न्यायपालिका को अपराधी नहीं, पीड़ित के पक्ष में खड़ा होते दिखना चाहिए
यह सच नहीं है कि सरकार हर एक अपराधिक मामले में बुलडोजर लेकर खड़ी हो जाती है, लेकिन माहौल ऐसा बना दिया जाता है जैसे सरकार बहुत बड़ी कसूरवार हो। खासकर योगी सरकार पर तो यह भी आरोप लगते हैं कि वह मुस्लिमों के खिलाफ ज्यादा बुलडोजर कार्रवाई करते हैं।
यह बात समझ से परे है कि जो लोग जघन्य अपराध करते हैं? छोटी-छोटी बच्चियों के साथ दुष्कर्म करते हैं उनके ऊपर कार्रवाई करते समय सरकार पूरी तरह से कानून का पालन करे। तर्क दिया जाता है कि अपराध कोई एक व्यक्ति करता है तो उसके पूरे परिवार को इसका खामियाजा क्यों भुगतना पड़े। ऐसे तर्क देने वालों को समझना चाहिए कि जब किसी एक बच्ची के साथ दुष्कर्म या परिवार के किसी सदस्य के साथ कोई आपराधिक वारदात होती है तो उसका खामियाजा जब पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है तो फिर अपराधी को इस आधार पर कैसे छूट दी जा सकती है कि उसके किये अपराध की सजा पूरे परिवार को नहीं मिलनी चाहिए। बात सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की हो रही है जिसमें उसने राज्य सरकारों द्वारा की जा रही बुलडोजर की कार्रवाई पर प्रश्न चिन्ह उठाया था। सुप्रीम कोर्ट का अपना पक्ष हो सकता है लेकिन सभी आपराधिक मामलों के समय यह कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। अपराध करने वाला अगर ताकतवर हो तो वह कानून को अपने हिसाब से ‘खरीद’ लेता है। अपना सही-गलत बचाव करने के लिये वकीलों की पूरी फौज कोर्ट में उतार देता है। क्या यह सही नहीं है कि आज भी जेलों में छोटे मोटे अपराध करने वालों को इसलिये जमानत नहीं मिल पा रही है क्योंकि वह आर्थिक रूप से सबल नहीं हैं। उनका दर्द कोर्ट की चौखट तक पहुंच ही नहीं पाता है। सुप्रीम कोर्ट इस बात की व्याख्या कभी क्यों नहीं करता है कि एक मुकदमें में वादी-प्रतिवादी की तरफ से कितने अधिवक्ता बहस कर सकते हैं।
यह सच नहीं है कि सरकार हर एक अपराधिक मामले में बुलडोजर लेकर खड़ी हो जाती है, लेकिन माहौल ऐसा बना दिया जाता है जैसे सरकार बहुत बड़ी कसूरवार हो। खासकर योगी सरकार पर तो यह भी आरोप लगते हैं कि वह मुस्लिमों के खिलाफ ज्यादा बुलडोजर कार्रवाई करते हैं। ऐसी बातें करने वाली कानून की आड़ में अपने अपराध पर पर्दा डालने का काम करते हैं। बता दें कई राज्यों में प्रशासन द्वारा आरोपियों के घर पर बुलडोजर चलाए जाने पर 02 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था। कोर्ट का सवाल था कि कानून में तय प्रक्रिया का पालन किये बगैर किसी का घर कैसे ढहाया जा सकता है। सिर्फ किसी के अभियुक्त होने पर उसका घर कैसे ढहाया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने बगैर नोटिस के आरोपियों के घर ढहाने की शिकायत पर कहा कि अगर वह दोषी भी है तो भी कानून में तय प्रक्रिया के बगैर उसका घर नहीं ढहाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट का यह कथन समानांतर सरकरार चलाने जैसा नजर आता है। खैर,सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का संकेत देते हुए सभी पक्षकारों से सुझाव मांगे हैं। यह कहते समय सुप्रीम कोर्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस बयान पर भी गौर फरमा लेता तो ज्यादा अच्छा होता जिमसें पीएम ने सुप्रीम कोर्ट के एक कार्यक्रम में उससे महिलाओं से जुड़े मामले जल्द से जल्द निपटाने की उम्मीद जताई थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश भी मौजूद थे।
इसे भी पढ़ें: सर्वसुलभ इंसाफ की उम्मीद को पंख लगे
हालांकि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह अवैध निर्माण को संरक्षण नहीं देंगे, लेकिन जिस तरह के आदेश कोर्ट जारी करती है उससे अवैध निर्माण को बढ़ावा मिलता ही है। पूरा देश अतिक्रमण की समस्या से जूझ रहा है इस के लिये सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने कभी उतने सख्त कदम नहीं उठाये जितने अतिक्रमण करने वालों के पक्ष में उठाये जाते हैं। कोई रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके बस्तियां बसा लेता है तो कोई नजूल की जमीन हाथिया कर बेच देता है। कोर्ट कै आदेश से लगता है कि वह एक बेगुनाह को सजा न हो इसके लिये 99 गुनाहागारों के प्रति नरम रवैया अख्तियार करने से संकोच नहीं करता है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गैर कानूनी ढंग से निर्माण ढहाए जाने के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि कानून की तय प्रक्रिया के तहत ही कार्रवाई की जाती है। किसी अपराध में आरोपित होना कभी भी अचल संपत्ति के ध्वस्तीकरण का आधार नहीं हो सकता। मामले में 17 सितंबर को फिर सुनवाई होगी।
बता दे बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ ये टिप्पणियां और निर्देश न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने जमीयत उलमा ए हिंद व अन्य की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिए था। जमीयत ने याचिका में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में गैर कानूनी ढंग से आरोपियों के घर पर बुल्डोजर चलाए जाने के आरोप लगाए हैं। याचिका में कहा है कि विभिन्न राज्यों में बुल्डोजर इंसाफ का खतरनाक चलन बढ़ा है। इसमें समुदाय विशेष को और वंचित वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। जमीयत की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और फारुख रशीद पेश हुए, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहस की। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि प्रदेश सरकार ने इस मामले में गत नौ अगस्त को ही हलफनामा दाखिल कर दिया था और उस हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अपराध में आरोपी है तो उसका घर ढहाए जाने का यह आधार कतई नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि कोई भी अचल संपत्ति सिर्फ, इस आधार पर नहीं ढहाई जा सकती कि व्यक्ति किसी अपराध में आरोपी है। मेहता ने कहा कि अचल संपत्ति म्युनिसिपल अधिनियम और विकास प्राधिकरणों के अधिनियम के उल्लंघन पर कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ही ढहाई जाती है। पीठ ने मेहता से कहा कि अगर आप ये स्थिति स्वीकार कर रहे हैं तो अच्छी बात है। कोर्ट आपका बयान दर्ज करके पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगा। मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता इस तरह से मामले को पेश कर रहे हैं, जैसे कि कोई किसी अपराध में आरोपी होता है तो उसका मकान ढहा दिया जाता है, जबकि यह सही नहीं है। वह दिखा सकते हैं। अथॉरिटीज ने मकान ढहाए जाने से बहुत पहले नोटिस जारी किया था। निर्माण अवैध होने पर ही ढहाया जाता है।
पीठ ने भी स्पष्ट किया कि वह किसी अवैध निर्माण या सड़क पर अतिक्रमण को संरक्षित नहीं करेंगे, लेकिन इस संबंध में दिशा-निर्देश होने चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा कि किसी का घर सिर्फ इसलिए कैसे गिराया जा सकता है कि वह आरोपी है। अगर वह दोषी भी है तो भी उसका घर नहीं गिराया जा सकता। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अवैध निर्माण पर भी कानून के मुताबिक ही कार्रवाई हो सकती है। मेहता ने कहा कि इस मामले में जिनके घर ढहे हैं, उनकी जगह यहां याचिका जमीयत ने दाखिल की है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का हलफनामा देखते हुए कोर्ट को यह मामला बंद कर देना चाहिए, लेकिन याचिकाकर्ता जमीयत की ओर से पेश वकील दुष्यंत दवे ने कोर्ट से इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया। दुष्यंत दवे ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक जगह का नहीं है, यह व्यापक मुद्दा है और कोर्ट को इस पर सुनवाई करके दिशा-निर्देश तय करने चाहिए। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि यह सुनिश्चत करना जरूरी है कि कोई भी कमियों का फायदा न उठा पाए। निर्माण अवैध है तो भी कानून के मुताबिक कार्रवाई होनी चाहिए। एक पिता का बेटा अड़ियल हो सकता है, लेकिन इस आधार पर किसी का घर गिरा दिया जाए तो यह तरीका सही नहीं है। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने भी बहस की। दवे और सिंह ने कहा कि यहां कुछ मामले ऐसे हैं, जिसमें किराएदार के आरोपी होने पर बुल्डोजर कार्रवाई हुई है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि सभी लोग अपने अपने सुझाव दाखिल करें, ताकि कोर्ट इस संबंध में पूरे देश के लिए उचित दिशा-निर्देश तय कर सके। अब अगली सुनवाई 17 सितंबर को होगी।
कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट अपराधियों के खिलाफ कैसे कार्रवाई हो इस पर तो चिंतित दिखा लेकिन पूरी सुनवाई के दौरान उसने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे इस बात का अहसास होता कि कोर्ट की संवेदनाए पीड़ित पक्ष के साथ भी जुड़ी हुई हैं, जो चिंताजनक है। एक तरफ जब किसी सरकार में अपराध बढ़ते हैं तो तमाम कोर्ट उसको कटघरे में खड़ा करता है, लेकिन जब अपराध नियंत्रण के लिये कोई कार्रवाई की जाती है तो वह सरकार को ही कार्रवाई पर उंगली उठाती है।
अन्य न्यूज़