Vat Purnima Vrat 2023: वट पूर्णिमा व्रत से होती है सभी समस्याएं दूर

Vat Purnima Vrat
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वट पूर्णिमा व्रत के दिन तीन अत्यंत शुभ संयोग का निर्माण हो रहा है। इस दिन अनुराधा नक्षत्र बनेगा जो सुबह 06 बजकर 16 मिनट से पूर्ण रात्रि तक है। वहीं इस दिन शिव एवं सिद्ध योग का निर्माण हो रहा है।

आज वट पूर्णिमा व्रत है, हिन्दू धर्म में वट पूर्णिमा व्रत का खास महत्व है, तो आइए हम आपको वट पूर्णिमा व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जानें वट पूर्णिमा व्रत के बारे में 

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन व्रत सावित्री पूर्णिमा व्रत रखा जाता है। भारत के उत्तरी भाग में यह व्रत अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है और महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिणी भाग में यह व्रत पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता है। वट पूर्णिमा व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष और भगवान विष्णु की उपासना करती हैं। पंडितों का है कि इस दिन पूजा-पाठ करने से जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती है। 

वट पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त

वट पूर्णिमा व्रत के दिन तीन अत्यंत शुभ संयोग का निर्माण हो रहा है। इस दिन अनुराधा नक्षत्र बनेगा जो सुबह 06 बजकर 16 मिनट से पूर्ण रात्रि तक है। वहीं इस दिन शिव एवं सिद्ध योग का निर्माण हो रहा है। शिव योग दोपहर 02 बजकर 48 मिनट तक रहेगा और इसके बाद सिद्ध योग का शुभारंभ हो जाएगा।

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वट पूर्णिमा व्रत का महत्व

वट सावित्री पूर्णिमा और अमावस्या व्रत में विशेष अंतर नहीं है। इस दिन शुभ मुहूर्त में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और परिवार के कल्याण के लिए वट वृक्ष की उपासना करती हैं और वृक्ष के चारों ओर रक्षा सूत्र बांधती हैं। पंडितों का मानना है कि ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि वट वृक्ष में भगवान विष्णु वास करते हैं और उनकी उपासना करने से जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।

वट पूर्णिमा व्रत पर नहीं होगा भद्रा का दुष्प्रभाव

वट पूर्णिमा व्रत पर भद्रा सुबह 11:16 बजे से रात 10:17 बजे तक है। हालांकि यह भद्रा स्वर्ग की है, इसलिए इसका दुष्प्रभाव पृथ्वी पर नहीं होगा। हालांकि भद्रा काल में व्रत और पूजा पाठ वर्जित नहीं होता है। कुछ शुभ कार्य ही वर्जित होते हैं।

वट पूर्णिमा पर बने हैं शिव, सिद्ध और रवि योग

वट पूर्णिमा व्रत वाले दिन 3 शुभ योग शिव, सिद्ध और रवि योग बन रहे हैं। रवि योग सुबह 05:23 बजे से सुबह 06:16 बजे तक, शिव योग सुबह से लेकर दोपहर 02:48 बजे तक और सिद्ध योग दोपहर 02:48 बजे से देर रात तक है। शिव योग साधना के लिए अच्छा होता है।

वट पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा

वट पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठने और स्नान आदि के बाद सुहागन महिलाएं पूजा के लिए अपनी थाली में रोली, चंदन, फूल, धूप, दीप आदि सब रख लें। इसके बाद सभी सामग्री वट वृक्ष पर अर्पित कर दें। साथ ही कच्चे सूत से वट की परिक्रमा करें। इसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर सत्यवान सावित्री की कथा पढ़ें। इस व्रत का पारण अगले दिन सात चने के दाने और पानी के साथ किया जाता है।

वट पूर्णिमा व्रत नियम

- इस दिन सुहागिनें काले या नीले रंग के कपड़े ना पहनें, पंडितों के अनुसार इन रंगों के कपडे पहनने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।  

- घर पर पूजा करने के लिए बरगद की टहनी न तोड़ें यदि आप इस दिन इसकी टहनी तोड़ती हैं तो आपके जीवन में समस्याएं आ सकती हैं। अच्छा यही रहेगा कि आप जहां वृक्ष लगा हो वहीं जाकर पूजा करें ।

- बरगद के पेड़ की क्लॉक वाइज परिक्रमा करें और परिक्रमा करते समय अपना पैर परिक्रमा के समय किसी दूसरे को न लगे।

- इस दिन जीवनसाथी के साथ लड़ाई-झगड़े से भी बचें और बड़ों का आशीर्वाद लें।

- इस दिन तामसिक आहार से दूर रहें।

वट पूर्णिमा व्रत पर करें इनका दान 

1. सूती वस्त्र, 

2. मटकी, सुराही, कलश या अन्य पात्र,

3. पंखा या छाता, 

4. रसीले फल- तरबूज, नारियल, संतरा, खीरा आदि,

5. शीतल जल, सत्तू

वट सावित्री व वट पूर्णिमा व्रत से जुड़ी कथा 

अश्वपति नाम का सच्चा, ईमानदार राजा हुआ करता था। उसके जीवन में सभी तरह का ऐशोआराम सुख शांति थी। बस एक ही कष्ट था, उसका कोई बच्चा नहीं था। वह एक बच्चा चाहता था, जिसके लिए उसे सबने कहा कि वो देवी सावित्री की आराधना करे, वो उसकी मनोकामना पूरी करेंगी। बच्चे की चाह में वह पूरे 18 वर्ष तक कठिन तपस्या करता रहा। उसके कठिन ताप को देख देवी सावित्री खुद उसके पास आई, और उसे एक बेटी का वरदान दिया, जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब ये लड़की बड़ी हुई और युवावस्था में पहुंची तो खुद अपने लिए अच्छे जीवनसाथी तलाशने लगी। जिसके बाद उसे सत्यभामा मिले. लेकिन सत्यभामा की कुंडली के अनुसार उसका जीवन अधिक नहीं था, उसकी 1 साल में म्रत्यु लिखी थी।

सावित्री अपने पति सत्यभामा के साथ एक बार बरगद पेड़ के नीचे बैठी थी। सावित्री की गोद में सर रखकर सत्यभामा लेटे हुए थे, तभी उनके प्राण लेने के लिए यमलोक के राजा यमराज अपने दूत को भेजते है। लेकिन सावित्री अपने प्रिय पति के प्राण देने से इंकार कर देती है। यमराज कई लोगो को भेजते है, लेकिन सावित्री किसी को भी अपने पति के प्राण नहीं देती है। तब खुद यमराज उसके पास जाते है, और सत्यभामा के प्राण मांगते है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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