तेज़ हवा की गुस्ताखियां (व्यंग्य)

wind
ANI

मूर्तिपूजक समाज से ऐसी ही उम्मीद करनी चाहिए। सम्बंधित दोषियों ने अपने बचाव के लिए राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रबंध शुरू कर दिए होंगे। इंसान नहीं मूर्ति का मामला है इसलिए जांच ज्यादा बेहतर तरीके से की जाएगी।

बरसात की परेशानियां खत्म नहीं हुई उधर तेज़ हवाओं ने भी मोर्चा संभाल लिया है। इतनी बड़ी, भारी, महंगी विशाल मूर्ति को तोड़ दिया। सशक्त जाँच टीमें गठित कर दी गई है। जांच तो होगी ही क्यूंकि जांच होनी ही चाहिए वैसे इस बारे ज़्यादा संशय नहीं है कि जांच में क्या निकलेगा। अरे हां, एफआईआर भी दर्ज कर दी गई है। वैसे यह दिलचस्प है कि कई इंसानी मामलों में एफआईआर इतनी जल्दी और आसानी से दर्ज नहीं हो सकती। इससे यह साबित होता है कि हमारे समाज में मूर्तियों की साख और प्रभाव ज़्यादा है।

मूर्तिपूजक समाज से ऐसी ही उम्मीद करनी चाहिए। सम्बंधित दोषियों ने अपने बचाव के लिए राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रबंध शुरू कर दिए होंगे। इंसान नहीं मूर्ति का मामला है इसलिए जांच ज्यादा बेहतर तरीके से की जाएगी। ऐसा होना भी ज़रूरी है क्यूंकि मूर्ति की कीमत करोड़ों में है। इंसान की कीमत इतनी हो नहीं सकती। हो सकता है कुछ समझदार व्यक्तियों की टीम का गठन करके मूर्ति की कीमत दोबारा आंकी जाए। 

इसे भी पढ़ें: विज्ञापन में जीवन (व्यंग्य)

यह ज़िम्मेदार प्रशासन की व्यावहारिक परेशानी है कि इतनी बड़ी प्रतिमा को आनन और फानन में दोबारा स्थापित भी नहीं कर सकते। वैसे लोकप्रिय सरकार ने, विपक्ष द्वारा भ्रष्टाचार के ज्यादा भारी आरोपों के मद्देनज़र उचित निर्णय लेते हुए अविलम्ब घोषणा कर दी कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए दोषियों को कड़ी सज़ा दी जाएगी। यह सही कार्य इसलिए किया कि न सिर्फ विपक्ष के आरोपों की धार कुंद हो सके बल्कि सार्वजनिक निर्माण में किसी भी किस्म की लापरवाही और उदासीनता बरतने वालों को यह कठोर संदेश जाए कि वे किसी भी सूरत में बख्शे नहीं जाएंगे।

राजनीति, सामयिक समझदारी से काम करती है। बाल काले कर, साफ सुथरे कपडे पहनकर वक्तव्य देती है। इस बार जांच की ज़रूरत को खत्म करते हुए स्पष्ट बता दिया गया कि तेज़ हवाओं  ने जान बूझकर इस मूर्ति को तोड़ा है। तेज़ हवाएं भी प्राकृतिक आपदा ही हैं और सब जानते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं से कोई नहीं बच सकता। तेज़ हवा के कारण निर्माण सामग्री की गुणवत्ता से समझौते बारे पता करने की ज़रूरत नहीं रहती। तेज़ हवा, राजनीतिक दबाव में जल्द से जल्द कार्य करने की प्रवृति भी उजागर नहीं होने देती । कमबख्त हवा यह भी विचार नहीं करती कि हमारे सभ्य समाज में प्रतिमा बनाकर पुरखों का कितना सम्मान किया जाता है। भगवान, ऋषि, मुनियों और नेताओं का मान बढाया जाता है। बिना पूछे तेज़ गति से चलने वाली इन हवाओं को क्या पता कि समाज को शिक्षा संस्कार और विचार, बिना प्रयत्न किए, मूर्तियों से ही मिल जाते हैं। पाप नामक दोष का निवारण भी हो जाता है।  

यह तो अच्छी सूझबूझ है कि करोड़ों में बनी मूर्ति में, लाखों का सामान लगाया जाता है। पूरी राशि का सामान लगा दिया होता तो वह भी बर्बाद हो जाता। शातिर नेता ऐसी हवाओं के शुक्रगुजार होते हैं, जो तेज़ चलने के नाम पर गुस्ताखियां करती रहती हैं और उन्हें इल्जामों से बचाती रहती हैं। तेज़ हवाओं की कारगुजारियों की तप्तीश करने की हिम्मत किसी में नहीं होती इसलिए सुस्त सुरक्षा और महारानी राजनीति भी खुश रहती हैं।  

- संतोष उत्सुक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़