शुरू हो रहे हैं पितृ पक्ष, जान लें इससे जुड़ी सभी जरूरी बातें
पितृपक्ष के विषय में और जानें, श्राद्ध के बारे में जान लेना जरूरी है। पराशर ऋषि, जो कि मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है, ने बताया था कि स्थान और उसकी परिस्थिति के अनुसार जौ, काला तिल, कुश आदि से मंत्रोच्चार के साथ जो भी कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहा जाता है।
इस साल पितृपक्ष कल से यानी 10 सितंबर से शुरु होने होने वाले हैं। पितृपक्ष वास्तव में पितरों की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। इसमें अंतर्गत श्राद्ध कर्म और दान-धर्म जैसे कार्य किए जाते हैं। माना जाता है कि पितृपक्ष के समय पूर्वज अपने परिवार के अन्य सदस्यों को आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। जो लोग पितृ दोष से पीड़ित होते हैं, उन्हें पितृ पक्ष में दिव्य स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जिंदगी की सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है। साथ ही पितरों की आत्मा को शांति भी मिलती है।
श्राद्ध क्या है?
इससे पहले कि हम पितृपक्ष के विषय में और जानें, श्राद्ध के बारे में जान लेना जरूरी है। पराशर ऋषि, जो कि मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है, ने बताया था कि स्थान और उसकी परिस्थिति के अनुसार जौ, काला तिल, कुश आदि से मंत्रोच्चार के साथ जो भी कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। श्राद्ध करवाने से पितृ प्रसन्न होते हैं। पितृ प्रसन्न होने पर वे अपने वंश को सुख-समृद्धि और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
पितर प्रार्थना मंत्र
पितृभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।
पितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।
प्रपितामहेभ्य:स्वधायिभ्य:स्वधा नम:।
सर्व पितृभ्यो श्र्द्ध्या नमो नम:।।
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तर्पण की विधि?
तर्पण और श्राद्ध के लिए आपको रोली, सिंदूर, छोटी सुपारी , रक्षा सूत्र, चावल, जनेऊ, कपूर, हल्दी, देसी घी, माचिस, शहद, काला तिल, तुलसी पत्ता, पान का पत्ता, जौ, हवन सामग्री, गुड़, मिट्टी का दीया, रुई बत्ती, अगरबत्ती, दही, जौ का आटा, गंगाजल, खजूर, केला, सफेद फूल, उड़द, गाय का दूध, घी, खीर, स्वांक के चावल, मूंग, गन्ना चाहिए होता है। इसके बाद सभी सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठना चाहिए। साथ ही हाथ में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर अपने हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करना चाहिए। इसके बाद पितरों से जल को ग्रहण करने का आग्रह करना चाहिए। अंत में जल को पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार अंजलि से गिराना चाहिए। इस तरह आपकी तर्पण विधि पूर्ण होती है।
क्या करें-क्या न करें
पितृपक्ष के समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। यहां हम आपको यही बता रहे हैं कि इस समय अवधि में आप क्या करें और क्या न करें-
- पितृपक्ष में अपने पितरों को याद करें।
- रोजाना पितरों के लिए भोजन रखें। कुछ देर बाद उसे गाय, कौआ, कुत्ते को खिलाएं।
- श्राद्ध कर्म सुबह 11.30 से दोपहर 02.30 बजे के बीच कर लें।
- लहसुन, प्याज, मांस, आदि का सेवन करने से बचें।
- पितृपक्ष में स्नान के समय तेल, उबटन का उपयोग करने से बचें।
- इस दौरान धार्मिक या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए, इसे अशुभ माना जाता है।
- नए वस्त्र भी न खरीदें।
- मिताली जैन
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