बिल्ली का बच्चा (बाल कहानी)
अन्नू की मम्मी ने ध्यान दिया अभी उसे म्याऊँ म्याऊँ करना भी नहीं आता था। उन्होंने प्यार से बच्चे को उठाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरा मगर उसका आवाज़ें निकालना जारी था। वह अवश्य ही अपनी मां को याद कर रहा था।
एक सुबह अन्नू अपने घर की छत पर टहल रही थी। पिछली रात हल्की बारिश हो चुकी थी। अब मौसम साफ था व धूप निकल आई थी। अचानक उसकी नज़र छत के कोने में पड़े जानवर के बच्चे पर पड़ी। बच्चा हिल नहीं रहा था। उसे लगा शायद बंदर मरे हुए बच्चे को वहाँ फेंक गया होगा। वह पुकारने लगी, मम्मी मम्मी, देखो यहाँ किसी जानवर का बच्चा पड़ा है। मम्मी नीचे रसोई में सब्जी बना रही थी, वह ऊपर आई और दोनों छत के कोने में गई। वहां बिल्ली का छोटा सा बच्चा, अपने चारों पाँव सिकोड़े हुए, पोटली सा बना पड़ा हुआ था। वह डरा हुआ लग रहा था अजीब सी आवाज़ें निकाल रहा था।
अन्नू की मम्मी ने ध्यान दिया अभी उसे म्याऊँ म्याऊँ करना भी नहीं आता था। उन्होंने प्यार से बच्चे को उठाया, उसकी पीठ पर हाथ फेरा मगर उसका आवाज़ें निकालना जारी था। वह अवश्य ही अपनी मां को याद कर रहा था। अन्नू की मम्मी ने कहा, शायद हमारे घर के आसपास बिल्ली ने बच्चे दिए होंगे । मगर यह इतनी ऊंची छत पर पहुंचा कैसे। ज़रूर इसे बंदर ने कहीं से उठाया होगा और यहाँ उसके हाथ से छूटकर गिर गया।
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अन्नू बोली हमें इसकी मम्मी को खोजना चाहिए हो सकता है आसपास हो और इसके भाई बहन भी हों। उसने अपने नन्हें हाथों में बिल्ली के बच्चे को लेकर, छत पर बने स्टोर के अंदर रख दिया और बाहर से दरवाजा लगा दिया ताकि बंदर को न दिखे। इस बीच उसका भाई शेखू खेल कर वापिस आए, उसने बच्चे को दूध दिया मगर उसने पिया नहीं, फिर दूध फर्श पर डाला तो भी उसने मुश्किल से कुछ बूंदे ही चाटी। ऐसा लग रहा था वह बहुत उदास है। उसकी मम्मी को खोजना ज़रूरी था।
शेखू खेल कर आया तो अन्नू ने उसे बिल्ली के बच्चे के बारे में बताया। अब अन्नू और शेखू दोनों बिल्ली के बच्चे को हाथ में उठाकर उसकी मां को ढूँढने निकले। उनके घर के पास एक तालाब था उसके आसपास देखा मगर बिल्ली नहीं मिली। फिर एक और बच्चे ने उन्हें बताया कि कुछ दूरी पर एक मकान बन रहा है शायद वहाँ बिल्ली ने बच्चे दे रखे हों। वे तीनों बच्चे वहाँ भी गए लेकिन वहाँ भी बिल्ली या अन्य बच्चे नहीं मिले। अब शाम होने लगी थी। वे बिल्ली के बच्चे को घर ले आए और उन्होंने उसे बोतल से दूध पिलाने की कोशिश की, बच्चा आवाज़ें निकालते निकालते सो गया।
अगले दिन रविवार था, शेखू अन्नू जल्दी उठ गए थे। वे चाहते थे कि बच्चे को मम्मी मिल जाए। उन्होंने फिर खोजना शुरू किया, काफी ढूंढा लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने पापा के दोस्त, पशु चिकित्सक से बात की उन्हें बिल्ली के बच्चे के बारे बताया कि छोटा है अभी उसे म्याऊँ म्याऊँ बोलना भी नहीं आता। उन्हें क्या करना चाहिए। पशु चिकित्सक ने समझाया कि ऐसा माना जाता है कि बिल्लियाँ इंसानी हाथ लगने के बाद अपने बच्चों को स्वीकार नहीं करती। वैसे भी आप इसकी मम्मी को काफी ढूंढ चुके हो। अच्छा तो यही है कि आप इसे स्वयं पाल लें थोड़ा बड़ा होने पर जब यह समझदार हो जाएगा तब आप इसे छोड़ सकते हो। धीरे धीरे यह आत्म निर्भर हो जाएगा। शेखू और अन्नू ने अपनी मम्मी से बात की। उन्होंने भी बच्चे को घर पर पालने के लिए कहा। दोनों बच्चों ने भी उसका ध्यान रखा, समय समय पर अपने डाक्टर अंकल से भी पूछते रहे। बिल्ली का बच्चा, शेखू ,अन्नू व उनके मम्मी पापा के साथ खेलते खेलते कब बड़ा हो गया पता ही नहीं चला। उनके दिमाग में यह बात कभी नहीं आई कि उसे कहीं छोड़ आएं। वह अब उनके घर का सदस्य जो बन गया था।
- संतोष उत्सुक
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