बच्चों, आइए जानते हैं छोटे-से ‘गिनी पिग’ के बारे में कुछ बड़ी बातें
बच्चों ‘गिनी पिग’ का नाम तो आपने सुना ही होगा जैसा कि इसके नाम को सुनकर लगता है कि यह कोई सूअर के जैसा जानवर होता होगा किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है।
बच्चों ‘गिनी पिग’ का नाम तो आपने सुना ही होगा जैसा कि इसके नाम को सुनकर लगता है कि यह कोई सूअर के जैसा जानवर होता होगा किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। गिनी पिग सूअर नहीं बल्कि चूहे के जैसा एक छोटा बहुत ही खूबसूरत सा स्तनपायी जीव है जिसे इसके तीखे कटर दांतों के लिए जाना जाता है। आईये, जानते हैं गिनी पिग के बारे में ऐसी बहुत सारी बातें जिन्हें सुनकर आप इसके बारे में बहुत कुछ जान पाएंगे और यदि कभी इससे मुलाकात हो गई तो तुरंत ही इसे पहचान भी लेंगे।
गिनी पिग वैसे तो दक्षिण अमरीका के प्राणी हैं किन्तु इन्हें यूरोप में भी देखा जा सकता है। शरीर पर खरगोश जैसे रोंयेदार मुलायम बाल वाला यह जानवर चूहे व गिलहरी जैसे कुतरने वाले जीवों के वर्ग का एक प्राणी है जिसे इसके वैज्ञानिक नाम ‘केविआ पोर्सेलस’ से जाना जाता है। ‘गिनी पिग’ एक पालतू जानवर है जिसे लोग प्यार से केवी भी पुकारते हैं।
गिनी पिग भूरे, सफेद व काले रंग का प्राणी है जिसकी लंबाई 8 से 10 इंच तथा वजन 700 से 1200 ग्राम तक होता है। इनके आगे के पैरों में 4 तथा पीछे के पैरों में 3 अंगुलियां होती हैं। यह एक पालतू जानवर है जिनका जीवन 5 से 7 वर्ष तक होता है।
‘गिनी पिग’ का नाम गिनी पिग क्यों पड़ा इसके बारे में तो पता नहीं लगाया जा सका है किन्तु कहा जाता है कि इसकी सूअर के जैसी मोटी गर्दन व बड़े मुंह की वजह से इसे ‘गिनी पिग’ कहा जाता होगा। मादा गिनी पिग एक बार में 3 से 4 बच्चों को जन्म देती है, इसके बच्चे जन्म से एक घंटे के अंदर ही दौड़ने लगते हैं। चूहों की तरह ही गिनी पिग भी बिल बनाकर रहते हैं। इसके कान चूहे से कुछ बड़े होते हैं किन्तु इनकी पूंछ नहीं होती। इनकी आंखें चूहे के जैसी गोल और छोटी होती हैं किन्तु ये मनुष्यों से भी अधिक दायरे तक की चीजों को भी देखने में सक्षम होते हैं साथ ही इनकी सुनने और सूंघने की शक्ति भी काफी अधिक होती है।
समूह में रहने की अपेक्षा गिनी पिग अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं ये शाकाहारी होते हैं और बिना पानी के भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। गिनी पिग को वर्षों तक वैज्ञानिक शोधों के लिए प्रयोग किया जाता रहा है एवं इसके स्वादिष्ट मांस की वजह से कई देशों में इसका मांस बड़े चाव से खाया जाता है जिसके कारण इनकी प्रजाति विलुप्ति की और बढ़ रही है जो एक चिंता का विषय है।
-अमृता गोस्वामी
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