तहरीक-ए-लब्बैक से क्यों होने लगी इमरान खान की नजदीकी, आखिर क्या है सियासी मजबूरी?
जाहिर सी बात है कि इस कथन के बाद से देश इमरान खान से यह तो जवाब जरूर मांगेगा कि आखिर वह क्या मजबूरी है जिसके वजह से इमरान खान को उस संगठन की हिमायत में खुल कर बोलना पड़ा जिस पर उनकी सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है।
पाकिस्तान को लेकर भारत में एक कहावत खूब प्रचलित है कि वह का नेता कहता कुछ और है और करता कुछ और है। पाकिस्तान के हुक्मरानों की बोली और नियत दोनों कब बदल जाएं इसका पता नहीं। लेकिन आज हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसको लेकर आप सोच रहे होंगे। तो आपको बता दें कि पिछले हफ्ते राष्ट्र के नाम संबोधन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जब तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के लिए यह कहा कि वह उसके दर्द और तकलीफ को अच्छे से समझते हैं। उनका मकसद भी वही है जो तहरीक-ए-लब्बैक का है, बस तरीका अलग-अलग है। अपने इस कथन के साथ ही इमरान खान ने खुद को उस कतार में खड़ा कर लिया जहां पहले से ही पाकिस्तान की तमाम लीडरशिप लगी हुई है। यह शायद पाकिस्तान के उन लोगों के लिए झटका है जिन्होंने एक बदलाव के लिए इमरान खान के हक में वोट किया था। उन्हें यह लग रहा था कि इमरान खान अलग सोच वाले नेता है। इमरान खान उस कट्टरवादी सोच के नुमाइंदगी नहीं करेंगे जो पाकिस्तान की तमाम लीडरशिप अब तक करती आई है। लेकिन इमरान खान के इस कथन के साथ ही यह तो तय हो गया कि अब इमरान खान भी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान से सद्भावना रखते हैं।
इसे भी पढ़ें: परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद के पुत्र की इलाज में कथित लापरवाही से मौत
जाहिर सी बात है कि इस कथन के बाद से देश इमरान खान से यह तो जवाब जरूर मांगेगा कि आखिर वह क्या मजबूरी है जिसके वजह से इमरान खान को उस संगठन की हिमायत में खुल कर बोलना पड़ा जिस पर उनकी सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। यह भी सवाल उठ रहे है कि क्या इमरान खान की सरकार ने आतंकी संगठन के सामने घुटने टेक दिए है? पाकिस्तान के साथ-साथ यह पूरी दुनिया में अब चर्चा का विषय बन गया है। इमरान खान के इस बयान के बाद से ही लगातार संगठन के जरिए हुई हिंसा में जिन्हें शामिल मानकर गिरफ्तार किया गया था उन सब की रिहाई शुरू हो गई है। संगठन के तमाम मांगों को लेकर भी सरकार विचार करने की स्थिति में है। ऐसे में इमरान खान के लिए एक ऐसा सवाल उठ रहा है जिसका जवाब उन्हें अभी नहीं तो आने वाले वक्त में देना ही पड़ेगा।
इसे भी पढ़ें: कोरोना संकट से जूझ रहे भारत की मदद के लिए पाकिस्तान आया आगे, ईधी फाउंडेशन ने पीएम मोदी को लिखा पत्र
इमरान खान ने आतंकी संगठन के सामने घुटने टेक दिए। पाकिस्तान की सियासत पर करीबी नजर रखने वाले लोग यह मानते है कि इमरान खान को पता है कि अगर उन्हें सत्ता में कामयाबी की चासनी को बरकरार रखना है तो धर्म उसका सबसे बड़ा जरिया है। इमरान खुद को इस्लाम के लिए संघर्ष करने वाले शख्स के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। वह अपनी छवि को धार्मिक नेता के तौर पर उभारना चाहते है। यही कारण है कि इमरान खान अपने सरकार को लेकर कई बार यह दावा कर चुके हैं कि उनकी प्रेरणा रियासत-ए- मदीना है। पाकिस्तान में तहरीक-ए-लब्बैक हजरत मोहम्मद के अपमान के खिलाफ आक्रमक तेवर अपनाकर एक अलग जगह बनाने में कामयाब रहा। वर्तमान परिस्थिति में इमरान खान इस संगठन से अलग जाकर अपना नुकसान देख रहे है। इमरान को यह लगता है कि अगर तहरीक-ए-लब्बैक से अलग होते है तो लोगों में यह संदेश जाएगा कि सरकार के भीतर हजरत मोहम्मद के लिए कुर्बानी का वह भाव नहीं है जो मुसलमान के लिए पहली शर्त होती है।
इसे भी पढ़ें: बढ़ते कोरोना मामलों के बीच पाकिस्तान को मिली चीनी वैक्सीन की 10 लाख खुराकें
जैसे ही इमरान खान को यह लगा कि जिस छवि की ओर वह बढ़ रहे हैं, वह इस संगठन पर कार्रवाई से धूमिल हो सकती है तो उन्होंने इस से दूरी बनानी शुरू कर दी। आवाम को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे है कि सरकार और उनमें हजरत मोहम्मद को लेकर तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान से भावना कम नहीं है। वह यह भी कह रहे है कि फर्क इतना है कि हम सरकार में है। हमारे ऊपर जिम्मेदारियां है जबकि उनके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है। इमरान खान किसी भी सूरत में खुद को तहरीक-ए-लब्बैक के विरोध में खड़े होते दिखाई नहीं देना चाहते है। आपको बता दें कि पाकिस्तान की पांचवी बड़ी पार्टी है। तहरीक-ए-लब्बैक की स्थापना 2015 में खालिद हुसैन रिजवी ने की थी। मौलाना की मौत के बाद से उनके बेटे साद रिजवी के हाथ में इस पार्टी की कमान है।
अन्य न्यूज़