21 फरवरी को भारत-पाकिस्तान ने साइन की एक संधि, फिर 2 महीने बाद...कहानी 1999 के लाहौर समझौते की
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का एक निर्णायक लम्हा था फरवरी 1999 में उनकी लाहौर बस यात्रा। यह ऐसा फैसला था जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में आमूलचूल बदलाव लाने की संभावना से वाबस्ता था।
साल 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके साथ 22 लोग एक बस में वाघा बॉर्डर से लाहौर पहुंचे थे। इन 22 लोगों में वाजपेयी का मंत्रिमंडल, कुछ फॉरेन मिनिस्टर और दिग्गज कलाकार शामिल थे। लाहौर पहुंचते ही अटल बिहारी वाजपेयी का जबरदस्त स्वागत हुआ। वाजपेयी ने कहा कि मैं अपने साथी भारतीयों की सदभावना और आशा लेकर आया हूं, जो पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति और सौहार्द चाहते हैं। मुझे पता है कि ये दक्षिण एशिया के इतिहास में एक निर्णायक क्षण है और मुझे उम्मीद है कि हम चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होंगे। 21 फरवरी 1999 को पाकिस्तान और भारत के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर होते हैं, जिसे लाहौर समझौता कहा गया।
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अटल बिहारी ने नवाज शरीफ को लगाया गले
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का एक निर्णायक लम्हा था फरवरी 1999 में उनकी लाहौर बस यात्रा। यह ऐसा फैसला था जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में आमूलचूल बदलाव लाने की संभावना से वाबस्ता था। अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में बस से लाहौर गये थे और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर अपनी प्रिय छवि की छाप छोड़ी।
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क्या था लाहौर घोषणापत्र
लाहौर समझौता ज्ञापन स्पष्ट रूप से भारत और पाकिस्तान के लिए बैलिस्टिक मिसाइल उड़ान परीक्षणों के बारे में एक दूसरे को सूचित करने का संयुक्त उपक्रम है। घोषणापत्र के मुताबिक दोनों देश इस बात पर राजी थे कि टिकाऊ शांति और सौहार्दपूर्ण रिश्तों का विकास और मैत्रीपूर्ण सहयोग, दोनों ही देशों के लोगों के हित में सहायक सिद्ध होंगे। जिससे वे अपनी ऊर्जा को बेहतर भविष्य के लिए समर्पित कर सकेंगे। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे समेत सभी मुद्दों को हल करने के अपने प्रयासों को तेजी लाने की बात इसमें कही गई थी।
2 महीने में ही पाकिस्तान ने दिखाया अपना असली चेहरा
शांति और सद्भाव के इस समझौते को अभी दो महीने ही नहीं हुए थे कि मई 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल में जंग छेड़ दी। 3 मई 1999 की वो तारीख जब कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के सैनिकों ने कब्जा कर लिया था। जिसके बाद 18 हजार फीट की ऊंचाई पर तिरंगा लहराने के लिए भारतीय सेना के शूरवीरों ने ऑपरेशन विजय का इतिहास रचा।
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