नाइजर तख्तापलट : सेना का सत्ता पर कब्जा लोकतंत्र और पश्चिमी अफ्रीका में अमेरिकी हितों के लिए झटका
हमें देखना होगा कि चीजें कैसे सामने आती हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस तख्तापलट से क्षेत्र में अमेरिकी हितों को गंभीर झटका लग सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्थिर लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण, शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने संबंधी नाइजर के प्रयासों के लिए भी यह एक झटका है।
पश्चिमी अफ्रीकी देश नाइजर में तख्तापलट के बाद सैन्य शासन लागू है। राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम को अपदस्थ कर दिया गया और उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें बंदी बना लिया। तख्तापलट करने वाले नेताओं ने 28 जुलाई, 2023 को जनरल अब्दुर्रहमान त्चियानी को नया राष्ट्र प्रमुख घोषित किया जबकि अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करने की मांग की है। तख्तापलट से देश का भविष्य क्या होगा और आगे के कदम को लेकर अस्पष्टता की स्थिति बनी हुई है। ‘द कन्वरसेशन’ ने कुछ सवालों का जवाब प्राप्त करने के लिए फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में राजनीति-शास्त्री एवं पश्चिमी अफ्रीकी मामलों के विशेषज्ञ लियोनार्डो ए. विलालोन से संपर्क किया। सबसे पहले यह तय नहीं है कि क्या वास्तव में यह तख्तापलट भी है या नहीं। हालांकि सेना के अंदर और सैन्य एवं नागरिक नेताओं के बीच तनाव के संकेत मिले हैं, लेकिन निश्चित रूप से तख्तापलट की उम्मीद नहीं थी। मैं पिछले महीने नाइजर में था और ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे लगे कि तख्तापलट होने वाला है।
हाल के वर्षों में माली और बुर्किना फासो में ऐसा देखा गया है। तख्तापलट से पहले बड़े पैमाने पर प्रदर्शन या नेतृत्व परिवर्तन के लिए आंदोलन नहीं हुआ है। जब राष्ट्रपति के अंगरक्षकों ने 26 जुलाई को बजौम को बंदी बनाया तब तत्काल स्पष्ट नहीं हो सका कि आखिर हो क्या रहा है और क्या उनका कदम सफल होगा। तख्तापलट करने वाले नेताओं की पहली वास्तविक परीक्षा यह होगी कि क्या बाकी सेना भी उनका साथ दे रही है या नहीं। अगर ऐसा नहीं होता तो हो सकता है कि पूरे देश में बड़े पैमाने पर लड़ाई शुरू हो सकती है लेकिन अब तक लग रहा है कि वह दौर पार हो चुका है और कम से कम अब तक के घटनाक्रम से इसे रक्तहीन तख्तापलट कह सकते हैं। शुरुआत में विभिन्न गुटों द्वारा नेतृत्व को लेकर खींचतान के बाद देश के जनरल ने तख्तापलट का समर्थन किया है। इस बीच, लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित राष्ट्रपति अब भी नजरबंद हैं। नाइजर दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में है जहां पर उच्च गरीबी दर और अस्थिरता तथा तख्तापलट का इतिहास रहा है लेकिन हाल के वर्षों में यह क्षेत्र का अपेक्षाकृत स्थिर देश के रूप में उभरा है और पड़ोसी माली में 2012 में तख्तापलट के बाद से फैले आतंकवाद और हिंसा से निपटने में पश्चिमी देशों का साझेदार रहा है।
सिर्फ दो साल पहले नाइजर ने अपने इतिहास में पहली बार लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार द्वारा सत्ता का हस्तांतरण निर्वाचित राष्ट्रपति को किया था। तख्तापलट का क्षेत्र पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा है। पड़ोसी माली और बुर्किना फासो पूर्व औपनिवेशिक ताकत फ्रांस और सामान्य रूप से पश्चिम से अलग हो गए हैं और रूस की ओर बढ़ गए हैं। इस बीच, एक अन्य पड़ोसी चाड लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता हस्तांतरित करने की समस्यागत कोशिश में संलिप्त है। इन देशों के विपरीत नाइजर साहेल क्षेत्र से जिहादी हिंसा का खात्मा करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिश में गतिशील असैन्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहा है। हमें अब तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है कि नाइजर का नया सैन्य नेतृत्व इस संदर्भ में कैसे कार्य करेगा। नाइजर में सबसे पहला तख्तापलट 1974 में साहेल क्षेत्र में सूखे और अकाल की पृष्ठभूमि में हुआ था। उस प्राकृतिक आपदा की वजह से आजादी के बाद बनी पहली निर्वाचित सरकार के प्रति हताशा और निराशा थी जिसने सेना को सरकार को उखाड़ फेंकने का आधार दिया और यह दावा करने का मौका दिया कि वह विकास पर ध्यान केंद्रित करेगी।
इसके बाद नाइजर में 1996, 1999 और 2010 में भी राजनीतिक संकट की वजह से तख्तापलट हुआ। राष्ट्रपति बजौम केवल दो साल से सत्ता में हैं और 2021 के उनके निर्वाचन को भले ही चुनौती दी गई हो लेकिन मोटे तौर पर उसे स्वीकार किया गया। वह सत्ता में देश की सुरक्षा में सुधार, शिक्षा में निवेश और भ्रष्टाचार से लड़ने के वादे के साथ आए थे और इस दिशा में उन्होंने कुछ वास्तविक प्रगति भी की थी। साथ ही कोई राजनीतिक स्थिति और संस्थागत बाधा भी उस स्तर की नहीं थी जिसकी वजह से उनके तख्तापलट को न्यायोचित ठहराया जा सके। ऐसा प्रतीत होता है कि नवीनतम तख्तापलट आंतरिक राजनीति और सेना के विभिन्न हिस्सों में असंतोष का नतीजा है। ‘कुशासन’ और ‘सुरक्षा स्थिति में गिरावट’ के आरोपों के अलावा कोई ऐसा ठोस तार्किक कारण नहीं दिया गया है जिससे तख्तापलट को न्यायोचित ठहराया जा सके और इसको अंजाम देने वाले अपने नेतृत्व को सही ठहरा सके। हाल के वर्षों में, साहेल के संबंध में नाइजर अमेरिका का साझेदार रहा है। इसे क्षेत्र में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जाता है और माली और बुर्किना फासो के रूस की ओर रुख करने से इसका महत्व काफी बढ़ गया है। पड़ोसी देश चाड भी अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी है।
अमेरिका को हालांकि चाड के साथ मधुर संबंध रखने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। इसके विपरीत, नाइजर ने खुद को एक लोकतांत्रिक देश के रूप में प्रस्तुत किया है और उसे अमेरिका के प्रति खुले, व्यावहारिक और मित्र के तौर पर देखा जाता है। हमें देखना होगा कि चीजें कैसे सामने आती हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस तख्तापलट से क्षेत्र में अमेरिकी हितों को गंभीर झटका लग सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्थिर लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण, शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने संबंधी नाइजर के प्रयासों के लिए भी यह एक झटका है।
अन्य न्यूज़