देवी की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं

Navratri 2024
ANI
शुभा दुबे । Oct 5 2024 2:41PM

ये महाशक्ति ही सर्वकारणरूपा प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सर्जन−पालन−संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं।

भगवती दुर्गा ही संपूर्ण विश्व को सत्ता, स्फूर्ति तथा सरसता प्रदान करती हैं। जैसे दर्पण को स्पर्श कर देखा जाए तो वहां वास्तव में कुछ भी उपलब्ध नहीं होता, वैसे ही सच्चिदानंदरूपा महाचिति भगवती में संपूर्ण विश्व होता है। कोई इस परमात्मारूपा महाशक्ति को निर्गुण कहता है तो कोई सगुण। ये दोनों ही बातें ठीक हैं क्योंकि उनके ही तो ये दो नाम हैं। जब मायाशक्ति क्रियाशील रहती हैं तब उसका अधिष्ठान महाशक्ति सगुण कहलाती है और जब वह महाशक्ति में मिली रहती है, तब महाशक्ति निर्गुण है। इन अनिर्वचनीया परमात्मारूपा महाशक्ति में परस्पर विरोधी गुणों का नित्य सामंजस्य है। वे जिस समय निर्गुण हैं, उस समय भी उनमें गुणमयी मायाशक्ति छिपी हुई है और जब वे सगुण कहलाती हैं उस समय भी वे गुणमयी मायाशक्ति की अधीश्वरी और सर्वतन्त्र−स्वतन्त्र होने से वस्तुतः निर्गुण ही हैं। उनमें निर्गुण और सगुण दोनों लक्षण सभी समय रहते हैं। जो जिस भाव से उन्हें देखता है, उसे उनका वैसा ही रूप भान होता है।

इन्हीं की शक्ति से ब्रह्मादि देवता बनते हैं, जिनसे विश्व की उत्पत्ति होती है। इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं। दया, क्षमा, निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा, भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्ति की शक्तियां हैं। ये ही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में श्रीसीता, श्रीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गितनाशिनी मेनकापुत्री दुर्गा हैं। ये ही वाणी, विद्या, सरस्वती, सावित्री और गायत्री हैं।

इसे भी पढ़ें: Durga Puja Mantra: मां दुर्गा के इन चमत्कारी मंत्रों के जप से पूरी होगी हर मनोकामना, दूर होंगे सभी कष्ट

ये महाशक्ति ही सर्वकारणरूपा प्रकृति की आधारभूता होने से महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सर्जन−पालन−संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती हैं। परा और अपरा दोनों प्रकृतियां इन्हीं की हैं अथवा ये ही दो प्रकृतियों के रूप में प्रकाशित होती हैं। इनमें द्वैत, अद्वैत दोनों का समावेश है। ये ही वैष्णवों की श्रीनारायण और महालक्ष्मी, श्रीराम और सीता, श्रीकृष्ण और राधा, शैवों की श्रीशंकर और उमा, गाणपत्यों की श्रीगणेश और रिद्धि−सिद्धि, सौरों की श्रीसूर्य और उषा, ब्रह्मवादियों की शुद्ब्रह्म और ब्रह्मविद्धा तथा शास्त्रों की महादेवी हैं। ये ही पंचमहाशक्ति, दशमहाविद्या तथा नवदुर्गा हैं। ये ही अन्नपूर्णा, जगद्धात्री, कात्यायनी, ललिताम्बा हैं। ये ही शक्तिमान और शक्ति हैं। ये ही नर और नारी हैं। ये ही माता, धाता, पितामह हैं, सब कुछ ये ही हैं।

यद्यपि श्रीभगवती नित्य ही हैं और उन्हीं से सब कुछ व्याप्त है तथापि देवताओं के कार्य के लिए वे समय−समय पर अनेक रूपों में जब प्रकट होती हैं, तब वे नित्य होने पर भी 'देवी उत्पन्न हुई− प्रकट हो गयीं', इस प्रकार से कही जाती हैं−

नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्विमदं ततम्।।

तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम।

देवानां कार्यिसद्धर्यथमाविर्भवति सा यद।।

उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते।

-शुभा दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़