Pakistan Army Chief ने 25 साल बाद पहली बार की कारगिल युद्ध में भूमिका कबूल, नवाज बता चुके हैं इसे बड़ी भूल
पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने देश के रक्षा दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि 1965, 1971 और 1999 में कारगिल युद्ध में कई सैनिकों ने लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी।
साल 1999 में फरवरी का महीना था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सदा-ए-सरहद की शुरुआत करने लाहौर पहुंचते हैं। सदा-ए- सरहद बस सेवा को नाम दिया गया था जो दिल्ली और लाहौर के बीच शुरू होनी थी। अटल बिहारी वाजपेयी पहले अमृतसर से बस को हरी झंडी दिखाने वाले थे। लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा कि साहब हमारे दर तक आए और बिना मिले लौट जाए ऐसा हो नहीं सकता। यात्रा का आगाज मेहमानवाजी से शुरू हुआ। जाते जाते अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी बातों से वो समां बांधा कि नवाज शरीफ ने उनको पाकिस्तान से चुनाव लड़ने का न्यौता तक दे डाला। ये सब सुनकर लगता है कि क्या शानदार लम्हा रहा होगा और दोनों देशों के बीच के रिश्ते कितने अच्छे रहे होंगे। लेकिन ये गर्मजोशी चंद महीनों के बीच पाक सेना के जवान कारगिल में कब्जा करके बैठ गए थे। इस घटना को ढाई दशक गुजर गए हैं और आप कह रहे होंगे की आज हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं। दरअसल, 25 वर्षों में पहली बार पाकिस्तानी सेना ने सार्वजनिक रूप से 1999 के कारगिल युद्ध में अपनी भागीदारी स्वीकार की है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने देश के रक्षा दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि 1965, 1971 और 1999 में कारगिल युद्ध में कई सैनिकों ने लड़ते हुए अपनी जान दे दी थी। पाकिस्तानी समुदाय बहादुरों का समुदाय है जो स्वतंत्रता के महत्व को समझता है और इसके लिए भुगतान कैसे करना है। रावलपिंडी में कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि चाहे वह 1948, 1965, 1971 या 1999 का कारगिल युद्ध हो, हजारों शुहदाओं (शहीदों) ने पाकिस्तान और इस्लाम के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है। सैन्य प्रमुख का यह बयान महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले, पाकिस्तानी सेना ने 1999 के कारगिल युद्ध में अपनी भूमिका को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया था और घुसपैठियों को कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानी या मुजाहिदीन के रूप में संदर्भित किया था। इस स्पष्ट स्वीकारोक्ति ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है, जहां नेटिज़न्स ने युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका से इनकार करने के बारे में दशकों पुरानी पोस्ट साझा कीं।
इसे भी पढ़ें: पाकिस्तान से आई बड़ी खुशखबरी, मिला समुद्री सीमा में तेल और गैस का भंडार
1999 में क्या हुआ था?
1999 में दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता के लिए पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व पाकिस्तान प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के बीच लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए जाने के तुरंत बाद, मई 1999 में पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर जम्मू और कश्मीर में घुसपैठ की। कश्मीर और 'ऑपरेशन बद्र' नामक एक ऑपरेशन के हिस्से के रूप में भारतीय सेना की चौकियों को जब्त कर लिया गया। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना को अलग-थलग करने और कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क को काटने के उद्देश्य से कारगिल के द्रास और लद्दाख क्षेत्र के बटालिक सेक्टरों में NH 1A की मजबूत सुरक्षा पर कब्जा कर लिया था।
इसे भी पढ़ें: पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज को लेकर कन्फ्यूज हैं इंग्लैंड कोच ब्रेंडन मैकुलम, जानें क्या कहा?
नवाज ने की गलती कबूल
नवाज शरीफ ने कबूल किया कि 1999 में इस्लामाबाद ने समझौते का उल्लंघन हुआ। नवाज शरीफ ने ये भी माना कि पाकिस्तान की ये गलती थी। ये समझौता नवाज शरीफ और अटल बिहारी वायपेयी के कार्यकाल के दौरान लाहौर में हुआ था। आम परिषद को संबोधित करते हुए नवाज शरीफ ने ये बात कही। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति की तरफ से कारगिल में किए गए हमले के संदर्भ में ये बात कही।
Just yesterday, Omar Abdullah was defending Pakistan by shielding terrorist Afzal Guru.
— Pradeep Bhandari(प्रदीप भंडारी)🇮🇳 (@pradip103) September 7, 2024
Today Pak Army Chief acknowledged the role of Pak army in Kargil war.
Why does INDI alliance and Pakistan speak in same tone always? pic.twitter.com/Kxgk5VhwEX
अन्य न्यूज़