महाभरणी पर होता है अविवाहित लोगों का श्राद्ध
भरणी श्राद्ध को महाभरणी श्राद्ध भी कहा जाता है। पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध है और इसे विधिपूर्वक सम्पन्न कराने का शुभ समय कुटुप मुहूर्त और रोहिणा है। मुहूर्त के शुरु होने के बाद आप दोपहर से पहले किसी भी समय श्राद्ध क्रिया संपन्न करा सकते हैं। यह ध्यान रखें कि श्राद्ध के अंत में तर्पण जरूर करें।
पितृपक्ष शुरू हो गया है, सभी लोग अपने पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको पता है जिन लोग की मृत्यु विवाह पूर्व अर्थात अविवाहित रहने पर हो जाती है उनका श्राद्ध एक खास दिन होता है। वह विशेष दिवस है भरणी या पंचम श्राद्ध। पंचम श्राद्ध या भरणी का हिन्दू धर्म में खास महत्ता है। तो आइए हम आपको महाभरणी के बारे में बताते हैं।
भरणी श्राद्ध क्या है
भरणी नक्षत्र होने के कारण 18 सितम्बर के श्राद्ध को भरणी श्राद्ध कहा जाता है। यमराज को भरणी नक्षत्र का देवता माना जाता है। यमराज को भरणी का देवता मानने के कारण महाभरणी श्राद्ध की महत्ता बढ़ जाती है। आमतौर पर आश्विन मास के पितृपक्ष में चतुर्थी अथवा पंचमी को ही भरणी नक्षत्र आता है। ऐसी मान्यता है कि महाभरणी श्राद्ध में श्राद्ध कहीं भी किया जाए उसका फल सदैव गया में किए गए श्राद्ध के बराबर मिलता है। कई बार भरणी नक्षत्र चतुर्थी या पंचमी को पड़कर तृतीया तिथि को भी पड़ा जाता है, ऐसे में तृतीया को महाभरणी श्राद्ध मनाया जाता है। इसलिए भरणी श्राद्ध किसी एक तिथि से नहीं जोड़ सकते है।
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भरणी श्राद्ध को महाभरणी श्राद्ध भी कहा जाता है। पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध है और इसे विधिपूर्वक सम्पन्न कराने का शुभ समय कुटुप मुहूर्त और रोहिणा है। मुहूर्त के शुरु होने के बाद आप दोपहर से पहले किसी भी समय श्राद्ध क्रिया संपन्न करा सकते हैं। यह ध्यान रखें कि श्राद्ध के अंत में तर्पण जरूर करें।
परिवार के सभी परिजनों के श्राद्ध का है खास विधान
ऐसी मान्यता है कि परिवार के विभिन्न सदस्यों का श्राद्ध अलग-अलग दिन किया जाना चाहिए। पिता का श्राद्ध सदैव अष्टमी तिथि को और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। साथ ही जिन व्यक्तियों की अकाल मृत्यु होती है उनका श्राद्ध चतुर्दशी को होता है। जिनकी मृत्यु अविवाहित रहते हो जाती है उनका श्राद्ध पंचमी तिथि या महाभरणी को करना चाहिए। यही नहीं अगर किसी की मृत्यु की तिथि का ज्ञान न हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करें। इसके अलावा साधु और सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन होता है।
महाभरणी श्राद्ध का महत्व
ऐसी मान्यता है कि लोक-लोकान्तर के जन्म-मरण चक्र में मृ्त्यु और पुन: जन्म उत्पति का कारकत्व भरणी नक्षत्र के पास होता है। इसलिए भरणी नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से पितरों को सदगति की प्राप्ति होती है। जो भी व्यक्ति भरणी नक्षत्र में श्राद्ध करता है श्राद्धकर्ता को उत्तम आयु प्राप्त की होती है। साथ ही भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को तिल और गाय दान करने से सदगति मिलती है और कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। महालय पक्ष में भरणी नक्षत्र चतुर्थी तिथि या पंचमी तिथि को आता है।
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क्यों किया जाता है पितरों का श्राद्ध
पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध श्रद्धा शब्द से जुड़ा है, इसका अर्थ है आप इस दौरान अपने पितरों को जितनी श्रद्धा और सम्मान देंगे वह आपको उतना ही आर्शीवाद देंगे जिससे आप भविष्य तरक्की कर आगे बढ़ सकेंगे। इसलिए पितरों के सम्मान में पितृपक्ष में अच्छी तरह से श्राद्ध करना चाहिए।
प्रज्ञा पाण्डेय
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