Harishayani Ekadashi 2024: हरिशयनी एकादशी व्रत पर भगवान विष्णु की पूजा से होंगे मनोरथ पूरे

Harishayani Ekadashi 2024
Prabhasakshi

शास्त्रों के अनुसार हरिशयनी एकादशी से सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति के तेजस तत्व में कमी आ जाती है, जिसकी वजह से शुभ कार्यों का शुभ फल नहीं मिलता। पंडितों का मानना है कि चातुर्मास में सभी तीर्थ ब्रजधाम आ जाते हैं इसलिए इस अवधि में ब्रज की यात्रा करना बहुत शुभ माना जाता है।

आज हरिशयनी एकादशी व्रत है, सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन जगत के नाथ भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं। हिन्दू धर्म में देवशयनी एकादशी व्रत का खास महत्व है तो आइए हम आपको हरिशयनी एकादशी व्रत का महत्व एवं व्रत की विधि के बारे में बताते हैं।

जानें हरिशयनी एकादशी के बारे में

देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है। सृष्टि के संचालक भगवान विष्णु इस तिथि से चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। चार माह की इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है और इस दिन के बाद कोई भी शुभ व मांगलिक कार्यक्रम नहीं किए जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी से सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति के तेजस तत्व में कमी आ जाती है, जिसकी वजह से शुभ कार्यों का शुभ फल नहीं मिलता। पंडितों का मानना है कि चातुर्मास में सभी तीर्थ ब्रजधाम आ जाते हैं इसलिए इस अवधि में ब्रज की यात्रा करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन एकादशी का व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और धन धान्य की कमी नहीं होती है। साथ ही इस पवित्र तिथि पर दान पुण्य करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

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हरिशयनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा

हरिशयनी एकादशी का व्रत बहुत खास होता है। पंडितों के अनुसार युधिष्ठिर ने पूछा- भगवन्। आषाढ़ के शुक्र- पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है ? यह बतलाने की कृपा करें। भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन् ! आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम 'शयनी' है। मैं उसका वर्णन करता हूं। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरने वाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष में शयनी एकादशी के दिन जिन्होंने कमल-पुष्प से कमल लोचन भगवान् विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया। हरिशयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरूप राजा बलि के यहां रहता है और दूसरा क्षीर सागर में शेष नाग की शय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती है। अतः आषाढ शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ला एकादशी तक मनुष्य को भली भांति धर्म का आचरण करना चाहिये। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है।

हरिशयनी एकादशी के दिन इन उपायों से मिलेगा लाभ

हरिशयनी एकादशी को रात में जागरण कर के शंख, चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान् विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिये।

हरिशयनी एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा

देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान से निवृत होकर हाथ में अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और चारों तरफ गंगाजल से छिड़काव करें, फिर षोडषोपचार विधि से भगवान विष्णु की पूजा करें। भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है इसलिए भगवान को पीले फूल, पीले फल आदि अर्पित करें। इसके बाद धूप दीप जलाएं और कथा का वाचन करें। पूजन के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद पीपल और केले के वृक्ष की भी पूजा करें और सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य भी करें।

भगवान शिव संभालते हैं कार्यभार

पंडितों के अनुसार सृष्टि के संचालक और पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। ऐसे में देवशयनी एकादशी के बाद भगवान पूरे चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को भगवान का भी शयनकाल कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में जाने के बाद सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं, इसलिए चातुर्मास के चार महीनों में विशेषरूप से शिवजी की उपासना फलदाई है।

हरिशयनी एकादशी के दिन शाम को ऐसे करें पूजा 

देवशयनी एकादशी तिथि को सायंकाल के समय भी पूजा की जाती है। अपनी सामार्थ्य के अनुसार सोना, चांदी, तांबा या कागज की मूर्ति बनवाकर गायन वादन के साथ विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद शयन मंत्र का जप करते हुए सजी हुई शय्यापर शयन करवाएं। इसके बाद रात्रि जागरण करना चाहिए। भगवान का सोना रात्रि के समय, करवट बदलना संधिकाल में और जागना दिन में होता है।

हरिशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 16 जुलाई को शुरू होगी। इस दिन एकादशी तिथि संध्याकाल 08 बजकर 33 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 17 जुलाई को शाम 09 बजकर 02 मिनट पर होगा।

हरिशयनी एकादशी के पारण का समय

एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है। ज्योतिषियों की मानें तो द्वादशी तिथि से पूर्व पारण कर लेना चाहिए। द्वादशी तिथि पर पारण नहीं किया जाता है। अतः 18 जुलाई यानी गुरु प्रदोष व्रत तिथि पर सूर्योदय होने के बाद सुबह 05 बजकर 35 मिनट से लेकर 08 बजकर 20 मिनट मध्य व्रत खोल सकते हैं। इस दौरान स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। इसके पश्चात ब्राह्मणों को अन्न और धन का दान देने के बाद व्रत खोलें।

हरिशयनी एकादशी का शुभ योग

ज्योतिषियों के अनुसार देवशयनी एकादशी शुभ और शुक्ल योग का निर्माण हो रहा है। इसके अलावा, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का भी संयोग बन रहा है। इस दौरान जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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