प्रचंड:माओवादी गुरिल्ला से तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने वाला व्यक्तित्व

Prachanda
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नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले पांच दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन से आश्चर्यजनक रूप से अलग होने और राष्ट्रपति द्वारा दी गई समयसीमा के रविवार को समाप्त होने से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश करने वाले 68 वर्षीय प्रचंड को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

हिंदू राजतंत्र के खिलाफ एक दशक तक खूनी विद्रोह करने वाले पूर्व माओवादी गुरिल्ला एवं ‘प्रचंड’ के नाम से लोकप्रिय पुष्प कमल दहल अब नेपाल के नए प्रधानमंत्री हैं। नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले पांच दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन से आश्चर्यजनक रूप से अलग होने और राष्ट्रपति द्वारा दी गई समयसीमा के रविवार को समाप्त होने से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश करने वाले 68 वर्षीय प्रचंड को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया।

मध्य नेपाल के पर्वतीय कास्की जिले के धिकुरपोखरी में 11 दिसंबर, 1954 को एक गरीब किसान परिवार में जन्मे प्रचंड अपने परिवार के साथ चितवन जिले चले पहुंचे जहां एक स्कूल शिक्षक ने उन्हें साम्यवाद से परिचित कराया। उन्होंने अपनी युवावस्था में घोर गरीबी देखी और वामपंथी राजनीतिक दलों की ओर आकर्षित हुए। प्रचंड 1981 में नेपाल की भूमिगत कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और 1989 में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (मशाल) के महासचिव बने। यह पार्टी बाद में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) बन गई। सीपीएन (माओवादी) ने 13 फरवरी, 1996 को कई थानों पर हमले के साथ राजतंत्र को खत्म करने के लिए अपना विद्रोही अभियान शुरू किया। वाम उग्रवाद के खूनी 10 वर्षों के दौरान, प्रचंड भूमिगत रहे और कई साल भारत में बिताए। उनके नेतृत्व में चलाया गया अभियान अंततः नेपाल के 237 साल पुराने राजतंत्र को समाप्त करने और इसे एक लोकतांत्रिक गणराज्य में बदलने के अपने लक्ष्य में सफल रहा। प्रचंड ने 1996 से 2006 तक एक दशक लंबे सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया जो अंततः नवंबर 2006 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हुआ।

वह देश में गृहयुद्ध के दौरान नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के नेता थे। 2008 के चुनाव में, सीपीएन (एम) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, और वह उसी वर्ष अगस्त में प्रधानमंत्री बने। उन्होंने मई 2009 में तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल रूकमंगुद कटवाल को बर्खास्त करने के अपने प्रयास के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसका तत्कालीन राष्ट्रपति राम बरन यादव ने विरोध किया था। अगस्त 2016 में, प्रचंड को संविधान सभा द्वारा फिर से प्रधानमंत्री चुना गया था, क्योंकि पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली ने विश्वास मत से पहले इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उन्हें हारने की उम्मीद थी।

उनकी पार्टी ने नेपाली कांग्रेस पार्टी के साथ सत्ता-साझाकरण समझौता भी किया। उस समझौते की शर्तों के अनुसार, प्रचंड ने मई 2017 में नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा के उत्तराधिकारी बनने का मार्ग प्रशस्त किया। संसदीय चुनावों के करीब आते ही, प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस से नाता तोड़ लिया और ओली तथा उनकी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के साथ गठबंधन किया। दोनों दलों ने मिलकर चुनाव में बाजी मारी। मई 2018 में, दोनों दलों का नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हो गया और उन्होंने औपचारिक रूप से अपने-अपने गुटों को भंग कर दिया।

सत्ता-साझाकरण समझौते के तहत, ओली और प्रचंड को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बारी-बारी से बैठना था। प्रचंड ने ओली के कार्यकाल के दौरान अधिक प्रभाव की मांग की। हालांकि, नवंबर 2019 में, प्रचंड ने पार्टी का कार्यकारी नेतृत्व मिलने के बदले में ओली को पूरे पांच साल प्रधानमंत्री पद पर रहने देने पर सहमति व्यक्त की। हालांकि प्रचंड चाहते थे कि ओली बड़े फैसलों पर पार्टी से सलाह लें, लेकिन ओली ने एकतरफा कई अहम घोषणाएं कीं।

प्रचंड ने तब जोर देकर कहा कि ओली प्रधानमंत्री पद के लिए हुए मूल समझौते का पालन करें लेकिन दिसंबर 2020 में, ओली ने इसके बजाय यह सिफारिश करने का विकल्प चुना कि राष्ट्रपति संसद को भंग कर दें और जल्द चुनाव कराएं। इस कदम को प्रचंड ने असंवैधानिक बताते हुए इसकी निंदा की और समर्थकों से विरोध में सड़कों पर उतरने की अपील की। अधिकतर आलोचक इस बात से सहमत हैं कि प्रचंड ने विद्रोही नेता से पारंपरिक राजनीतिक नेता बनने के लिए संघर्ष किया है। प्रचंड पूर्व कृषि छात्र हैं।

स्कूल के समय में उनका नाम छबी लाल था लेकिन बाद में उन्होंने अपना नाम बदलकर पुष्प कमल दहल कर लिया। वह एक स्कूल शिक्षक थे और राजनीति में आने से पहले नेपाल में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) में भी काम कर चुके हैं। उनकी द प्रॉब्लम ऑफ नेपाली रेवोल्यूशन समेत कुछ किताबें प्रकाशित हुई हैं। सैन्य नेतृत्व और उत्कृष्ट वक्तृत्व कौशल के गुण ने उन्हें माओवादियों को दक्षिण एशिया के सबसे खतरनाक विद्रोही समूहों में से एक में बदलने में सक्षम बनाया।

बीबीसी ने 2013 में एक रिपोर्ट में कहा था कि गरीब हिमालयी राष्ट्र में गृहयुद्ध में 13,000 से अधिक लोग मारे गए, जिसकी परिणति राजा ज्ञानेंद्र शाह के अपनी सभी शक्तियों और सिंहासन छोड़ने के लिए मजबूर होने के रूप में हुई। उस समय तक प्रचंड के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी थी। नेपाली उन्हें केवल एक-दो तस्वीरों से जानते थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वह शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से देखे गए हों और अधिकारियों से बचने के लिए वह भारत और नेपाल में छिपते रहे।

वर्ष 2006 में उनका साक्षात्कार लेने वाले बीबीसी के एक पत्रकार ने कहा कि वह माओवादी नेता के रूप में भयावह दिखने की जगह आश्चर्यजनक रूप से विनम्र और शर्मीले थे। यह मूल्यांकन माओवादी विद्रोह के दौरान एक निर्मम नेता के रूप में उनकी धारणा के ठीक विपरीत था, जो नेपाल के अनेक लोगों को मारने और आतंकित करने के लिए जिम्मेदार था। माओवादी नेता ने शंका करने वालों को आश्वस्त किया था कि वह 2008 में लोकतांत्रिक चुनाव में भाग लेने के इच्छुक हैं और मतदान के परिणामों को स्वीकार करेंगे।

मीडिया की खबरों के अनुसार, प्रचंड के आलोचकों का कहना है कि वह आत्म-केंद्रित और चतुर हैं, तथा अगर इससे उन्हें लाभ होता है तो वे अपने निकटतम सहयोगियों को पीछे छोड़ देंगे। कई लोगों ने दावा किया था कि माओवादी एक अप्रासंगिक पक्ष हैं क्योंकि उन्होंने प्रतिनिधि सभा की 275 सीट में से केवल 32 सीट जीतीं। यह नेपाली कांग्रेस और यूएमएल के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। लेकिन इन सब बातों को छोड़कर, प्रचंड ने राजनीति को इस तरह मोड़ दिया कि वह तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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