया जा सकता है। सरकार द्वारा दी जाने वाली बुढापा पेंशन का पैसा भी बचेगा। बस, एक शपथ पत्र लेकर कार्यान्वित ही तो करना है।
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उनके अनुसार सामान्य प्रशासन को चाहिए कि मरने के नियम और शर्तों को ज्यादा सरल बनाए ताकि ज्यादा से ज्यादा नागरिक फायदा उठा सकें। अभी तो यहां करोड़ों को एक वक़्त की रोटी नसीब नहीं होती, कपडे और सर पर छत मिलना तो दूर की बात है। काफी अवांछित लोगों को लुभा फुसलाकर ज़बरदस्ती शपथ पत्र हथिया लेना चाहिए ताकि भूखों को खत्म करने का पुण्य कमाया जा सके। इस नैतिक तरीके से देश की जनसंख्या कम करने में सक्रिय योगदान दिया जा सकता है।
मुझे लगता है आपको उनकी शपथ पत्र योजना मानवीय, सामाजिक, अपनी संस्कृति के मुताबिक़ नहीं लग रही है इसलिए आप आगे पढ़ना नहीं चाहते तो पाठकों…. फिर मिलते हैं बेहतर योजना के साथ।
- संतोष उत्सुक
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