Diwali 2024: घर पर लक्ष्मी जी के स्थायी वास के लिए इस तरह करें पूजन
मान्यता है कि दीपावली के पूजन का जो समय होता है उसके अतिरिक्त यदि देर रात्रि लक्ष्मी पूजन किया जाए तो मां लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होती हैं। कई लोग लक्ष्मी पूजन के समय सिर्फ उन्हीं की तस्वीर की पूजा करते हैं।
देवी लक्ष्मी पूरे विधि विधान से की गयी पूजा से प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं। लक्ष्मी जी के पूजन के समय सबसे जरूरी है कि पूजा की थाली शास्त्रों के अनुसार सजाई जाए। शास्त्रों में उल्लेख है कि लक्ष्मी पूजन के लिए तीन थालियां होनी चाहिए। इनमें पहली थाली में 11 दीपक समान दूरी पर रखें कर सजाएं। दूसरी थाली में धानी (खील), बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर कुमकुम, सुपारी और थाली के बीच में पान रखें और तीसरी थाली में फूल, दूर्वा, चावल, लौंग, इलाइची, केसर−कपूर, हल्दी चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती और एक दीपक रखें।
मान्यता है कि दीपावली के पूजन का जो समय होता है उसके अतिरिक्त यदि देर रात्रि लक्ष्मी पूजन किया जाए तो मां लक्ष्मी अवश्य प्रसन्न होती हैं। कई लोग लक्ष्मी पूजन के समय सिर्फ उन्हीं की तस्वीर की पूजा करते हैं। मां लक्ष्मी अपने पति भगवान श्री विष्णु के बगैर कहीं नहीं रहतीं इसलिए उनकी तस्वीर अथवा मूर्ति के साथ भगवान श्री विष्णु की तस्वीर या मूर्ति होना भी आवश्यक है। इसके अलावा मां लक्ष्मी के साथ ही भगवान श्री गणेश की भी तस्वीर या मूर्ति स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए। तभी मां लक्ष्मी का वहां स्थायी वास होता है। इसके अलावा पूजन के समय वहां शालिग्राम, शंख, तुलसी और अनंत महायंत्र भी होना चाहिए। मां लक्ष्मी चूंकि समुद्र देवता की पुत्री हैं इसलिए पूजन के समय मंदिर में यदि कुबेर पात्र, मोती और शंख इत्यादि भी हों तो अच्छा रहेगा। मां लक्ष्मी को कमल बेहद पसंद है।
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यदि संभव हो तो मध्यरात्रि के समय मां लक्ष्मी का पूजन अवश्य करें। इसके लिए श्रीयंत्र, कुबेर यंत्र, कनक धारा श्री यंत्र और लक्ष्मी यंत्र को मंदिर में स्थापित कर पूजन करें। इस दौरान कमल गट्टे की माला लेकर 'ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ओम महालक्ष्म्ये नमः' का जाप करें। इस मंत्र को जपने के दौरान यदि हवन में घी की आहुति भी डालें तो अच्छा रहेगा।
ब्रह्मपुराण के अनुसार, कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मीजी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर कुछ क्षण के लिए रुकती हैं। जो घर पूर्णतया स्वच्छ, शुद्ध, सुंदर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है, वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं।
दीपावली पूजन के अलावा इस पर्व के बारे में कुछ मान्यताएं भी प्रचलित हैं जैसे कि हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि त्रेता युग में इस दिन भगवान राम 14 वर्ष के वनवास और रावण का वध करने के बाद अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी में अयोध्यावासियों ने समूची नगरी को दीपों के प्रकाश से जगमग कर जश्न मनाया था और इस तरह तभी से दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा। इसके अलावा बौद्धों के प्राकृत जातक में दिवाली जैसे त्योहार का जिक्र है जिसका आयोजन कार्तिक महीने में किया जाता है। जैन लोग इसे महावीर स्वामी के निर्वाण से जोड़ते हैं। कहा जाता है कि करीब ढाई हजार वर्ष पूर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात में पावा नगरी में भगवान महावीर का निर्वाण हुआ। महावीर के निर्वाण की खबर सुनते ही सुर असुर मनुष्य नाग गंधर्व आदि बड़ी संख्या में एकत्र हुए। रात अंधेरी थी इसलिए देवों ने दीपकों से प्रकाश कर उत्सव मनाया और उसी दिन कार्तिक अमावस्या को प्रातः काल उनके शिष्य इंद्रमूर्ति गौतम को ज्ञान लक्ष्मी की प्राप्ति हुई। तभी से इस दिन दीपावली मनाई जाने लगी। दीपावली के बारे में एक मान्यता यह भी है कि जब राजा बलि ने देवताओं के साथ लक्ष्मी जी को भी बंधक बना लिया तब भगवान विष्णु ने वामन रूप में इसी दिन उन्हें मुक्त कराया था। पुराणों में कहा गया है कि दीपावली लक्ष्मी के उचित उपार्जन और उचित उपयोग का संदेश लेकर आती है।
-शुभा दुबे
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