पेलोसी की यात्रा को अपनी धमकियों से ग्रैंड इवेंट बना फेर में फंसे जिनपिंग, माओ सरीखा बनने की चाह में कहीं लु हुं चेंग न बन जाएं
शी जिनपिंग कुछ ही महीनों में राष्ट्रपति के तौर पर अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश करेंगे। अक्टूबर में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस होनी है। जिसमें शी जिनपिंग को तीसरी बार राष्ट्रपति चुना जाएगा। चीन के इतिहास में किसी बड़े नेता को अबतक ये मुकाम नहीं मिला है।
देश-दुनिया में कई चर्चित किरदार हैं जैसे विभीषण होना, जयचंद होना, मान सिंह होना और मीर जाफर होना। इन सारी कहावतों का जो व्यापकता में अर्थ निकल कर आता है उसमें यह बात साफ तौर पर निकल कर बाहर आती है कि इन्हें धोखेबाजी के पर्याय के तौर पर जाना जाता है। लेकिन चीन में ऐसे लोगों के लिए लु हूं चेंग के नाम का प्रयोग किया जाता है। जिसके पीछे की भी एक कहानी है। लेकिन माओ जैसी वेशभूषा और छवि की चाह लिए चीन के लाल सुल्तान शी जिनपिंग को अगर इस तरह के किसी संज्ञा से नवाजा जाए तो उन्हें ये बिल्कुल भी कबूल नहीं होगा। पेलोसी को यात्रा को लेकर जहां अमेरिका में बेचैनी थे, वहीं चीन में भी। खासतौर पर इसकी टाइमिंग को लेकर इसकी दो बड़ी वजहें हैं। शी जिनपिंग कुछ ही महीनों में राष्ट्रपति के तौर पर अपने तीसरे कार्यकाल में प्रवेश करेंगे। अक्टूबर में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं कांग्रेस होनी है। जिसमें शी जिनपिंग को तीसरी बार राष्ट्रपति चुना जाएगा। चीन के इतिहास में किसी बड़े नेता को अबतक ये मुकाम नहीं मिला है।
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दशकों से चला आ रहा चीन-ताइवान विवाद एक बार फिर से गहराने लगा है। सारी दुनिया को इस बात की चिंता है कि चिंता सता रही है कि अगर चीन ने ताइवान पर सैन्य कार्रवाई की तो कहीं उनके अपने देश की रफ्तार धीमी न हो जाए। नैंली पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन की नाराजगी तो दिख रही है लेकिन उसकी दुविधा भी छुपी नहीं हुई है। ताइवान को लेकर चीन के पास मौजूद विकल्प और उनके परिणाम देश के लिए चुनौती बन गए हैं। अब जिनपिंग के सामने पेलोसी की यात्रा को पहले तो अपनी धमकियों से ग्रैंड इवेंट बनाने और फिर सारे दावे खोखले नजर आने से मुंह छिपाने की नौबत आ गई है।
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प्रथम चीन-जापान युद्ध का अंत 1895 में जिस शिमोनोस्की समझौते से हुआ था। उसने ताइवान को जापान के हवाले कर दिया था। ये चीन के लिए शर्मिंदगी की बात मानी गई। उस वक्त वो ताइवान को अपने अधीन करने की योजना बना चुका था। इस बात की खटास चीनियों के मन में इतनी गहरे से उतर गई कि आज भी वहां देशद्रोही या गद्दार को लु हूं चेंग (चीन का अंतिम शाही राजवंश किंग का कूटनीतिज्ञ और चीनी नेता) कहा जाता है। जिन्होंने ये समझौता किया था। इसे हमारे यहां उपयोग किए जाने वाले जयचंद सरीखा ही माना जाता है। चीन की तमाम धमकियों के बावजूद अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा पूरा किया। लिहाजा चीन के लाल सुल्तान की टेंशन और भी बढ़ गई है कि कहीं माओ जैसी इमेज मेकओवर में लगे जिनपिंग को भी लु हुं चेंग कहकर न बुलाया जाने लगे।
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