अभिनेता-गीतकार पीयूष मिश्रा का साक्षात्कार- 'थोपे हुए सन्नाटे में कविता कैसे लिखें'
अभिनेता-गीतकार पीयूष मिश्रा इन दिनों अपनी वेबसीरिज 'इललीगल-जस्टिस आउट ऑफ आर्डर' के चलते चर्चा में हैं। इस वेबसीरिज के जरिए उन्होंने डिजिटल दुनिया में अपनी शुरुआत कर दी है। इस सीरिज के अनुभव, लॉकडाउन में कविताकर्म जैसी बातों पर हमने उनसे खास बात की।
अभिनेता-गीतकार पीयूष मिश्रा इन दिनों अपनी वेबसीरिज 'इललीगल-जस्टिस आउट ऑफ आर्डर' के चलते चर्चा में हैं। इस वेबसीरिज के जरिए उन्होंने डिजिटल दुनिया में अपनी शुरुआत कर दी है। इस सीरिज के अनुभव, लॉकडाउन में कविताकर्म जैसी बातों पर हमने उनसे खास बात की।
सवाल- डिजिटल दुनिया में ये आपका पहला कदम था। आपका अनुभव कैसा रहा ?
जवाब- अनुभव बहुत अच्छा रहा। केंद्रीय चरित्र था मेरा। मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी थी, तभी बहुत रोचक लगी थी। मैं 41 साल से अपनी एक्टिंग के बारे में सोच रहा हूं तो पाता हूं कि हर तीन-चार साल में मेरा एक्टिंग मैथड बदल जाता है। लेकिन, इललीगल के विषय में कहूंगा कि इसमें मेरा अभी तक का सबसे परिपक्व मैथड है। हो सकता है कि ये भी थोड़े दिन में बदल जाए। फिर, एक्टिंग मैथड को एप्लाई करने के लिए आपको वैसी लाइंस चाहिए होती हैं, वैसे शेड्स चाहिए होते हैं तो जेजे के चरित्र में वो सब था। मेरे ख्याल से इतना निगेटिव किरदार मैंने अभी तक नहीं निभाया।
सवाल- पहले सीजन के आखिर तक आते आते दूसरे सीजन के संकेत मिल गए। तो क्या योजना है?
जवाब- मुझे इस बारे में पता नहीं। ये काम निर्माता-निर्देशक का है। मैं इतना जानता हूं कि मैंने पहले सीजन में काम करते हुए बहुत आनंद लिया। मेरा काम है, एक्टिंग के लिए पैसे लेना और फिर खुद को किरदार में झोंकना। तो जब भी दूसरे सीजन का प्रस्ताव आएगा तो ऐसा ही करुंगा।
सवाल- वेबसीरिज में काम करते हुए फिल्म से अलग क्या अनुभव हुआ। हालांकि, अब तो वेबसीरिज में भव्यता भी बहुत है।
जवाब- वेबसीरिज लेखक का माध्यम है और यहां तसल्ली से किरदार को विकसित करने का मौका मिलता है। फिल्म में जो कहानी डेढ़ दो घंटे में कहनी होती है, उसे वेबसीरिज में आराम से छह-सात घंटे में कहा जा सकता है। आप यहां कैरेक्टर को अच्छे से एक्सप्लोर करते हैं। खास बात ये कि लेखक जब पहले ही किरदार के तमाम आयाम खोज लेता है तो एक्टर उससे और आगे सोचता है।
सवाल- कई समीक्षकों ने इललीगल की स्क्रिप्ट में कुछ कमियां देखीं। झोल देखे। आप कैसे देखते हैं।
जवाब- देखिए, मैं इस विषय में कुछ नहीं बोल सकता क्योंकि मैंने इसमें काम किया है। कुछ कमियां हैं, जिन पर देखते हुए ध्यान गया, लेकिन उन पर मेरा बोलना ठीक नहीं है।
सवाल- आपने स्क्रिप्ट पढ़ी थी पहले?
जवाब- बिलकुल पढ़ी थी। मैं हर स्क्रिप्ट को एक महीने पहले मंगा लेता हूं। रोज उसे पढ़ता हूं ताकि उस किरदार से जितनी लड़ाई लड़नी हो, वो मैं पहले ही लड़ लूं। मैं सेट पर जाकर कोई हंगामा नहीं करता और एक बच्चे की तरह रहता है, जिसे कोई भी निर्देशक आसानी से निर्देशित कर सकता है। जहां तक इस स्क्रिप्ट की बात है तो मैंने पढ़ी थी, मुझे रोचक लगी थी। रही बात कमियों की तो अपने किरदार को लेकर मुझे जो भी बात करनी थी, वो मैंने निर्देशक से की। बाकी कलाकारों को अगर मैं मदद कर सकता हूं तो मैं करता हूं। लेकिन, एक एक्टर के रुप में मैं पूरी फिल्म या वेबसीरिज के शूट को ना तो देख सकता हूं, और ना मेरी जिम्मेदारी है। वो निर्माता-निर्देशक का काम है।
सवाल- इललीगल के लिए आपको सबसे अच्छा कमेंट क्या मिला।
जवाब- यही कि हम आपको घृणा किए बगैर नहीं रह सकते लेकिन आप राक्षस नहीं लगते। दरअसल, जेजे का चरित्र एक ह्यूमनली क्रूअल है, और इसे ऐसा दिखाना ही एक्टर के रुप में चुनौती था क्योंकि एक पल में इस किरदार के पूरी तरह ब्लैक हो जाने का खतरा था।
सवाल-लॉकडाउन में आपने कौन सी वेबसीरिज देखीं। कौन सी पसंद आईं।
जवाब-बहुत देखीं। पाताललोक बहुत पसंद आई। असुर अच्छी लगी। नीरज पांडे का मैं फैन हूं। उसकी स्पेशलऑप्स भी बहुत शानदार है।
सवाल- मुंबई में लॉकडाउन खत्म होता नहीं दिखता। क्या इरादा है।
जवाब- क्या कर सकते हैं। हमें कोरोना के साथ रहना सीखना होगा। ध्यान करना चाहिए। अपनी इम्युनिटी बढ़ानी चाहिए। कभी कभी निराशा होती है लेकिन हमें इससे निपटना खुद सीखना होगा।
सवाल -कहते हैं कि निराशा के वक्त कवियों को उर्वर भूमि मिलती है, आपके साथ ऐसा है ?
जवाब- बिलकुल नहीं। एक होता है सन्नाटा, जिसे आप खुद खोजते हैं। एक होती है कैद, जिसमें भी सन्नाटा होता है,लेकिन वो आप खुद नहीं चाहते। तो इस कैद में कुछ लिखना बहुत मुश्किल है। कभी कभी तो ऐसी निराशा होती है कि रोने का मन करता है। लेकिन, फिर यही कहता हूं हमें इस खतरे से निपटना खुद ही सीखना होगा।
- पीयूष पांडे
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