''आरटीआई से पत्रकारिता'' की विधि सिखाती एक पुस्तक (पुस्तक समीक्षा)

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पुस्तक (हिंदी, पेपरबैक संस्करण) का आवरण पृष्ठ पलटते ही पहले पृष्ठ पर ''पुस्तक की प्रशंसा में...'' पत्रकारिता के प्रमुख हस्ताक्षर श्रद्धेय रामबहादुर राय, पी. साईनाथ, प्रभु चावला, ब्रिजिट आवटर, मार्क ली हंटर और मार्टिन रोसेबॉम के अभिमत दिखाई पड़ते हैं।

भारत में सूचना का अधिकार, अधिनियम-2005 (आरटीआई) लंबे संघर्ष के बाद जरूर लागू हुआ है, किंतु आज यह अधिकार शासन-प्रशासन व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जहाँ सूचनाओं को फाइल पर लालफीता बांध कर दबाने की प्रवृत्ति रही हो, वहाँ अब साधारण नागरिक भी सामान्य प्रक्रिया का पालन कर आसानी से सूचनाएं प्राप्त कर सकता है। सूचनाओं तक पहुँच की सुविधा से सबसे अधिक लाभ पत्रकारों को हुआ है। यद्यपि अभी भी पत्रकार सूचना के अधिकार का प्रभावी ढंग से उपयोग कम ही कर रहे हैं। श्यामलाल यादव ही वह पत्रकार हैं, जिन्होंने आरटीआई के माध्यम से पत्रकारिता को नया स्वरूप और नये तेवर दिए हैं। वर्ष 2007 के बाद से अब तक उन्होंने इतनी अधिक आरटीआई लगाईं और उनसे समाचार प्राप्त किए कि न केवल देश में बल्कि देश की सीमाओं से बाहर भी 'आरटीआई पत्रकार' के रूप में उनकी ख्याति हो गई है। उन्होंने अपने अनुभवों को आधार बनाकर अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी- 'जर्नलिज्म थ्रू आरटीआई: इंफोर्मेशन, इंवेस्टीगेशन, इंपैक्ट'। जो हिंदी में अनुवादित होकर 'आरटीआई से पत्रकारिता: खबर, पड़ताल, असर' के नाम से प्रस्तुत है। यह पुस्तक सिखाती है कि कैसे पत्रकार सूचना के अधिकार कानून को अपना हथियार बना सकते हैं। श्री यादव ने किस्सागोई के अंदाज में पुस्तक के विभिन्न अध्याय लिखे हैं और बताया है कि एक पत्रकार के तौर पर उन्होंने आरटीआई का किस तरह उपयोग कर सूचनाएं जुटाईं और बारीकी से अध्ययन कर प्राप्त सूचनाओं को किस तरह बड़े समाचारों में परिवर्तित किया। 

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पुस्तक (हिंदी, पेपरबैक संस्करण) का आवरण पृष्ठ पलटते ही पहले पृष्ठ पर 'पुस्तक की प्रशंसा में...' पत्रकारिता के प्रमुख हस्ताक्षर श्रद्धेय रामबहादुर राय, पी. साईनाथ, प्रभु चावला, ब्रिजिट आवटर, मार्क ली हंटर और मार्टिन रोसेबॉम के अभिमत दिखाई पड़ते हैं। सबने पुस्तक की उपयोगिता, पत्रकारिता के लिए आरटीआई के महत्व और श्यामलाल यादव के काम को रेखांकित किया है। इस पुस्तक के संदर्भ में पी. साईनाथ की टिप्पणी सटीक है- 'यह महत्वपूर्ण पुस्तक उनकी अपनी जबरदस्त स्टोरीज के कुल निचोड़ से कहीं अधिक, आरटीआई के संक्षिप्त इतिहास, एक लोकतांत्रिक समाज में इसकी भूमिका और खोजी पत्रकारों के लिए एक सशक्त उपकरण के रूप में आरटीआई का महत्व भी बताती है।' निश्चित ही यह पुस्तक आरटीआई से प्राप्त समाचारों की कहानियों का संकलन मात्र नहीं है। यह पुस्तक आरटीआई के संक्षिप्त इतिहास के साथ ही 'आरटीआई के आगमन और मीडिया की भूमिका' पर भी पर्याप्त प्रकाश डालती है। पुस्तक का पहला ही अध्याय यह है। पहले ही अध्याय में लेखक ने आरटीआई की उपयोगिता पर पर्याप्त ध्यानाकर्षित किया है। आगे के आठ अध्याय में लेखक विस्तार से अपने अनुभवों को खुलकर पाठक के सामने रखते हैं। जिनसे यह सीखा जा सकता है कि सूचनाएं प्राप्त करने में आरटीआई का बेहतर उपयोग किस तरह किया जाए। उन्होंने मंत्रियों की विदेश यात्राओं, नौकरशाहों की विदेश यात्राओं, आईएएस/ आईपीएस/ आईआरएस के भ्रष्टाचार के मामलों की जानकारी, सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठनों के संबंध में खुलासे एक अदद सूचना के अधिकार कानून की मदद से किए हैं।

सहज और दिलचस्प अंदाज में लेखक ने यह सब किस्से बयां किए हैं, पढ़ते समय कहीं भी बोझिल नहीं लगते। एक के बाद एक किस्से पाठक की रुचि और पढ़ने-जानने की भूख को उग्र करते हैं। नदियों में प्रदूषण के स्तर को जानने के लिए लगाई गई आरटीआई और उनसे प्राप्त समाचारों ने पत्रकार श्यामलाल यादव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। इससे संबंधित समाचार के लिए उन्हें एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट से डेवलपिंग एशिया जर्नलिज्म अवार्ड सहित अन्य संस्थाओं से अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। वह स्वयं भी लिखते हैं कि 'आरटीआई कानून के जरिए पड़ताल की गई मेरी स्टोरीज में, इस स्टोरी को बेमिसाल माना जा सकता है। हालांकि कई ऐसी स्टोरीज थीं, जिन्होंने बतौर पत्रकार मुझे बेहद संतुष्टि दी, लेकिन यह स्टोरी अनेक मायनों में बाकियों से अलग थी।' 

यूरोप के खोजी पत्रकार ब्रिजिट आवटर लिखती हैं कि 'श्यामलाल यादव ने पत्रकारिता के लिए आरटीआई का एक सशक्त औजार की भांति इस्तेमाल किया है। उनकी पुस्तक में विस्तृत व्यावहारिक उदाहरणों के साथ बेहद जरूरी दृष्टिकोण भी है, ताकि साथी पत्रकार और भविष्य के पत्रकार उनके अनुभवों से सीख सकें।' खोजी पत्रकारिता में अपना भविष्य देख रहे पत्रकार, नवागत पत्रकार एवं पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए यह किताब कितनी महत्वपूर्ण है, उक्त टिप्पणी से समझा जा सकता है। श्रद्धेय राम बहादुर राय भी कहते हैं कि यह पुस्तक आरटीआई से समाचार प्राप्त करने की विधि के साथ ही स्टोरी आइडिया की समझ भी विकसित करती है। वह पुस्तक को पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात भी कहते हैं।

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यूं तो पुस्तक के सभी अध्याय 'आरटीआई से पत्रकारिता' सिखाते हैं, किंतु 11वां अध्याय 'पत्रकार किस तरह आरटीआई का इस्तेमाल करें और बदलाव लाएं' विशेषतौर पर पत्रकारिता के लिए आरटीआई के उपयोग की समझ पैदा करता है। इस अध्याय में श्री यादव बताते हैं कि इस कानून का उपयोग करने के पहले स्टोरी आइडिया की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए। सवाल पूछने की बजाय सिर्फ सूचना मांगनी चाहिए। आरटीआई लगाते समय हम अकसर गलती करते हैं- जानकारी माँगते कम, प्रश्न पूछते अधिक नजर आते हैं। प्रारूप सरल और स्पष्ट रखना बनाएं। वह बताते हैं कि हमें इस अधिकार का उपयोग करने से पहले इसकी छूटों के बारे में जान लेना चाहिए। प्राप्त सूचना पर और अधिक काम करना चाहिए।

पुस्तक के लेखक श्यामलाल यादव खोजी पत्रकारिता के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के दूसरे बैच के विद्यार्थी हैं। उनके कारण सदैव विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा बढ़ी है। श्री यादव जनसत्ता, अमर उजाला और इंडिया टुडे में काम कर चुके हैं। वर्तमान में इंडियन एक्सप्रेस में वरिष्ठ संपादक हैं। वह पत्रकारिता जगत के सबसे चर्चित खुलासे 'पैराडाइज पेपर्स' की टीम का हिस्सा रहे हैं। उनके अनुभवों और सफलतम समाचारों के निचोड़ के रूप मे सामने आई यह पुस्तक निश्चित तौर पर नवागत पत्रकार एवं पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। बहुत ही कम समय में देश-दुनिया में उनकी इस पुस्तक ने सुर्खियां बटोरी हैं। पत्रकारिता एवं अकादमिक जगत में अपना स्थान भी बनाया है। इस पुस्तक चर्चा को इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक राजकमल झा की इस टिप्पणी के साथ पूरा करते हैं- 'संपादकों, संवाददाताओं, शोधकर्ताओं और पत्रकारिता के शिक्षकों के साथ ही आम लोगों के लिए यह संग्रहणीय और पठनीय पुस्तक है। वे जान सकते हैं कि दस रुपये के पोस्टल आर्डर और एक सशक्त कानून में कितनी ताकत है।'    

पुस्तक- आरटीआई से पत्रकारिता: खबर, पड़ताल, असर

लेखक- श्यामलाल यादव

प्रकाशक- सेज प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य- 440 रुपये (हिंदी पेपर बैक संस्करण)

लोकेन्द्र सिंह

(समीक्षक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं।)

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