Karveer Fast 2024: करवीर व्रत से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी

Karveer Fast 2024
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सूर्य को समर्पित करवीर व्रत अत्‍यंत शुभ फलदायी माना जाता है। इस व्रत के बारे में प्रसिद्ध है कि इसे सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा और दमयंती जैसी महान स्‍त्रियों ने भी किया था। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किया जाता है।

आज करवीर व्रत है, इस दिन करवीर व्रत यानि सूर्य पूजा करने का विधान है। इस दिन सूरज देव के निमित्त पूजन करना शुभ फलदायी होता है। इस व्रत को सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा, दमयंती आदि ने भी किया था तो आए हम आपको करवीर व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जानें करवीर व्रत के बारे में 

सूर्य को समर्पित करवीर व्रत अत्‍यंत शुभ फलदायी माना जाता है। इस व्रत के बारे में प्रसिद्ध है कि इसे सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा और दमयंती जैसी महान स्‍त्रियों ने भी किया था। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किया जाता है। कहते हैं कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के संकट से मुक्‍ति मिलती है और मनुष्‍य को सूर्यलोक की प्राप्‍ति होती है। इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। भारतीय रीतिरिवाज अनुसार करवीर व्रत भगवान सूर्य और कनेर वृक्ष की पूजा उपासना के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है। हिन्दू धर्म में सूर्य पंच देवों में एक है। वह साक्षात देव माने जाते हैं। जिनकी अपार शक्ति, गति और ऊर्जा से संसार का हर प्राणी और वनस्पति जीवन शक्ति पाते हैं। वह काल के निर्धारक भी है। धार्मिक मान्यताओं में भी सूर्य को समस्त इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला बताया गया है।

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करवीर व्रत है सूर्य की शक्ति पाने का अवसर

करवीर व्रत एक प्रकार से जीवन में शक्ति और प्रकाश के साथ हमारे जीवन को जोड़ने का पर्व भी है। इस दिन सूर्य के देव के नामों का स्मरण करना चाहिए। कलश में गुड़ अथवा गेहूं भर कर दान करना अत्यंत शुभ प्रभावदायक होता है। सूर्य देव का पूजन करने से हमे सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है । करवीर व्रत का प्रभाव तुरंत फल देने वाला होता है। वेदों में सूर्य की उपासना के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। वेदों में सूर्य की स्तुति के अनेक सूक्त प्राप्त होते हैं।

करवीर पूजा का महत्व 

करवीर नाम को सूर्य और श्री लक्ष्मी देवी शक्ति के साथ संबंधित माना गया है। पद्मपुराण, देवी पुराण इत्यादि में इस शब्द का संबंध देखने को मिलता है। इस दिन किया गया भक्ति साधना एवं दान इत्यादि का कार्य बहुत ही शुभफलदायक होता है। करवीर पूजा में वृक्ष पूजा का भी विशेष महत्व दिया गया है। करवीर व्रत की महत्ता के विषय में बताया गया है की इस व्रत को देवी सावित्री, दमयंती और सत्यभामा ने भी किया था। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें जीवन में संकटों की समाप्ति होती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। करवीर व्रत के पूजा उपासना एवं व्रत का पालन किया जाता है। इस दिन सूर्य पूजन, कनेर वृक्ष पूजन एवं लक्ष्मी पूजन करने के उपरांत ब्राह्मणों को सामर्थ्य अनुसार भोजन एवं दक्षिणा प्रदान करनी चाहिये। इस व्रत को करने से सूर्य लोक की प्राप्ति होती है, संतान सुख प्राप्त होता है और जीवन में किसी भी प्रकार का रोग परेशान नहीं करता है, आरोग्य की प्राप्ति होती है।

करवीर व्रत के दिन ऐसे करें सूर्य पूजा

पंडितों के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक सूर्य की उपासना करें। प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य देव का स्मरण करें। इसके बाद सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करें। अब सूर्य के मंत्रों का जाप श्रद्धापूर्वक करें। विष्णु पुराण के अनुसार इस दिन सूर्य भगवान को यदि एक आक का फूल अर्पण कर दिया जाए तो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने का फल मिलता है। भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फूलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश में भी है। करवीर व्रत में सूर्य को रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पण करना चाहिए तथा दिन में शेष अन्‍य सभी फूल चढ़ाए जा सकते हैं। बेला का फूल दिन और रात दोनों समय चढ़ाया जा सकता है। कुछ फूल सूर्य आराधना में निषिद्ध हैं। ये हैं गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया और तगर इत्यादि। इनका प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए। इस व्रत में एक समय सूर्य प्रकाश रहते ही भोजन करें। इस दिन नमकीन और तेल युक्त भोजन ना करें। सूर्य अस्त होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।

कनेर के वृक्ष की पूजा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा करने का विधान है। इस पूजा को भी नियम पूर्वक करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले वृक्ष के पास सफाई कर जल से शुद्ध करें। अब कनेर के वृक्ष के तने पर लाल मौलि बांधें और उसको जल अर्पित करते हुए लाल वस्त्र उढ़ायें। अब गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें। किसी पात्र में सप्तधान्य यानि सात प्रकार के अनाज और फल आदि रखकर वृक्ष को अर्पित करें। पूजन के बाद दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र से वृक्ष की प्रार्थना करे- ‘आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न्मृतं च्। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥’ इसके बाद वृक्ष की प्रदक्षिणा करके प्रणाम करें। 

करवीर व्रत से संबंधित अन्य पौराणिक मान्यताएं

करवीर व्रत के संदर्भ में कुछ अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं। इन में से कुछ का संबंध देवी शक्ति से जोड़ा गया है। यह कथा इस प्रकार है की कौलासुर नाम का एक दैत्य था। उसकी शक्ति बहुत अधिक बढ़ गयी थी उसने हर तरफ अत्याचार फैला रखा था। अपनी शक्ति को और भी बढ़ाने के लिए उसने कठोर तपस्या की थी और उसे संपूर्ण विजय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन इसके साथ ही उसने वरदान प्राप्त किया कि वह केवल स्त्री द्वारा ही मारा जा सके। अपने वरदान के प्राप्ति के पश्चात उसने तीनों लोकों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास आरंभ किया। ऎसे में देवों एवं समस्त लोकों की सुरक्षा हेतु विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकट होते हैं और सिंह पर आरूढ़ होकर उस राक्षस को युद्ध में परास्त किया। कोलासुर ने अपनी मृत्यु से पूर्व श्री शक्ति देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम प्राप्त हो और देवी वहीं स्थित हों। ऎसे में देवी ने वर दिया और स्वयं भी वहीं पर स्थित हो जाती हैं। कोलासुर का वध करने के पश्चात देवी को कोलासुरा मर्दिनी के नाम से भी पुकारा जाता है।

करवीर व्रत की पौराणिक कथा

पुराणों में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार ‘करवीर क्षेत्र महात्म्य’ तथा ‘लक्ष्मी विजय’ के अनुसार कौलासुर दैत्य को वरदान प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकट हुए और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार कर दिया। मरने से पहले उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी वहीँ स्थित हो गईं, तब इसे ‘करवीर क्षेत्र’ कहा जाने लगा, जो वर्तमान में ‘कोल्हापुर’ हो गया है। माँ को कोलासुरा मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आदिशक्ति का मुख्य स्थल है।

- प्रज्ञा पाण्डेय

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