पश्चिम एशिया देशों का चीन के खिलाफ बड़ा गठबंधन, बन रहा नया क्वाड, इसके गठन की जरूरत क्यों आ पड़ी?
भारतीय विदेश मंत्री ने कुछ समय पहले अपनी यूएई यात्रा के दौरान भी इसका जिक्र किया था अब ऐसे में हिन्दुस्ता का इन देशों से मिलकर हाथ मिलाना एक संकेत है। नए गठबंधन पर अमली-जामा पहनाने से पहले बीते सप्ताह अमेरिका-इजरायल और यूएई के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी।
हिन्दुस्तान अब अमेरिका के साथ मिलकर पश्चिम एशिया में एक नई पहल कर रहा है। ये पहल भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर खुद कर रहे हैं जो कि इन दिनों पश्चिम एशिया के दौरे पर हैं। उन्होंने इस मसले को लेकर अमेरिका, यूएई और इजरायल के राजनयिकों से बात की है। ये मोदी सरकार की बहुत बड़ी पहला है और इसका कारण चीन और रूस का दुनिया के कई मसलों पर एक साथ आ जाना है। यूएई और इजरायल पहले ही इब्राहिम अकॉड पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। इब्राहिम अकॉड का मतलब है कि इजरायल ने यूएई के साथ अपने संबंध सामान्य कर लिए थे। इजरायल अपने रिश्ते सउदी अरब से भी बेहतर कर चुका है। अमेरिका इन रिश्तों की बेहतरी के पक्ष में है। वहीं हाल के वर्षो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विस्तारित पड़ोस की नीति के तहत संयुक्त अरब अमीरात को भारत अपना पड़ोसी घोषित कर चुका है। भारतीय विदेश मंत्री ने कुछ समय पहले अपनी यूएई यात्रा के दौरान भी इसका जिक्र किया था अब ऐसे में हिन्दुस्ता का इन देशों से मिलकर हाथ मिलाना एक संकेत है। नए गठबंधन पर अमली-जामा पहनाने से पहले बीते सप्ताह अमेरिका-इजरायल और यूएई के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी।
पहली बैठक में क्या निकल कर सामने आया
- आर्थिक सहयोग के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच स्थापित करने पर सहमत
- बुनियादी ढांचे, परिवहन, समुद्री सुरक्षा पर ध्यान
- संयुक्त कार्यदल के लिए अधिकारियों की नियुक्ति पर सहमति
- दुबई एक्सपो में व्यक्तिगत रूप से बैठक
गौरतलब है कि लंबे समय से अमेरिका पश्चिम एशिया में एक महाशक्ति के रूप में है लेकिन पहले बराक ओबामा और फिर डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान परिस्थितियां कुछ हद तक बदली हैं।
पश्चिम एशिया में चीन की एंट्री
- ईरान के साथ 25 साल का सहयोग समझौता
- सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात के साथ रणनीतिक साझेदारी
- बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब संयुक्त अरब अमीरात में 5जी परियोजनाएं
- इसराइल में शिपिंग पोर्ट और लाइट रेल लाइन
(कुल मिलाकर चीन ने 15 पश्चिम एशियाई देशों में 224 अरब डॉलर का निवेश किया है)
गठबंधन की जरूरत
हालिया वक्त में देखें को कई देशों में खासकर अफगानिस्तान में काफी बदलाव आया है। तालिबान के सत्ता संभालने के बाद कई सारे तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान, ओआइसी के देश इस्लामिक हितों पर मिलकर काम करने के लिए सहमति बनाने में लगे हैं। वहीं तुर्की के सऊदी अरब, यूएई, मिस्र और ग्रीस जैसे देशों के साथ विवाद भी तेज हुए हैं। इसके अलावा पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्र राजनीतिक विवादों के दायरे में आता दिखा है जिसके चलते भी मध्य पूर्व क्षेत्र में क्वाड जैसे संगठन के गठन का औचित्य दिखता है। भारत ने जिस तरह से क्षेत्रीय स्थिरता के लिए साइप्रस और लीबिया का उल्लेख करते हुए ग्रीस से चर्चा की, उससे साफ है कि तुर्की को भी भारत एक संदेश देना चाहता था। पश्चिम एशिया की राजनीति व अर्थव्यवस्था को दिशा देने में जिस तरह से खाड़ी देशों की भूमिका बढ़ी है, उसके चलते भी पश्चिम एशिया क्वाड के निर्माण की धारणा को बल मिला है। फ्रांस, रूस और चीन जैसी बड़ी ताकतों का रुझान भी पूर्वी भूमध्यसागर में बढ़ा है।
चीन के खिलाफ घेराबंदी
पश्चिम एशिया में चीन और रूस ने मिलकर अपना एक ब्लॉक बना दिया है। ये दोनों देश खुलकर ईरान, सीरिया और इराक को समर्थन कर रहे हैं। रूस की मदद से ईरान पूरे पश्चिम एशिया में सऊदी अरब और यूएई के खिलाफ मुहिम चला रहा है। ईरान खुलकर परमाणु बम बनाने की बात कर रहा है। इसके खिलाफ यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन, बहरीन एक मंच पर हैं। वहीं हिन्दुस्तान इनके साथ आकर खड़ा है। यानि मोदी सरकार ने फैसला लिया है कि सामरिक स्वतंत्रता बनाने के साथ-साथ उसे चीन के खिलाफ घेराबंदी करनी होगी। भारत किसी सैन्य सहयोग का हिस्सा नहीं है। लेकिन दोस्ती उन्हीं देशों से कर रहा है जो चीन से प्रताड़ित हैं। जैसे पूर्वी एशिया में भारत ने जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड बनाया है।
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