शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की सफलता पर रहेगा बड़ा प्रश्नचिन्ह
भाजपा के विरोध में जो पार्टियां साथ आ रही हैं उन्हें लगता है कि यह आज के समय की जरूरत है, लेकिन यह प्रयोग कितने समय तक चलेगा, उस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । इस प्रयोग के बारे में बड़ा प्रश्नचिन्ह है।
नयी दिल्ली। महाराष्ट्र में वैचारिक रूप से बिल्कुल अलग कांग्रेस और शिवसेना साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी में हैं जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य और देश की राजनीति में होने जा रहे इस चौंकाने वाले प्रयोग से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर पेश हैं सीएसडीएस (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज) के निदेशक एवं राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार से भाषा के पांच सवाल और उनके जवाब:
सवाल : अगर शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस की सरकार बनती है तो अतीत के ऐसे राजनीतिक प्रयोगों के मद्देनजर इसके सफल होने की संभावना कितनी होगी ?
जवाब : इस गठबंधन सरकार की सफलता की गारंटी पर प्रश्नचिन्ह रहेगा क्योंकि यह गठबंधन वैचारिक आधार पर नहीं, बल्कि भाजपा के विरोध के आधार पर हो रहा है। भाजपा के विरोध में जो पार्टियां साथ आ रही हैं उन्हें लगता है कि यह आज के समय की जरूरत है, लेकिन यह प्रयोग कितने समय तक चलेगा, उस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । इस प्रयोग के बारे में बड़ा प्रश्नचिन्ह है।
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सवाल : क्या यह गैर-कांग्रेसवाद की तरह ही गैर-भाजपावाद का एक प्रयोग है?
जवाब :गैर-कांग्रेसवाद और गैर-भाजपावाद में कुछ बुनियादी फर्क है। इस वक्त धार्मिक पहलू बड़ा है जो भाजपा की स्थिति को मजबूत करता है। ऐसे में जब भाजपा का विरोध हो रहा है तो थोड़ी सी भी हिंदुत्व की भावना रखने वाले मतदाता भाजपा के साथ खड़े हो सकते हैं। दूसरी तरफ, भाजपा इसका प्रचार भी जोरशोर से करती है कि भ्रष्ट पार्टियां एक ईमानदार नेता के खिलाफ एकजुट हो रही हैं। ऐसे में भाजपा के खिलाफ उस तरह की सफलता मिलने की आसार के कम ही हैं जैसी सफलता अतीत में कांग्रेस के खिलाफ विभिन्न पार्टियों के गठबंधन को मिली।
सवाल : कहा जा रहा है कि इस गठबंधन से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस और शिवसेना को होगा और फायदे में भाजपा एवं राकांपा रहेंगी। क्या आप इससे सहमत हैं ?
जवाब : शिवसेना को तो नुकसान हो ही रहा है क्योंकि कई लोगों को लगता है कि भाजपा के मुकाबले सीटों की संख्या बहुत कम होने पर उसकी मुख्यमंत्री पद की मांग जायज नहीं थी। कांग्रेस को विचाराधारा की दृष्टि से बड़ा नुकसान होगा क्योंकि उसके मतदाताओं को यह लगेगा कि इस पार्टी में वैचारिक दृष्टि बची ही नहीं है। धारणा की दृष्टि से भाजपा और राकांपा फिलहाल फायदे की स्थिति में नजर आ रहे हैं।
सवाल : क्या शिवसेना का कट्टर हिंदुत्व और कुछ अन्य पेचीदा मुद्दे सरकार में अवरोध नहीं बनेंगे ?
जवाब : ऐसे मुद्दों को किनारे रखकर भी साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार हो सकता है। ये इतने ज्वलन्त मुद्दे नहीं हैं कि इन पर तत्काल कदम उठाया जाए। ये पार्टियां इन मुद्दों पर बात करने से परहेज कर सकती हैं।
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सवाल : क्या यह दोस्ती लंबे समय तक चलने वाली है?
जवाब : यह लंबे समय तक चलने वाली दोस्ती नहीं लगती। इस पर बहस हो सकती है कि यह कितनी अल्पकालिक होगी।
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