Health Tips: पेपर कप में चाय पीना सेहत के लिए हो सकता है नुकसानदेह, खतरा जान चकरा जाएंगे आप

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कागज के कप में प्लास्टिक का भी इस्तेमाल किया जाता है। जो आपको आंखों से नहीं दिखता है, लेकिन यह चाय में घुलकर हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। हम आपको कागज के कप में चाय पीने से सेहत को होने वाले कुछ नुकसान के बारे में बताने जा रहे हैं।

एक रिसर्च के मुताबिक अगर आप कागज के कप में चाय पीते हैं, तो इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इस गंभीर बीमारे के खतरे की वजह कागज के रूप में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक है। जो आपको आंखों से नहीं दिखता है, लेकिन यह चाय में घुलकर हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कागज के कप में चाय पीने से सेहत को होने वाले कुछ नुकसान के बारे में बताने जा रहे हैं।

जानिए 3 खतरनाक बातें

चाय का कप वॉटरप्रूफ होता है, इसको वॉटरप्रूफ बनाने के लिए कागज के कप पर प्लास्टिक की महीन लेयर चढ़ाई जाती है।

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पेपर कप में जब गर्म चाय डालते हैं, तो इस पर चढ़ी प्लास्टिक की लेयर पिघलने लगती है। क्योंकि एक कप चाय में माइक्रोप्लास्टिक के 25 हजार से अधिक कण घुल जाते हैं। इन कणों का साइज इतना अधिक बारीक होता है कि आप इनको आंखों से नहीं देख सकते हैं।

इसके साथ ही प्लास्टिक में मौजूद दूसरे हानिकारक केमिकल्स चाय में घुलकर हमारे शरीर में पहुंचते हैं। ऐसे में अगर आप पेपर कप में दिन भर में 5 चाय पीते हैं, तो एक लाख 25 हजार माइक्रो प्लास्टिक कण आपके शरीर में पहुंच जाएंगे।

वहीं लगातार इस कप में चाय पीने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। साथ ही बॉडी में धीरे-धीरे माइक्रोप्लास्टिक कण जमा होने लगते हैं। जिससे डायरिया जैसी बीमारी हो सकती है।

पेपर कप में चाय पीने से हाजमा खराब हो जाता है और आंतों में इंफेक्शन फैल जाता है और धीरे-धीरे इसका असर किडनी और लिवर पर भी पड़ने लगता है।

प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए हानिकारक

हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो गर्भवती महिलाओं को पेपर कप के इस्तेमाल से बचना चाहिए। क्योंकि इसका इस्तेमाल करने से हाई बीपी की समस्या हो सकती है।

पेपर कप के इस्तेमाल से गर्भ में पलने वाले बच्चे का विकास रुक सकता है और बच्चे को मानसिक बीमारी होने का खतरा भी बढ़ सकता है। वहीं महिलाओं को थकान और एंग्जाइटी हो सकती है।

डिस्पोजल कप पर रिसर्च

एक रिसर्च में सामने आया है कि न सिर्फ व्यक्ति की सेहत बल्कि यह पेपर कप मिट्टी और पर्यावरण तक को प्रदूषित करते हैं। शोध के दौरान तितली और मच्छर के लार्वा पर रिसर्च की और पता लगाने की कोशिश कि अलग-अलग चीजों से बने डिस्पोजेबल कप का लार्वा पर कैसा असर पड़ता है। 

इसके लिए पेपर कप और प्लास्टिक कप को कुछ सप्ताह के लिए पानी में छोड़ दिया गया। पानी में कप में मौजूद केमिकल घुलकर लार्वा तक पहुंच गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि तितलियों और मच्छरों के लार्वा के विकास पर कप में मौजूद केमिकल ने निगेटिव असर डाला।

पॉली लैक्टिक एसिड को बायोडिग्रेडेबल कहा जाता है। लोगों को लगता है कि दूसरे प्लास्टिक की तुलना में यह जल्द नष्ट हो जाता है। लेकिन बता दें कि दूसरे प्लास्टिक की तरह PLA भी खतरनाक और जहरीला हो सकता है।

जब मिट्‌टी-पानी में पहुंचकर बायोप्लास्टिक के कण पर्यावरण में घुलते हैं, तो यह आसानी से नष्ट नहीं हो पाते हैं। ऐसे में यह पानी और हवा-मिट्टी के जरिए इंसानों और जानवरों के शरीर में पहुंच जाता है। इन कणों में मौजूद केमिकल सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं।

पर्यावरण में घुल जाता है प्लास्टिक

प्लास्टिक हमेशा पर्यावरण में बना रहता है तो हमेशा खतरे के रूप में कायम रहता है। ऐसे में यह गलकर माइक्रोप्लास्टिक की शक्ल में न सिर्फ इंसानों और जानवरों तक पहुंच जाता है। आपको बता दें कि प्लास्टिक में उतना प्लास्टिक होता है, जितना कि एक नॉर्मल 'कंवेंशन प्लास्टिक' में।

पेपर प्लास्टिक में भी नुकसान पहुंचाने वाले पार्टिकल्स मिले होते हैं, जो सेहत के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी काफी बड़ा खतरा है।

ऐसे रिसाइकल होते हैं जूठे कप

बहुत सारे लोग सोचते हैं कि डिस्पोजेबल पेपर कप को रिसाइकल कर पर्यावरण को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। हांलाकि कुछ आसान स्टेप्स को फॉलो कर पेपर कप को रिसाइकल कर सकते हैं और नुकसान से बच सकते हैं। 

पेपर कप को रिसाइकल करने के लिए कागज और प्लास्टिक की परत को पहले अलग किया जाता है। फिर इसमें से निकले कागज से दूसरे प्रोडक्ट्स बना सकते हैं।

आपको बता दें कि ऐसी कई कंपनियां हैं, जो पेपर कप को रिसाइकल कर उससे नैपकिन, टिश्यू पेपर और कार्ड बोर्ड जैसे नए प्रोडक्ट्स बनाती है। 

कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में हर साल 6 से 8 लाख टन पेपर का इस्तेमाल किया जाता है। 

डिस्क्लेमर: इस लेख के सुझाव सामान्य जानकारी के लिए हैं। इन सुझावों और जानकारी को किसी डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें। किसी भी बीमारी के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
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