शराब का लाजवाब शबाब (व्यंग्य)
मदिरा से हमारे जितना लगाव विदेशी नहीं रखते। इस सन्दर्भ में वहां होने वाले दिलचस्प अध्ययन, रिपोर्ट्स, सर्वेक्षण बताते हैं कि साल का पहला महीना यानी जनवरी ड्राई रखा जाता है। शायद इसलिए कि दिसंबर में ज़्यादा पी ली जाती है।
शराब का अपना शबाब होता है। हमारे यहां मदिरा बहुत अनुशासित और सांस्कृतिक तरीके से पी जाती है जिसमें बची खुची शर्म और हया भी शामिल है। अब खुलेपन और निहायत बेशर्मी ने हमारे पीयू समाज पर कब्ज़ा करना शुरू कर रखा है लेकिन विदेशों में मदिरापान की पूरी विकसित संस्कृति बहुत पहले से है। परिवार में सुबह के नाश्ते से लेकर रात को सोने से पहले तक इसका मज़ा लिया जाता है। सैंकड़ों किस्म और स्वाद की वाइन बनाई जाती है जिनका स्वाद विकसित करने के लिए समंदर में भी रखा जाता है।
मदिरा से हमारे जितना लगाव विदेशी नहीं रखते। इस सन्दर्भ में वहां होने वाले दिलचस्प अध्ययन, रिपोर्ट्स, सर्वेक्षण बताते हैं कि साल का पहला महीना यानी जनवरी ड्राई रखा जाता है। शायद इसलिए कि दिसंबर में ज़्यादा पी ली जाती है। हमारे यहां तो पीने वालों को एक दिन भी सूखा रहने के लिए कहा जाए तो काफी कुछ गीला हो सकता है। बताते हैं वहां पार्टियों की लम्बी श्रृंखला के बाद लाखों लोग नए साल के लिए संकल्प लेते हैं कि जनवरी में शराब को दूर से ही देखेंगे, मुंह तो क्या हाथ भी न लगाएंगे। सुना है अमेरिका में दो सौ साठ लाख लोगों ने ऐसी गलत किस्म की कसम ली है। हमारे विकसित समाज में ऐसी दुखी करने वाली, फ़िज़ूल की कसमें कोई नहीं लेता। हमारे पास कई दूसरे बेहद ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण मसले हैं जिनके बारे कसमें, वायदे और संकल्प लिए जाते हैं।
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वहां के एक विश्वविद्यालय की रिपोर्ट की दिलचस्प बात यह है कि महीने भर शराब न पीकर लोगों ने अधिक ऊर्जावान महसूस किया। उन्हें बेहतर नींद भी आई। ग्यारह महीने पीते रहने से बढ़ गया वज़न भी कम होने लगा। ब्लड शुगर लेवल भी नीचे उतरा । बेहद प्रशंसनीय और अचरज भरी बात यह पता चली कि चार सप्ताह शराब न पीने से पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं पर बहुत सकारात्मक असर हुआ। उनकी कई बीमारियां जल्दी ठीक होती दिखी और स्वास्थ्य में सुधार हुआ। यह विदेशी विश्वविद्यालय भी कैसे कैसे काम करवाते रहते हैं। इन्हें हमारे समझदार विश्वविद्यालयों से सीखना चाहिए कि पढाई लिखाई क्या वस्तु होती है।
हमारे यहां कोई ऐसे अध्ययन नहीं करवाता न ही ज़रूरत है। किसी को भी एक महीना या कुछ दिन शराब छोड़ने के लिए नहीं बल्कि ऐसी सुविधा संस्कृति उपलब्ध करवाई जा रही है कि सिर्फ एक बार मिली ज़िंदगी की परेशानियां शराब और दूसरे नशों में डूबकर कम कर सकें। हमारे यहां तो पीना लगातार ऊर्जा का स्रोत है और तनाव कम करने का तो है ही। गोवा जैसी खूबसूरत धरती पर, जहां की फैनी बहुत प्रसिद्ध रही है, किया गया शोध बताता है कि तनाव, अवसाद, चिंता, थकान, वर्क लाइफ संतुलन, प्रशासनिक दबाव, मौत को नज़दीक से देखने और भावनात्मक बोझ में लिपटी ज़िंदगी के लिए शराब संबल का काम कर रही है। ऐसी वफादार दोस्त को, कोई एक महीना तो क्या एक शाम के लिए भी क्यूं छोड़ेगा।
- संतोष उत्सुक
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