धन शोधन निवारण अधिनियम क्या है? प्रवर्तन निदेशालय इसे रोकने में कितना कारगर हुआ?
धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 भारत के संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य काले धन को सफेद करने से रोकना है। इसमें धन-शोधन से प्राप्त धन को राज्यसात (ज़ब्त) करने का प्रावधान है।
धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 एक आपराधिक कानून है जो धन शोधन यानी मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों से प्राप्त या इसमें शामिल संपत्ति की जब्ती का प्रावधान करने के लिये बनाया गया है। यह मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिये भारत द्वारा स्थापित कानूनी ढाँचे का मूल है। इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों (आरबीआई सहित), म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 भारत के संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य काले धन को सफेद करने से रोकना है। इसमें धन-शोधन से प्राप्त धन को राज्यसात (ज़ब्त) करने का प्रावधान है। यह अधिनियम 1 जुलाई, 2005 से प्रभावी हुआ। यह अधिनियम धन-शोधन की रोकथाम के लिए है और अवैध रूप से कमाई गयी सम्पत्ति (धन) को ज़ब्त करने का अधिकार देता है, जो धन-शोधन या इससे जुड़ी गतिविधियों से अर्जित की गयी हो। अभी तक इस अधिनियम में वर्ष 2005, 2009 2012, 2018 और 2019 में संशोधन किए गये हैं।
बता दें कि 2012 में किए गए संशोधन के मुताबिक सभी फाइनेंशियल संस्थाओं, बैंकों, म्यूचुअल फंडों, बीमा कंपनियो और उनके वित्तिय मध्यस्थो पर भी पीएमएलए लागू होता है। 2019 में भी इस कानून में कुछ संशोधन के रूप में बदलाव किए गए थे। इसके मुताबिक ईडी द्वारा उन लोगों या संस्थाओं पर भी कार्रवाई की जा सकती है जिनका अपराध पीएमएलए के तहत न हो।
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उल्लेखनीय है कि धन शोधन यानी मनी लॉन्ड्रिंग का अभिप्राय अवैध रूप से अर्जित आय को छिपाना या बदलना है ताकि वह वैध स्रोतों से उत्पन्न प्रतीत हो। अक्सर यह मादक पदार्थों की तस्करी, डकैती या ज़बरन वसूली जैसे अन्य गंभीर अपराधों का एक घटक है। जानकार बताते हैं कि अवैध हथियारों की बिक्री, तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी और वेश्यावृत्ति, गुप्त व्यापार, रिश्वतखोरी और कंप्यूटर धोखाधड़ी जैसी आपराधिक गतिविधियों में बड़ा मुनाफा होता है। जिससे हासिल अवैध कमाई को वैध बनाने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का सहारा लिया जाता है।
अमूमन ऐसा करने से यह मनी लॉन्ड्रिंग में संलिप्त व्यक्ति को मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से अपने अवैध लाभ को "वैध" करने के लिये एक प्रोत्साहन देता है। इससे उत्पन्न धन को 'डर्टी मनी' कहा जाता है। मनी लॉन्ड्रिंग ''डर्टी मनी'' को 'वैध' धन के रूप में प्रकट करने के लिये रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसके तीन चरण होते हैं:- पहला, प्लेसमेंट नामक चरण के तहत अपराध से संबंधित धन का औपचारिक वित्तीय प्रणाली में प्रवेश कराया जाता है। दूसरा, लेयरिंग नामक चरण में मनी लॉन्ड्रिंग में प्रवेश कराए गए पैसे की ‘लेयरिंग’ की जाती है और उस पैसे के अवैध उद्गम स्रोत को छिपाने के लिये विभिन्न लेन-देन प्रक्रियाओं में शामिल किया जाता है। और तीसरा, एकीकरण नामक अंतिम चरण में धन को वित्तीय प्रणाली में इस प्रकार से शामिल किया जाता है कि इसके अपराध के साथ मूल जुड़ाव को समाप्त कर धन को अपराधी द्वारा पुनः वैध तरीके से उपयोग किया जा सके।
# समझिए यह है धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की पृष्ठभूमि
मसलन, धन शोधन के खतरे से निपटने के लिये भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता (वियना कन्वेंशन) के जवाब में पीएमएलए अधिनियमित किया गया था। जिसमें शामिल हैं: नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों में अवैध तस्करी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1988, सिद्धांतों का बेसल वक्तव्य 1989, मनी लॉन्ड्रिंग पर वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स की चालीस सिफारिशें 1990, और वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई राजनीतिक घोषणा और वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम।
इनके दृष्टिगत यह स्पष्ट किया गया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 एक आपराधिक कानून है जो धन शोधन/मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों से प्राप्त या इसमें शामिल संपत्ति की जब्ती का प्रावधान करने के लिये बनाया गया है। यह मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिये भारत द्वारा स्थापित कानूनी ढाँचे का मूल है। इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों (आरबीआई सहित), म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
# पीएमएलए में हुए हैं निम्नलिखित संशोधन:
पहला, अपराध से अर्जित आय की स्थिति के बारे में स्पष्टीकरण: अपराध से अर्जित आय में न केवल अनुसूचित अपराध से प्राप्त संपत्ति शामिल है, बल्कि किसी भी आपराधिक गतिविधि से संबंधित या अनुसूचित अपराध के समान किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल होकर प्राप्त की गई कोई अन्य संपत्ति भी शामिल होगी।
दूसरा, मनी लॉन्ड्रिंग की परिभाषा में परिवर्तन: इससे पूर्व मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध नहीं था, बल्कि अन्य अपराध पर निर्भर था, जिसे विधेय अपराध या अनुसूचित अपराध के रूप में जाना जाता है। हालांकि बाद में इसमें हुए संशोधन ने मनी लॉन्ड्रिंग को स्वयं में विशिष्ट अपराध मानने का प्रयास किया है। पीएमएलए की धारा 3 के तहत उस व्यक्ति पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया जाएगा, यदि वह व्यक्ति किसी भी तरह से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपराध से अर्जित आय से संलग्न है, जैसे- आय छिपाना, स्वामित्व, अधिग्रहण, बेदाग संपत्ति के रूप में उपयोग करना या पेश करना, बेदाग संपत्ति के रूप में दावा करना आदि।
तीसरा, अपराध की निरंतर प्रकृति: इस संशोधन में आगे उल्लेख किया गया है कि उस व्यक्ति को मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में उस स्तर तक शामिल माना जाएगा, जहाँ तक उस व्यक्ति को मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित गतिविधियों का फल मिल रहा है क्योंकि यह अपराध निरंतर प्रकृति का है।
# प्रवर्तन निदेशालय का इतिहास और कार्यक्षेत्र के बारे में जानिए
प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी एक बहु-अनुशासनात्मक संगठन है जो आर्थिक अपराधों की जाँच और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन के लिये अनिवार्य है। इस निदेशालय की स्थापना 1 मई, 1956 को हुई, जब विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 (फेरा '47) के तहत विनिमय नियंत्रण कानून के उल्लंघन से निपटने के लिये आर्थिक मामलों के विभाग में एक 'प्रवर्तन इकाई' का गठन किया गया। हालांकि, आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत के साथ, फेरा (एफईआरए)’1973 (जो एक नियामक कानून था) को निरस्त कर दिया गया और इसके स्थान पर एक नया कानून-विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 फेमा (एफईएमए) लागू किया गया। वहीं, विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक अपराधियों से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि के साथ सरकार ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (एफईओए) पारित किया है और ईडी को इसे लागू करने का कार्य सौंपा गया है।
# प्रवर्तन निदेशालय का कार्य निम्नलिखित कानूनों का अनुपालन करवाना है और उससे जुड़ी एजेंसी पर निगरानी रखना है:-
पहला, मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम, 2002 (पीएमएलए): इसके तहत धन शोधन के अपराधों की जाँच करना, संपत्ति की कुर्की और जब्ती की कार्रवाई करना और मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा चलाना शामिल हैं।
दूसरा, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (एफईएमए): इसके तहत फेमा के उल्लंघन के दोषियों की जाँच की जाती है और दोषियों पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
तीसरा, भगोड़े आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (एफईओए): इस अधिनियम का उद्देश्य ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों की संपत्ति पर कब्ज़ा करना है जो भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर कानून की प्रक्रिया से बचने के उपाय खोजते हैं। ऐसी संपत्ति को केंद्र सरकार को सौंपा जाता है।
चतुर्थ, सीओएफईपीओएसए के तहत प्रायोजक एजेंसी: फेमा (एफईएमए) के उल्लंघन के संबंध में विदेशी मुद्रा और संरक्षण गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 (सीओएफईपीओएसए) के तहत निवारक निरोध के प्रायोजक मामले देखना इसका दायित्व है।
इन सभी बातों से स्पष्ट है कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा भारत में किए गए धनशोधन सम्बन्धी निरोधक लगभग सभी उपाय कारगर साबित हुए हैं, हालांकि अभी इसे और अधिक कारगर बनाने की अपेक्षा आमलोगों के बीच है।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार
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