ढेला चौथ के दिन चंद्र दर्शन से लगता है मिथ्या कलंक
एक बार गणेश से कहीं जा रहे थे। संयोग वश उनका पैर कीचड़ में फिसल गया। गणेश जी के इस तरह फिसलने से चंद्रमा हंस पड़े। चंद्रमा के इस व्यवहार से गणेश जी बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया आज के दिन तुम्हारे दर्शन से लोगों को मिथ्या कलंक लगेगा। अगर किसी ने चांद को देख लिया तो पत्थर फेंकने से दोष दूर हो जाएगा।
ढेला चौथ भादो महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इस साल ढेला चौथ 2 सितम्बर, सोमवार को मनाया जा रहा है । इस दिन चांद को देखने में दोष होता है इसलिए इसे कलंक चौथ भी कहा जाता है। तो आइए हम आपको ढेला चौथ के बारे में बताते हैं।
ढेला चौथ पर चंद्रमा दर्शन में होता है दोष
ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद के दर्शन करने से दोष होता है। जो भी उस दिन चंद्रमा के दर्शन करता है उन्हें मिथ्या कलंक का सामना करना पड़ता है।
इसे भी पढ़ें: आत्मा को शुद्ध करने का महापर्व है पर्युषण, जानिये जैन धर्म में क्या है इसकी महत्ता
ढेला चौथ से जुड़ी कथा
एक बार गणेश से कहीं जा रहे थे। संयोग वश उनका पैर कीचड़ में फिसल गया। गणेश जी के इस तरह फिसलने से चंद्रमा हंस पड़े। चंद्रमा के इस व्यवहार से गणेश जी बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया आज के दिन तुम्हारे दर्शन से लोगों को मिथ्या कलंक लगेगा। अगर किसी ने चांद को देख लिया तो पत्थर फेंकने से दोष दूर हो जाएगा।
श्रीकृष्ण पर भी लगा था कलंक
ढेला चौथ के बारे में एक कथा प्रचलित है कि द्वारिकापुरी में एक सूर्यभक्त रहता था जिसका नाम सत्राजित था। सत्राचित की भक्ति से सूर्य भगवान बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सत्राचित को एक मणि प्रदान की। मणि के प्रभाव से सब तरफ सुख शांति थी किसी प्रकार का कोई दुख और आपदा नहीं थी। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने यह मणि राजा उग्रसेन को देने की सोची। सत्राचित यह बात जानता था इसलिए इसने वह मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी।
लेकिन एक बार प्रसेन घने जंगल में शिकार करने जाते हैं। वन में एक शेर से प्रसेन का सामना होता है और वह उन्हें मारकर खा जाता है। इसी तरह एक बार जांबवंत जंगल में घूमते हुए गया और वहां उस शेर को देखा। शेर के मुख में मणि देखकर उसने शेर को मारकर मणि ले लिया। जब प्रजा को यह बात पता चली तो प्रजा ने सोचा कि श्रीकृष्ण ने प्रसेन को मारकर मणि ले ली। इस बात श्रीकृष्ण बहुत दुखी हुए और प्रसेन को खोजने के लिए जंगल चले गए। जंगल में उन्होंने प्रसेन का मृत शरीर देखा। प्रसेन के मृत शरीर के पास शेर था और जांबवत के पैरों के निशान थे। तब श्रीकृष्ण जांबवंत के पास गए उससे यह बात पूछने लगे। तब जांबवंत ने भगवान से माफी मांगी और बात बतायी।
इसे भी पढ़ें: चल रही है शनि की साढ़े साती तो भूलकर भी नहीं करें यह काम
इसके जांबवंत ने अपनी कन्या जांबवंती का विवाह श्रीकृष्ण से किया और स्यमंतक मणि भी दी। इस तरह जब राज्य की प्रजा को यह बात पता चली तो सबने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस तरह उस दिन चंद्रमा का दर्शन करने से भगवान के ऊपर भी झूठा आरोप लगा था जो बाद में गलत सिद्ध हुआ।
ढेला फेंकने या गाली देने की है प्रथा
भारत के कुछ हिस्से में यह कहावत प्रचलित है कि ढेला चौथ का चांद दोषपूर्ण होता है। अगर किसी ने यह चांद देख लिया तो उसके ढेला फेंकने से यह दोष दूर जाता है। इसके अलावा गालियां देने से चंद्रमा के दर्शन का दोष दूर हो जाता है।
प्रज्ञा पाण्डेय
अन्य न्यूज़