ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषियों की होती है धूमधाम से पूजा
ऋषि पंचमी का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई स्त्री पिछले जन्म में किसी पाप के कारण इस जन्म में फल भोग रही है तो ऋषि पंचमी के व्रत से उसे दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही सुहागिन महिलाओं को इस व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है।
भादो महीने की शुक्लपक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी कहा जाता है। इस व्रत का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। इस दिन स्त्रियां सप्तऋषियों की पूजा कर सौभाग्यवती होने का आर्शीवाद मांगती हैं। इस बार ऋषि पंचमी 3 सितम्बर को पड़ रही है। तो आइए हम आपको ऋषि पंचमी की महिमा के बारे में बताते हैं।
क्या है ऋषि पंचमी
ऋषि पंचमी का व्रत हरितालिका व्रत के ठीक दूसरे दिन किया जाता है। यह व्रत नारियों के अटल सुहाग का प्रतीक होता है। इस दिन स्त्रियां किसी देवी-देवता की नहीं सप्तऋषियों की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि मन से इस व्रत को करने से सभी दुख दूर होते हैं और घर में समृद्धि आती है। इस विशेष दिन सप्तऋषियों की धूमधाम से पूजा की जाती है।
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ऋषि पंचमी का महत्व
ऋषि पंचमी का हिन्दू धर्म में खास महत्व है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई स्त्री पिछले जन्म में किसी पाप के कारण इस जन्म में फल भोग रही है तो ऋषि पंचमी के व्रत से उसे दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही सुहागिन महिलाओं को इस व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है।
ऋषि पंचमी से जुड़ी कथा
प्राचीन काल में विदर्भ नाम के एक ब्राह्मण रहा करते थे। ब्राह्मण के साथ उनकी पत्नी तथा पुत्र तथा पुत्री भी रहते थे। पुत्री बड़ी हो गयी तो उन्होंने एक अच्छा कुलीन घर देखकर उसका विवाह कर दिया। विवाह के पश्चात कन्या अपने ससुराल में रहने लगी। लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसके पति की अकाल मृत्यु हो गयी और विधवा हो गई। इस अवस्था में ब्राह्मण की कन्या वापस अपने पिता के घर आकर रहने लगी। एक दिन रात में वह बीमार हो गयी और उसके शरीर में कीड़े लग गए। बेटी की इस परेशानी से ब्राह्मण बेहद दुखी हुए और उसे एक ऋषि के पास ले गए। ऋषि ने ब्राह्मण को बताया कि कन्या की यह दशा उसके पुराने जन्मों का फल है। उसने पिछले जन्म में रजस्वला होने के बावजूद अपने घर के काम किए इसी कारण कन्या की यह दशा हुई है।
साथ ही ऋषि ने कहा कि अगर कन्या इस जन्म में ऋषि पंचमी का व्रत करें और विधि पूर्वक पूजन करें तो उसके कष्ट दूर हो जाएंगे। कन्या को यह दुख शास्त्रों के अनुसार नहीं चलने के कारण हो रहा है। उसके बाद उस ब्राह्मण कन्या ने ऋषि के बताए नियमों के अनुसार पूजा-पाठ किया और वह रोग मुक्त हो गयी।
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विशेष पंचमी का व्रत
पहले यह व्रत सभी वर्ग के पुरुष भी करते थे लेकिन समय बदलने के साथ केवल स्त्रियां ही ऋषि पंचमी के दिन व्रत और पूजन करती हैं।
पूजा विधि
ऋषिपंचमी के दिन सप्तऋषियों की पूजा का विधान है इसलिए स्वच्छतापूर्वक इस व्रत को किया जाता है। इस दिन महिलाएं सबसे पहले प्रातः स्नान कर साफ कपड़े पहनें। फिर अपने घर में स्थित मंदिर में सप्तऋषियों की प्रतिमा बनाएं। प्रतिमा बनाने के बाद कलश स्थापित कर धूप-दीप जलाएं और फल का भोग लगाएं। साथ ही महिलाएं ऋषि पंचमी के दिन अन्न ग्रहण न कर फलाहार करें। व्रत के दूसरे ब्राह्मणों को भोजन कराके दान दें, तत्पश्चात भोजन करें।
प्रज्ञा पाण्डेय
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