Champa Shashthi 2024: चम्पा षष्ठी व्रत से मिलता है सभी कष्टों से छुटाकारा
चंपा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार भगवान शिव के अवतार खंडोबा या खंडेराव को समर्पित है। खंडोबा को किसानों, चरवाहों और शिकारियों आदि का मुख्य देवता माना जाता है।
आज चम्पा षष्ठी व्रत है, यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है। चम्पा षष्ठी व्रत से अज्ञानतावश हुए पापों से मुक्ति मिलती है और धन-ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको चम्पा षष्ठी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें चंपा षष्ठी के बारे में
चंपा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार भगवान शिव के अवतार खंडोबा या खंडेराव को समर्पित है। खंडोबा को किसानों, चरवाहों और शिकारियों आदि का मुख्य देवता माना जाता है। यह त्योहार कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों का प्रमुख त्यौहार है। मान्यता है कि चंपा षष्ठी व्रत करने से जीवन में खुशियां बनी रहती है। पंडितों के अनुसार यह व्रत करने से पिछले जन्म के सारे पाप धुल जाते हैं और आगे का जीवन सुखमय हो जाता है। यह दिन भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन शिवजी के मार्कंडेय स्वरूप की पूजा की जाती है। वहीं स्कंदपुराण के अनुसार, इस दिन शिवजी के पुत्र भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। इसलिए इस पर्व को स्कंद षष्ठी भी कहा जाता है। इस बार चंपा षष्ठी का पर्व 07 दिसंबर 2024, शनिवार को पड़ रही है। इस पर्व को मुख्य रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक क्षेत्रों में प्रमुख रूप से मनाया जाता है।
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चम्पा षष्ठी शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि 06 दिसम्बर 2024 को दोपहर 12 बजकर 07 मिनट पर प्रारंभ होगी।
षष्ठी तिथि का समापन 08 दिसम्बर 2024 को सुबह 11 बजकर 05 मिनट पर होगा।
चम्पा षष्ठी पर मेले का भी होता है आयोजन
जेजुरी में स्थित खंडोबा मंदिर में इस पर्व का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। इस अवसर पर हल्दी, फल, सब्जियां आदि खंडोबा देव को समर्पित की जाती हैं। यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शिव की पूजा की जाती है, जिसमें भगवान शिव के मार्तण्ड रूप की विशेष आराधना की जाती है।
चंपा षष्ठी पर्व का महत्व
चंपा षष्ठी का पर्व अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन, मार्तण्ड भगवान सूर्य का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद सूर्यदेव को नमस्कार किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। इस अवसर पर शिव का ध्यान भी किया जाता है और शिवलिंग की पूजा की जाती है, जिसमें दूध और गंगाजल अर्पित किया जाता है। भगवान को चंपा के फूल चढ़ाने की परंपरा है। इस दिन भूमि पर शयन करने का भी महत्व है। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा और व्रत से पापों का नाश होता है, परेशानियों का समाधान होता है और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। चंपा षष्ठी के प्रारंभ और इसकी मान्यताओं के बारे में विभिन्न मत प्रचलित हैं। इस दिन किए गए पूजा-पाठ और दान से मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायता मिलती है। चंपा षष्ठी की कथाओं को स्कंद षष्ठी से जोड़ा जाता है, और इसे खंडोबा देव या षष्ठी तिथि से भी संबंधित माना जाता है।
चंपा षष्ठी को लेकर प्रचलित कथाएं
चंपा षष्टी के दिन पूजा की शुरुआत कैसे हुई, इसे लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं हैं। जिनका वर्णन अलग अलग जगहों पर मिलता है। इनमें दो महत्वपूर्ण कथाएं, हम उनके बारे में आपको बताते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि एक बार कार्तिकेय अपने माता पिता शंकर जी और पार्वती व छोटे भाई गणेश से किसी बात को लेकर रूष्ट हो गए। जिसके बाद वह कैलाश पर्वत छोड़ कर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन चलें गए, और वहीं पर निवास करने लगे। यहीं पर मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। साथ ही तिथि को उन्हें देवताओं की सेना का सेनापति बनाया गया था। इसी दिन से चंपा षष्ठी का यह त्योहार मनाया जाता है। चम्पा के फूल कार्तिकेय को बहुत पसंद है, इसी वजह से इस तिथि को चंपा षष्ठी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन को लेकर एक दूसरी कथा जो प्रचलित है, उसके अनुसार प्राचीन काल में मणि और मल्ह नाम के दो दैत्य भाई थे। उनके अत्याचारों से मानव जाति को निजात दिलाने के लिए उनसे महादेव ने खंडोबा नामक स्थान पर 6 दिनों तक युद्ध लड़ा था, और उनका वध किया था। इसी स्थान भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। दोनों राक्षसों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव और पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया था। यही कारण है कि महाराष्ट्र में रुद्रावतार भैरव को मार्तंड-मल्लहारी कहा जाता है, साथ ही खंडोबा, खंडेराया आदि नामों से भी पहचाना जाता है। मणि और मल्ह नामक दैत्यों का वध करने के कारण ही इस दिन को चंपा षष्ठी कहा जाता है।
चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव और कार्तिकेय की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस दिन सच्चे मन से शिव और कार्तिकेय की आराधना करता है, उसके सारे पाप कट जाते है, और सारी समस्याओं पर विराम लग जाता है। इसके अलावा उसके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है, और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। चंपा षष्ठी के दिन उपवास करने से मनुष्य के पिछले जन्मों के सारे पाप धुल जाते हैं। आपको बता दें कि भगवान कार्तिकेय मंगल ग्रह के स्वामी है। अपनी राशि में मंगल को मजबूत करने के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करें। साथ ही आप मंगल के प्रभाव को कम करना चाहते हैं, तो हमारे वैदिक पंडितों से पूजा भी करवा सकते हैं।
चम्पा षष्ठी पर ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार यह दिन खास होता है इसलिए इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हों। इस दिन, मार्तण्ड भगवान और सूर्य के पूजन का विशेष महत्व है। सूर्य निकलने पर भगवान को अर्ध्य देकर व्रत का संकल्प लें। पूजा के दौरान भगवान शिव का ध्यान करें और शिवलिंग की पूजा करें। पूजा में दूध और गंगाजल अर्पित करें और भगवान को चंपा के फूल चढ़ाएं। शिवलिंग पर बाजरा, बैंगन, खांड, फूल, अबीर, बेलपत्र आदि भी चढ़ाया जाता है। इस दिन भूमि पर शयन करने का भी महत्व है। इस दिन किए गए पूजा-पाठ के बाद दान जरूर करें।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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