Aja Ekadashi 2024: अजा एकादशी व्रत से घर में आती है सुख-समृद्धि
पंडितों का मानना है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यही नहीं वह व्यक्ति भूत-प्रेत इत्यादि योनियों से भी मुक्त हो जाता है। अजा एकादशी व्रत बेहद शक्तिशाली व्रत है जो व्यक्ति को उसके पापों से मुक्त कराता है।
29 अगस्त को अजा एकादशी है, हिन्दू धर्म में एकादशी का खास महत्व है। इस व्रत से साधक को पापों से मुक्ति मिलती है वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है तो आइए हम आपको अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।
जानें अजा एकादशी के बारे में
हर माह एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत रखने और कुछ उपाय करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। हर माह दोनों पक्षों की एकदाशी को एकादशी का व्रत रखा जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि इस बार 29 अगस्त को पड़ रही है। यह एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसे में इस शुभ दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा भाव से पूजा करने और उपाय करने से भक्तों पर श्री हरि की अपार कृपा बरसती है। ऐसे में आज इस शुभ दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है और इससे व्यक्ति को जीवन में विशेष लाभ देखने को मिलते हैं।
अजा एकादशी का है खास महत्व
पंडितों का मानना है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यही नहीं वह व्यक्ति भूत-प्रेत इत्यादि योनियों से भी मुक्त हो जाता है। अजा एकादशी व्रत बेहद शक्तिशाली व्रत है जो व्यक्ति को उसके पापों से मुक्त कराता है। इसके साथ ही व्रत करने वाले व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है। माघ का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ होता है। अजा एकादशी को दक्षिण भारत में विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में 'भूमि एकादशी' और 'भीष्म एकादशी' के रूप में भी जाना जाता है।
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अजा एकादशी से जुड़ी कथा भी है खास
पदमपुराण में अजा एकादशी की कथा का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्रअप्सराओं के साथ नन्दन वन में थे। उस समय वहां गंधर्व भी मौजूद थे। उनमें गंधर्व कन्या पुष्पवती गंधर्व पुत्र माल्यवान पर मोहित हुई और उसके ऊपर कामबाण का प्रयोग करने लगी। इससे माल्यवान का ध्यान भंग हो गया। देवराज इन्द्र ने जब देखा तो वह क्रुध हुए और उन्होंने दोनों को पिशाच रूप धारण कर मृत्यु लोक में फल भोगने का अभिशाप दे दिया। वे दोनों हिमालय पर जीवन व्यतीत करने लगे। अजा एकादशी के दिन दोनों पीपल के नीचे अन्न-जल ग्रहण किए बिना बैठे रहे। इस प्रकार उनका एकादशी का व्रत पूरा हुआ और उन्हें पिशाच योनि से छुटकारा मिला। इसके बाद वह स्वर्ग को चल दिए।
भगवान विष्णु पूजन मंत्र
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
अजा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ गुरुवार 29 अगस्त को देर रात 1 बजकर 19 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन शुक्रवार 30 अगस्त को देर रात 01 बजकर 37 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार अजा एकादशी 29 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी।
अजा एकादशी व्रत देता है मोक्ष
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने और व्रत करने से साधक को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। अजा एकादशी की कथा को सुनने मात्र से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में दान-स्नान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होता है और साथ ही, व्यक्ति इस लोक में सुख भोग कर अंत में विष्णु लोक में पहुंच जाता है।
अजा एकादशी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा
पंडितों के अनुसार एकादशी के दिन स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। अजा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी की भी पूजा करें। पूजा में धूप, दीप, तिल और पंचामृत का प्रयोग करें। पूजा में गोमती चक्र और पीली कौडी भी रखनी चाहिए। इस दिन पूजा में केले अवश्य चढ़ाए और केले को गरीबों में भी बाटें। व्रत करने वाला व्यक्ति रात में जागरण भी करें। अगर जागरण सम्भव न हो तो रात में फलाहार ग्रहण करें। इससे साधक को लाभ होता है।
अजा एकादशी के दिन करें ये उपाय
पंडितों के अनुसार अजा एकादशी व्रत वाले दिन सुबह स्नान के बाद घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु का आह्वान करें। इससे भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं और घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी जी की भी पूजा करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने से जीवन में तरक्की आती है। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले रंग की पुष्प माला, मिठाई, फल आदि अर्पित करें। फिर बाद में गाय को चारा खिलाएं और जरूरतमंद को कुछ दान करें। पीपल में भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा जरूर करनी चाहिए। अजा एकादशी के दिन किसी मंदिर में स्थित पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाएं और उसके समीप देसी घी का दीपक जलाएं। एकादशी के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन केवल एक बार भोजन करें और वो भी फलाहार ही होना चाहिए। साथ ही इस दिन चावल खाने से बचें।
अजा एकादशी व्रत में करें इनका पालन
अजा एकादशी को दो तरह से रखा जाता है। पहला निर्जला व्रत और दूसरा फलाहार व्रत या रसाहार व्रत। निर्जला व्रत के बारे में यह याद रखें कि निर्जला व्रत स्वस्थ व्यक्ति को करना रहना चाहिए। बेहतर यह होगा कि इस केवल जल और फल का ही सेवन करें।
अजा एकादशी व्रत के दिन ये न करें
पंडितों के अनुसार अजा एकादशी के दिन व्यक्ति को चावल, पान, बैंगन, गोभी, जौ या पालक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से दोष उत्पन्न होने का भय बढ़ जाता है। इस दिन मदिरा, मांस, प्याज व लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक आहार ही ग्रहण करें।
जानें अजा एकादशी व्रत की महिमा
पुराणों में माघ महीना को बड़ा ही पुण्यदायी कहा गया है। इस महीने में स्नान, दान, व्रत का फल अन्य महीनों से अधिक बताया गया है। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को नीच योनि से मुक्ति मिलती है। पदम् पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी तिथि का महत्त्व बताते हुए कहा है कि अजा एकादशी प्राणी के इस जन्म एवं पूर्व जन्म के समस्त पापों का नाश करने वाली उत्तम तिथि है। इतना ही नहीं, यह ब्रह्मह्त्या जैसे जघन्य पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करने वाली है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से प्राणी को कभी भी पिशाच या प्रेत योनि में नहीं जाना पड़ता और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि जिसने 'अजा एकादशी' का व्रत किया है उसने सब प्रकार के दान दे दिए और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया । इस व्रत को करने से व्रती को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। यह भी मान्यता है कि जो साधक इस व्रत को पूरे श्रद्धाभाव से करता है उसे भूत-प्रेत और पिशाच योनि की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती।
अजा एकादशी में पारण का समय
एकादशी के व्रत समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी का पारण द्वादशी के दिन होता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर जनेऊ और सुपारी देकर विदा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
- प्रज्ञा पाण्डेय
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