Skanda Shashthi Fast: स्कंद षष्ठी व्रत से होती है सभी मनोकामनाएं पूरी
भगवान कार्तिकेय युद्ध के देवता, शक्ति और विजय के प्रतीक हैं। यह व्रत शुभता, समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। लेकिन इस व्रत में नियमों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है वर्ना जीवन में परेशानियां आ सकती हैं।
आज स्कंद षष्ठी व्रत है, प्रत्येक मास में आने वाली हर एक तिथि किसी न किसी भगवान को समर्पित है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र और देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय को समर्पित होता है तो आइए हम आपको स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें स्कंद षष्ठी के बारे में
हर माह की षष्ठी तिथि भगवान शिव और देवी पार्वती के छठे पुत्र कार्तिकेय जी को समर्पित है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की आराधना करने से साधक के जीवन में प्यार, खुशहाली और सुख-समृद्धि बनी रहती है। वहीं जिन लोगों को संतान की प्राप्ति नहीं हो रही होती है, यदि वो इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ पूजा-पाठ करते हैं, तो उनके घर में जल्द ही किलकारी गूंज सकती है। लेकिन व्रत की पूजा पूरी विधि के साथ करनी जरूरी होती है, नहीं तो व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है। हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता है। भगवान कार्तिकेय को कुमार, षण्मुख और स्कंद के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए षष्ठी तिथि के व्रत को स्कंद षष्ठी और कुमार षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
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भगवान कार्तिकेय युद्ध के देवता, शक्ति और विजय के प्रतीक हैं। यह व्रत शुभता, समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। लेकिन इस व्रत में नियमों का ध्यान रखना भी जरूरी होता है वर्ना जीवन में परेशानियां आ सकती हैं। इस दिन कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए।
स्कंद षष्ठी व्रत का शुभ मुहूर्त
स्कंद षष्ठी का व्रत हर महीने की षष्ठी तिथि के दिन रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का आरंभ 8 अक्टूबर दिन मंगलवार की सुबह 11 बजकर 17 मिनट पर होगा, और इसका समापन अगले दिन 9 अक्टूबर दिन बुधवार की दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत 9 अक्टूबर को रखा जाएगा और व्रत का पारण अगले दिन 10 अक्टूबर को किया जाएगा।
स्कंद षष्ठी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार स्कंद षष्ठी का दिन खास होता है इसलिए इस दिन स्कंद षष्ठी व्रत वाले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं। इसके बाद घर की अच्छी तरह से साफ सफाई करें और उसके बाद स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब घर के मंदिर या पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें और भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें। अब भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा के सामने दीपक और धूप जलाएं, इसके बाद भगवान को रोली, अक्षत, फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें, इस दौरान ॐ स्कन्द शिवाय नमः मंत्र का तीन बार जाप करें। अब षष्ठी कवच का पाठ करें और भगवान कार्तिकेय की आरती करें। दिन भर उपवास रखें और केवल सात्विक भोजन का सेवन करें।
स्कंद षष्ठी व्रत के दिन भूलकर भी न करें ये गलतियां
स्कंद षष्ठी व्रत के दिन पूरे दिन केवल फलाहार ही किया जाता है। इसलिए इस दिन फल के अलावा और कुछ अन्य चीजें न खाएं, इससे व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। स्कंद षष्ठी व्रत के दिन और व्रत के पारण वाले दिन तामसिक भोजन, जैसे मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज आदि का सेवन न करें। इस व्रत का पारण अगले दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही होता है। स्कंद षष्ठी व्रत की पूजा सूर्योदय के समय ही करनी चाहिए।
स्कंद षष्ठी व्रत का है महत्व
स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र, भगवान कार्तिकेय की कृपा प्राप्त होती है। पंडितों के अनुसार इस व्रत को करने से विद्या, बुद्धि, बल और धन प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से ग्रह दोषों और बीमारियों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को रखने और भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही इस व्रत को रखने से भगवान कार्तिकेय की कृपा से भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।
स्कंद षष्ठी व्रत के नियम हैं खास
पंडितों के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत पूरी श्रद्धा के साथ करें। स्कंद षष्ठी व्रत के दिन कुछ भक्त पूरे दिन निराहार व्रत रखते हैं, कुछ भक्त केवल फल खाकर व्रत रखते हैं। व्रत के दौरान लोगों को सात्विक भोजन ही करना चाहिए। रात में जागरण और भजन-कीर्तन करने से मन को शांति प्राप्त होती है। संतान प्राप्ति के लिए स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है। शत्रुओं का नाश करने के लिए भी यह व्रत किया जाता है। इस व्रत के करने से लोगों को लंबी आयु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
स्कंद षष्ठी से जुड़ी पौराणिक कथा भी होती है रोचक
शास्त्रों में स्कंद षष्ठी से जुड़ी यह कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती ने अपनी जान दे दी थी। वह यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई थीं। इस दुख से शिव जी तपस्या में लीन हो गए लेकिन उनके लीन होने से सृष्टि शक्तिहीन होने लगी। इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए तारकासुर ने देव लोक में आतंक मचा दिया और देवताओं को पराजित कर चारों तरफ भय का वातावरण बना दिया। तब सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उनसे हल पूछा। ब्रह्माजी ने कहा कि शिव पुत्र के द्वारा ही तारकासुर का अंत होगा।
स्कंद षष्ठी व्रत से कष्टों से मिलती है मुक्ति
शास्त्रों के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत करने वाले को लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है। व्यक्ति सभी शारीरिक कष्टों और रोगों से छुटकारा पाता है। पंडितों का मानना है कि स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान सुख शांति के लिए रखा जाता है। इस व्रत को रखने से बच्चों को सुख व लंबी आयु की प्राप्ति होती है।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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